गूगल के डूडल में कव्वाली के बेताज़ बादशाह
सूफ़ी गायक नुसरत फतेह अली ख़ान साहब के 67 मशहूर वें सालगिरह के मौक़े पर गूगल ने डूडल के ज़रिए उन्हें श्रद्धांजलि दी है। इस डूडल में उनको उनकी गायन मण्डली संग पारंपरिक वेशभूषा व उनकी चिर परिचित भाव-भंगिमाओं के साथ कव्वाली गाते दिखाया गया है ....
मुंबई। गूगल अक्सर अपने होम पेज पर खास दिन या शख्सियत को याद कर के उसके सम्मान में डूडल बनाता है। इसी तारतम्य में 13 अक्टूबर को मशहूर सूफ़ी गायक नुसरत फतेह अली का भी डूडल बनाया गया है।
नुसरत फतेह अली खान का 67 वां जन्मदिन है आज, लेकिन दुर्भाग्यवश वो हमारे बीच में नहीं हैं। 16 अगस्त 1997 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया था। उस समय वे महज़ 49 वर्ष के ही थे।
सूफी गायन के इस माहिर कलाकार के चाहने वाले सिर्फ़ पाकिस्तान या भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में हैं। अपने जीवनकाल में इन्हें कई तरह के पुरस्कारों से नवाज़ा गया, जिनमें 'यूनेस्को म्यूजिक प्राइज (1995)' और पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा दिया गया 'प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस अवॉर्ड' भी शामिल हैं।
लगभग 40 देशों में परफॉर्मेंस दे चुके नुसरत फतेह अली खान को महारत हासिल थी कि वो नॉन-स्टॉप लगातार 10 घंटों तक भी गा सकते थे। तभी तो इनका नाम गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।
फसाना-ए-ज़िंदगी
नुसरत फतेह अली का जन्म 13 अक्टूबर 1948 में पाकिस्तान के फैसलाबाद में कव्वालों के घराने में हुआ। इनके पिता उस्ताद फतेह अली खान साहब, बहुत बडे कव्वाल थे। शुरू में नुसरत के पिता ने उन्हें कव्वाली के पेशे, जो कि इस घराने में 600 साल पुरानी परंपरा को अपनाने से रोका।
लेकिन नुसरत साहब ने अपने वालिद की बात को अनसुना कर, अपने धुन में रमे रहे। आख़िरकार उस्दात फतेह अली को अपने बेटे नुसरत की आवाज़ में खुदा की आवाज़ सुनाई देने लगी।
इनकी आवाज़ की रवानगी, खनकपन, लहरिया, सुरूर और अंदाज़ देखकर लोग बरबस ही कह उठते थे कि ख़ुदा ज़मीन पर उतर आया है। हालांकि, इस कलाकार को भी दुनिया ने देर से ही पहचाना। लेकिन जब इसकी पहचान हुई, तो चाहनों वालों की तादात खुद-ब-खुद बढ़ने लगी।
साल 1993 शिकागो के में विंटर फेस्टिवल में पहली बार नुसरत साहब ने कव्वाली के राग छेड़े थे। रॉक कंसर्ट के बीच जब कव्वाली की समा बंधी, तो लोग इस सुरूर में बहते चले गए।
उस बीस मिनट की परफॉरमेंस से पूरे अमेरिका को नुसरत साहब ने अपना दीवाना बना लिया था। वहीं उन्होंने पीटर ग्रेबियल के साथ उनकी फ़िल्म में अपनी आवाज़ भी दी और उनके साथ अपनी एल्बम "शहंशाह" भी निकाला।
पूरब और पश्चिम के संगीत के संगम को सूफ़ियाना तरीक़े से पेश करना उनकी ख़ासियत थी। क़व्वाली को वो एक नए मुक़ाम पर ले गए थे। संगीत की सभी शैलियों को आजमाते हुए भी सूफियाना अंदाज को पकड़े रहे। तभी तो दुनिया उन्हें कव्वाली का बेताज़ बादशाह कहती है।
गुडी का साथ
नुसरत साहब के दीवानों में एक नाम है मशहूर कम्पोज़र और निर्माता 'गुडी'। उन्होंने अनुवादक का सहारा लेकर नुसरत साहब को समझा। इसके बाद 'डब कव्वाली' नाम का एक एल्बम भी निकाला। गुडी उन लोगों में शुमार हैं, जिन्हाेंने नुसरत अली साहब की गायिकी को पूरी दुनिया में फैलाया।
गुडी का कहना है कि पूरब और पश्चिम के आलौकिक फ्यूजन में भी उन्होंने अपना पंजाबीपन और सूफियाना अंदाज़ नहीं छोडा और फ्यूजन को एक नई परिभाषा दी। उन्होंने सभी सीमाओं से परे जाकर गायन किया। उनकी गायिकी को तीस सेकेंड दीजिए, इसके बाद आप किसी और दुनिया में ख़ुद को पाएंगे। रूहानी गायिकी का नाम ही तो नुसरत है।
खाने के शौक़ीन
गाने के अलावा नुसरत साहब की कमज़ोरी थी अच्छा खाना। अच्छा खाना जिनमें मसाले और घी की भरमार रहती थी। एक वक्त जब उन्हें डाूक्टरों ने हिदायत भी दे दी, बावजूद इसके वे अपनी मनमानी करने से बाज़ नहीं आए। उन्होंने जी भरकर गाया और जी भरकर खाया।
महान सूफी संत और कवि रूमी की कविता को नुसरतनुमा अंदाज़ में क़व्वाली की शक्ल में सुनने के आनंद को बया नहीं किया जा सकता।
मशहूर तराने
- दयारे इश्क में अपना मकाम पैदा कर।
- तुम इक गोरखधंधा हो।
- दमादम मस्त क़लन्दर।
- हिजाब को बेनकाब होना था।
- छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिला के।
- हुस्नेजाना की तारीप मुमकिन नहीं।
- आपसे मिलकर हम कुछ बदल से गए।
- हम अपने शाम को जब नज़रे जाम करते हैं।
- तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी।
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