मधुबाला : हिंदी सिने जगत के आसमान का चांद
‘तुम हो हसीं कहां के, हम चांद आसमां के’ साल 1963 में आई फिल्म ‘शराबी’ का यह गाना मधुबाला की शख्सियत को बखूबी बयां करता है। हिंदी सिने जगत तारिकाओं में वो सबसे अलहदा हैं। खूबसूरती और अदाकारी के बेजोड़ संगम का नाम मधुबाला है। इनके दीवाने कल भी थे और आज भी मौजूद हैं। तब इन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ा करती थी और अब इनकी तस्वीरें और वीडियो क्लिप्स के लिए दीवाने खाक छानते हैं। देश तो इनकी अदाकारी और खूबसूरती पर मरता ही था, लेकिन हॉलीवुड भी इनकी अदाओं का कायल हो चुका था। तभी तो एक अमेरिकन मैग्ज़ीन ने इन पर ‘बिगेस्ट स्टार ऑफ़ द वर्ल्ड’ नाम से आर्टिकल भी लिखा था। ‘लाइफ’ मैग्ज़ीन ने इनका फोटोशूट किया था। हिंदी सिने जगत के इस चांद का जन्म 14 फरवरी को हुआ था। वैलेंटाइन डे के दिन जन्मी ये अदाकारा सच्चे प्रेम के लिए तड़पती रही। जन्मदिन पर ख़ास पेशकश।
Photo Credit : LIFE Magazine
दमदार अभिनय और दिलकश अदाओं की मल्लिका मधुबाला शुरू से ही अदाकारा बनने का सपना देखा करती थीं। बचपन में वे आइने के सामने खड़े होकर कई तरह के मुंह बनाया करती थीं और घंटों खुद को निहारा करती थीं।
मधुबाला का जन्म 14 फरवरी 1933 में दिल्ली के मध्यम वर्गीय परिवार में मुमताज़ बेग़म देहलवी के रूप में हुआ था। उनके पिता अताउल्लाह खान से एक भविष्यवक्ता की मुलाक़ात हुई और उसने मधुबाला के बारे में एक भविष्यवाणी की। भविष्यवक्ता ने कहा कि यह बच्ची बड़ी होकर खूब शोहरत पाएगी।
कुछ दिनों बाद अताउल्लाह जिस टोबेको कंपनी में काम करते थे, उन्हें वहां से निकाल दिया गया। इसके बाद वो काम के लिए कई जगह भटके। आखिर में वे सपरिवार मुंबई चले आए। मुंबई आने के बाद मधुबाला को लेकर कई स्टूडियो में घूमे।
एक दिन उनका यह घूमना सफल भी हो गया और साल 1942 में मधुबाला को बतौर बाल कलाकार 'बेबी मुमताज' के नाम से फिल्म 'बसंत' में काम करने का मौक़ा मिल गया।
मुमताज से मधुबाला
बनी अदाकारा
मधुबाला को बतौर अभिनेत्री पहचान निर्माता निर्देशक केदार शर्मा की साल 1947 में आई फिल्म 'नीलकमल' से मिली। इस फिल्म में उनके अभिनेता राजकपूर थे। 'नील कमल' बतौर अभिनेता राजकपूर की पहली फिल्म थी।भले ही यह फिल्म सफल न रही हो, लेकिन मधुबाला ने अपने सिने करियर की शुरुआत कर दी। साल 1949 तक मधुबाला की कई फिल्में आईं और गईं, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ।
फिर साल 1949 में बॉम्बे टॉकीज के बैनर तली बनी फिल्म ‘महल’ में मधुबाला ने काम किया। इसके निर्माता और अभिनेता दोनों ही अशोक कुमार थे। इस फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए।
रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म के बाद बॉलीवुड में 'हॉरर और सस्पेंस' फिल्मों के निर्माण का सिलसिला चल पड़ा। इस फिल्म ने न सिर्फ मधुबाला को स्थापित किया, बल्कि निर्देशक कमाल अमरोही और गायिका लता मंगेशकर को भी स्थापित किया।
अच्छे दौर के बाद करियर का बुरा दौर भी मधुबाला ने देखा। साल 1950 से 1957 तक के दौर में रिलीज़ फिल्में असफल रहीं। लेकिन साल 1958 में 'फागुन', 'हावडा ब्रिज', 'कालापानी' और 'चलती का नाम गाड़ी' जैसी फिल्मों की सफलता के बाद मधुबाला एक बार फिर शोहरत की बुंलदियों तक जा पहुंची।
जहां 'हावडा ब्रिज' में क्लब डांसर बनीं मधुबाला ने दर्शकों का मन मोह लिया। वहीं साल 1958 में आई फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' में अपनी कॉमिक टाइमिंग से दर्शकों को हंसा हंसा कर लोट पोट कर दिया।
हिंदी सिने जगत के साथ हॉलीवुड भी मधुबाला की अदायगी और दिलकश अदाओं का कायल हो गया था। तभी तो साल 1952 में थिएटर आर्ट नाम की मैग्ज़ीन में मधुबाला के नाम एक लेख छपा था। इस लेख में मधुबाला को ‘बिगेस्ट स्टार ऑफ द वर्ल्ड’ की उपमा दी गई।
मोहब्बत की मारी
मधुबाला को देखकर कौन न दिल हार बैठे, लेकिन वो अपना दिल दिलीप कुमार पर हार बैठी थीं। ऐसा नहीं है कि मधुबाला का नाम और किसी के साथ नहीं जुड़ा।उनके प्रेमियों की फेहरिस्त में दिलीप कुमार, किशोर कुमार, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो, प्रदीप कुमार, भरत भूषण, कमाल अमरोही, के.आसिफ, प्रेमनाथ तक रहे हैं।
मज़ेदार बात तो यह है कि मधुबाला अपने प्रेम का इज़हार बड़े दिलचस्प अंदाज़ में करती थीं। उनका दिल जिस पर भी आता था, वो उसे गुलाब का फूल और एक पत्र भिजवाया करती थीं।
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तब दिलीप कुमार को अपने घर बुलवाया और पूछा कि क्या मैं ठीक हो जाऊंगी, तो आप मेरे साथ काम करेंगे। दिलीप कुमार ने छूटते ही कहा, ‘ठीक हो जाऊं, मतलब, आप ठीक ही हैं और मैं आपके साथ बिलकुल काम करूंगा’।
आपको बता दें ये वो दौर था, जब दिलीप कुमार मधुबाला से अलग हो गए थे और मधुबाला ने किशोर कुमार से शादी कर ली थी।
मधुबाला और दिलीप कुमार की मुलाक़ात फिल्म ‘तराना’ के सेट पर हुई थी। इश्क़ का इज़हार भी मधुबाला ने ही किया था। अपने ड्रेस डिज़ाइनर के हाथों गुलाब का फूल और एक पत्र भिजवाया था।
उस पत्र में लिखा था कि यदि वह भी उनसे प्यार करते हैं, तो इसे अपने पास रख ले। दिलीप कुमार ने फूल और खत दोनों अपने पास रख लिया। आपको जानकर अचरज होगा कि जब मधुबाला ने दिलीप साहब को फूल भेजा था, तब वे अभिनेता प्रेमनाथ के साथ अफेयर में थीं।
इस बात की जानकारी प्रेमनाथ को हुई, तो वो दिलीप कुमार और मधुबाला के बीच से हट गए। दरअसल, प्रेमनाथ बहुत सुलझे व्यक्तित्व वाले थे और दिलीप कुमार के अच्छे दोस्त भी थे।
ख़ैर, दिलीप कुमार और मधुबाला का प्यार सात सालों तक चलता रहा। तभी कुछ ऐसा हुआ कि दोनों प्रेमी एक दूजे से जुदा हो गए।
हुआ यह कि बी.आर चोपड़ा की फिल्म 'नया दौर' में दिलीप कुमार और मधुबाला को लिया गया। पहले इस फिल्म को मुंबई में ही शूट किया जाना था, लेकिन बाद में निर्देशक को लगा कि इसकी शूटिंग भोपाल में भी होना चाहिए।
अब जैसे ही इस बात की ख़बर मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान को हुई, उन्होंने मधुबाला को मुंबई से बाहर जाने के लिए मना कर दिया।
अताउल्लाह खान के इस व्यवहार के कई कारण बताए जाते हैं। कोई कहता है कि अताउल्लाह नहीं चाहते थे कि मधुबाला और दिलीप कुमार की नज़दीकियां बढ़ें और कोई कहता है कि अताउल्लाह को डर था कि मध्यप्रदेश का वो इलाक़ा डकैतों का है, जो मधुबाला को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इन सब वजहों से बी आर चोपड़ा को भारी नुकसान भी हुआ, क्योंकि फिल्म की काफी शूटिंग हो गई थी। बाद में इस फिल्म में वैजयंतीमाला को ले लिया।
अताउल्लाह खान बाद में इस मामले को अदालत में ले गए और इसके बाद उन्होंने मधुबाला को दिलीप कुमार के साथ काम करने से मना कर दिया। यहीं से दिलीप कुमार और मधुबाला का प्रेम टूट गया।
दिलीप कुमार के बाद मधुबाला किशोर कुमार के करीब रहीं। साठ के दशक में मधुबाला ने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया था। 'चलती का नाम गाड़ी' और 'झुमरू' के निर्माण के दौरान ही मधुबाला किशोर करीब आए थे।
मधुबाला के पिता ने किशोर कुमारको सूचित किया कि मधुबाला इलाज के लिए लंदन जा रही हैं और वहां से लौटने के बाद ही उनसे शादी कर पाएंगी।
लेकिन मधुबाला को अहसास हुआ कि शायद लंदन में ऑपरेशन होने के बाद वह जिंदा न रह पाएं। मधुबाला ने किशोर से एक बार कहा था कि वे बिना शादी किए नहीं मरना चाहती।
मधुबाला के लंदन जाने की बात किशोर कुमार को पता चलते ही उन्होंने मधुबाला की इच्छा पूरी करने के लिए उनसे शादी कर ली। शादी के बाद मधुबाला की तबीयत और ज्यादा खराब रहने लगी।
हांलाकि, इस बीच उनकी 'पासपोर्ट', 'झुमरू', 'बॉय फ्रेंड', 'हाफ टिकट' और 'शराबी' जैसी कुछ फिल्में प्रदर्शित हुई।
मधुबाला की बहन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि किशोर ने मधुबाला के ऊपर ध्यान देना बंद कर दिया था। वे चार महीने में एक बार उनसे मिलने आया करते थे। इस बात से मधुबाला बहुत आहत रहा करती थीं।
सेहत का पेच
मधुबाला के दिल में छेद था और यह बात उन्हें करियर की शुरुआत में ही पता था। लेकिन इस बात को फिल्मी दुनिया के लोगों से छुपा के रखा गया था। वो अपने काम को पूरी शिद्दत से करने में यक़ीन करती थीं।
एक वाकया है फिल्म 'मुगल-ए-आजम' का। के आसिफ की फिल्म के शूटिंग के दौरान मधुबाला की तबियत काफी खराब रहा करती थी। मधुबाला अपनी नफासत और नजाकत को कायम रखने के लिए घर में उबले पानी के सिवाए कुछ नहीं पीती थीं।
'मुगल-ए-आजम' की शूटिंग के दौरान मधुबाला को जैसलमेलर के रेगिस्तान में कुंए और पोखरे का गंदा पानी तक पीना पड़ा।
मधुबाला के शरीर पर असली लोहे की जंजीर भी लादी गई, लेकिन उन्होंने उफ तक नहीं की और फिल्म की शूटिंग जारी रखी। मधुबाला का मानना था कि 'अनारकली' के किरदार को निभाने का मौका बार-बार नहीं मिलता।
साल 1960 में जब 'मुगल-ए-आजम' प्रदर्शित हुई, तो दर्शक मधुबाला पर मुग्ध हो गए। हांलाकि बदकिस्मती से इस फिल्म के लिए मधुबाला को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार नहीं मिला। साल 1964 में एक बार फिर मधुबाला ने फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया।
लेकिन फिल्म 'चालाक' के पहले दिन की शूटिंग में मधुबाला बेहोश हो गयीं और बाद में यह फिल्म बंद कर देनी पड़ी। अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों के दिल में खास जगह बनाने वाली मधुबाला 23 फरवरी 1969 को 36 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गईं।