'गुलाम-ए-ग़ज़ल' हैं भूपिंदर-मिताली
दिलकश आवाज़ और ख़ास अंदाज़ के मालिक, जिन्हें यसूदास के बाद 'भगवान की आवाज़' कहा जाता है। अपनी जीवन संगिनी और सिंगिंग पार्टनर मिताली के साथ 'रंग-ए-ग़जल' नाम का एक कंसर्ट करने जा रहे हैं।
इस ग़ज़ल के गुलदस्ते क पहली पेशकश नवी मुंबई के वाशी में की जाएगी। इस कंसर्ट से जुड़े और ग़ज़ल के कई मुद़दों पर मिताली-भूपिंदर ने कई बातें साझा कीं।
जब भूपिंदर को संबोधित करते हुए उन्हें गु़जल का शहंशाह कहा, तो वे झट से बोल पड़े, 'माफ़ करें, हम' गुलाम-ए-ग़ज़ल 'हैं, ग़ज़ल के शहंशाह तो उसे लिखने वाले लोग होते हैं। "
वहीं जब ग़ज़ल को लेकर वर्तमान परिस्थितियों के बारे में सवाल दागा गया, तो वे बोले, "पहले तो जो बुजुर्ग लोग होते थे, वही ग़ज़ल सना करते थे। लेकिन आजकल तो यंग जनरेशन और ऑफ़िस गोइंग लोग भी बड़े शौक़ से ग़ज़ल सुनते हैं।
"ग़ज़ल की व्यापकता के बारे में मिताली का कहना है, "लोगों को लगता है कि टेलीविज़न के आकार में ही सिर्फ़ संगीत सिकुड़ा हुआ है। जबकि ऐसा नहीं है। ग़ज़ल को सुनने वालों की तादात पहले की अपेक्षा बढ़ी है।"
वहीं दोनों गायकों का यह भी मानना है कि संगीतकार अच्छे हैं, लेकिन पहले की तरह लिखने वाले लोगों की संख्या अब घट गई है। साथ व्यवसायिकता इतनी हावी हुई है कि लोग ताज़ा चलन के पीछे ही चलने को मज़बूर हैं। अब फ़िल्मों में ग़ज़ल के लिए कोई सिचुएशन ही नहीं बनाई जा रही।
गाने बनते हैं, तो पब में थिरकने के लिए, न कि मन को सुकून देने के लिए। भूपिंदर ने कुछ एक फ़िल्मों में अभिनय भी किया है और आरडी के साथ संगीत भी रचा है। अब उनका बेटा भी उनकी राह पर ही चल रहा है। मिताली-भूपिंदर का बेटा भी कई स्टेज शो कर चुका है और अमोल गुप्ते की फ़िल्म में संगीत भी दे चुका है।
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