हैप्पी बर्थ-डे 'दादा मुनि'
हिंदी सिने जगत में दादामुनि के नाम से मशहूर अभिनेता अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर 1911 बिहार के भागलपुर में हुआ था। 40 और 50 के दशक में अपने काम का लोहा मनवाने वाले अशोक कुमार अभिनेता तो थे ही, साथ ही वे पेंटर भी थे और होम्योपैथी के भी जानकार थे .....
मुंबई। पद्म भूषण से सम्मानित अभिनेता अशोक कुमार का जन्म मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। उनका असली नाम कुमुदलाल गांगुली था।
अपनी अदायगी से लोगों को दर्शकों को अपना मुरीद बनाने वाले अशोक कुमार की बतौर अभिनेता पहली फ़िल्म 'जीवन नैया' थी। इसके बाद वो 'अछूत कन्या', 'मिली', 'बंदिनी', 'ज्वैल थीफ़', 'खूबसूरत' और 'पाकीजा' जैसी हिट फ़िल्में में नज़र आए। उन्हें एक्टिंग के साथ-साथ पेटिंग का भी शौक था साथ ही वे होम्योपैथी के भी जानकार थे। उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें ...
अशोक कुमार बॉलीवुड में 'दादा मुनि' के नाम से जाने जाते हैं। लेकिन कम लोगों को पता होगा कि यह नाम आखिर पड़ा कैसे। दरसअल, अशोक कुमार की बहन और अभिनेता जॉय मुखर्जी की मां सती देवी, अशोक कुमार को 'दादा मणि' कहा करती थीं। दादा मणि का मतलब भाइयों में श्रेष्ठ। यह उपनाम ऐसा चला कि अपभ्रंश होकर, दादा मुनि में बदल गया।
अशोक कुमार के पिता कुंजलाल गांगुली पेशे से वकील थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा में प्राप्त की थी और बाद मे उन्होंने स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की।
अशोक कुमार अभिनेता नहीं बल्कि निर्देशक बनना चाहते थे। अपने भाई-बहनो में सबसे बड़े अशोक कुमार को बचपन से ही फ़िल्मों में काम करके बुलंदियों को छूना चाहते थे।
उन दिनों अशोक के बहनोई सशाधर मुखर्जी मुंबई में 'बॉम्बे टॉकीज' में ऊंचे पद पर काम किया करते थे, जिसकी वजह से अशोक मुंबई आ गए और बॉम्बे टॉकीज में ही 'लैब असिस्टेंट' के रूप में काम भी करने लगे। तभी उन्हें 1936 में उनकी पहली फ़िल्म 'जीवन नैया' मिली।
वर्ष 1937 मे अशोक कुमार को बांबे टॉकीज के बैनर तले प्रदर्शित फ़िल्म 'अछूत कन्या' में काम किया। इस फ़िल्म में उन्होंने एक बार फिर अपनी पहली फ़िल्म 'जीवन नैया' की कोस्टार देविका रानी के साथ स्क्रीन शेयर किया।
इसके बाद उन्होंने वर्ष 1939 मे प्रदर्शित फ़िल्म 'बंधन', 'कंगन', और झूला में अभिनेत्री लीला चिटनिश के साथ काम किया। इन फ़िल्मों से उन्होंने दर्शकों से खूब तारीफें बटोरी।
वर्ष 1943 मे अशोक कुमार ने बांबे टाकीज की एक और फ़िल्म 'किस्मत' में काम किया। इस फ़िल्म ने उनकी किस्मत पलट कर रख दी। इस में उन्होंने पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई और दर्शको का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने मे सफल रहे।
किस्मत ने बॉक्स आफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए कोलकाता के चित्रा सिनेमा हॉल में लगभग चार वर्ष तक लगातार चलने का रिकॉर्ड बनाया।
अशोक कुमार को फ़िल्म 'राखी' (1962) और 'आशीर्वाद' (1968) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्म फेयर पुरस्कार से नवाजा गया। वहीं वर्ष 1966 में आई फ़िल्म 'अफसाना' के लिए सहायक अभिनेता के फ़िल्म फेयर अवार्ड से भी नवाजे गए।
90 के दशक में अशोक ने टीवी पर 'हम लोग' नाम का एक शो भी होस्ट किया।
अशोक कुमार को हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ठ सहयोग के लिए वर्ष 1988 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अशोक कुमार 10 दिसंबर 2001 90 में वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह गए।
इनके जन्मदिन के ही दिन इनके छोटे भाई अभिनेता और गायक किशोर कुमार का वर्ष 1987 में दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया, इसके बाद कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया।
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