अनुपम खेर का #awardwapsigang
पुरस्कार लौटाने वाले फ़िल्मकारों की मंशा पर शंका ज़ाहिर करते हुए, अभिनेता अनुपम खेर ने उनपर निशाना साधा। उनके इस ट्वीट वार में फ़िल्मकार अशोक पंडित भी शामिल हो गए। दोनों ने कई हस्तियों का सीधा नाम लेते हुए ट्वीट किए। और कुछ ख़बरिया चैनलों पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया भी दी ..
मुंबई। हिंदी सिने जगत के जाने-माने कलाकार अनुपम खेर ने कुछ फ़िल्मकारों द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कारों को लौटाने की घोषणा पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की।
अपनी गुस्से को उन्होंने ट्वीट के माध्यम से व्यक्त किया। साथ ही एक हैशटैग #awardwapsigang भी शुरू कर दिया।
अपने ट्वीट में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन करते हुए लिखा है कि जो लोग नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी पीएम बने अब वह भी 'अवार्डवापसीगैंग' का हिस्सा बन गए हैं।
खेर ने अगले ट्वीट में लिखा कि लोग किसी एजेंडा के तहत ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि इनमें से कुछ लोग मुझे भी फिल्म सेंसर बोर्ड ने बाहर करने वालों में शामिल थे, जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई थी।
वहीं खेर अवॉर्ड वापसी के इस ताज़ा चलन को जूरी मेंबर और उसके अध्यक्ष का अपमान करने का आरोप लगाया है और साथ यह भी कहा कि जो लोग कला की इज्जत करते हैं, यह अवॉर्ड वापसी कैंपेन उनकी भी बेइज्जती है।
अशोक का #awardreturnnig
अवॉर्ड वापसी के मुद्दे पर फ़िल्मकार अशोक पंडित भी मुखर हुए। उन्होंने अपने ट्वीट कर कहा कि ये लोग उन फ़िल्मकारों में शामिल थे, जो यह नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें। इन लोगों ने ऐसे एक मेमोरेंडम पर पहले दस्तखत भी किए थे। इससे साफ होता है कि इनका मक़सद क्या है।
अशोक पंडित ने निर्देशक विशाल भारद्वाज, दिबाकर बनर्जी और आनंद पटवर्धन का सीधे नाम लेकर उन्हें अपने ट्वीट में जमकर झाड़ा। वहीं गीतकार गुलज़ार के साहित्यकारों के पुरस्कार वापसी पर दिए गए बयान से भी उन्होंने अपनी नाराज़गी और अचरज को ज़ाहिर किया।
कश्मीरी पंडित अशोक सोशल एक्टिविस्ट हैं और सेंसर बोर्ड सदस्य भी हैं। वे अपनी राय रखने के लिए मुखर लोगों में से माने जाते हैं। उन्होंने ट्वीट्स का सिलसिला थमने नहीं दिया।
अपने ट्वीट में अशोक ने यह कहा कि जो फ़िल्मकार अपने नेशनल अवॉर्ड वापस कर रहे हैं, वो अपनी टीम का भी अपमान कर रहे हैं। जिनके बिना वो राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फ़िल्म बनना संभव नहीं थी।
घटनाक्रम
जाने-माने फ़िल्मकारों दिबाकर बनर्जी, आनंद पटवर्धन और 11 अन्य लोगों ने बुधवार को एफटीआईआई के आंदोलनकारी छात्रों के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिए।
बनर्जी ने कहा, 'मैं गुस्से, आक्रोश में यहां नहीं आया हूं। ये भावनाएं मेरे भीतर लंबे समय से हैं। मैं यहां आपका ध्यान खींचने के लिए हूं। 'खोसला का घोसला' के लिए मिला अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाना आसान नहीं है। यह मेरी पहली फ़िल्म थी और बहुत सारे लोगों के लिए मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्म थी। '
उन्होंने कहा, अगर बहस, सवाल पूछे जाने को लेकर असहिष्णुता और पढ़ाई के माहौल को बेहतर बनाने की चाहत रखने वाले छात्र समूह को लेकर असहिष्णुता होगी, तो फिर यह असहिष्णुता उदासीनता में प्रकट होती है। इसी को लेकर हम विरोध जता रहे हैं।
वहीं कई डाक्यूमेंट्रीज़ के निर्माता पटवर्धन ने कहा कि सरकार ने अति दक्षिणपंथी धड़ों को प्रोत्साहित किया है। उन्होंने कहा, मैंने इस तरह से एक समय पर बहुत सारी घटनाएं होती नहीं देखी हैं। क्या होने वाला है, यह उसकी शुरुआत है और मुझे लगता है कि पूरे देश में लोग अलग अलग तरीक़ों से प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
ग़ौरतलब हो कि एफटीआईआई के छात्रों ने बुधवार को अपनी 139 दिनों पुरानी हड़ताल ख़त्म कर दी। हालांकि वे संस्थान के अध्यक्ष पद पर गजेंद्र चौहान की नियुक्ति का विरोध और उनको हटाने की मांग जारी रखेंगे।
इन्होंने लौटाए अवॉर्ड
अवॉर्ड लौटाने वालों में पहलर नाम दिबाकर बनर्जी का है। इनके अलावा 'राम के नाम', 'फादर सन एंड हॉली वॉर' और 'वॉर एंड पीस' जैसी डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाने वाले आनंद पटवर्धन शामिल हैं। 'गुलाबी गैंग' का निर्देशन कर चुकी निष्ठा जैन, 'शूल' और 'केरला कैफे़' सरीखी फ़िल्मों के सिनेमैटोग्राफर हरि नायर, फ़िल्म निर्देशक लिपिका सिंह, फ़िल्मकार कीर्ति नाखवा और हिंदी फ़िल्म 'हंसी तो फंसी' के लेखक हर्ष कुलकर्णी शामिल हैं।