फिल्म समीक्षा : नीरजा
हाईजैक क्वीन के नाम से मशहूर फ्लाइट अटेंडेट नीरजा भनौट की कहानी पर आधारित फिल्म ‘नीरजा’ इस शुक्रवार रिलीज़ हुई। बेहतरीन विज्ञापन निर्देशकों में से एक राम माधवानी ने इसका निर्देशन किया है। नीरजा की केंद्रीय भूमिका में सोनम कपूर हैं। आइए करते हैं इस फिल्म की समीक्षा।
फिल्म : नीरजा
निर्देशक : राम माधवानी
निर्माता : अतुल कासवेकर, शांति शिवराम मैनी, ब्लिंग अनप्लग्ड और फॉक्स स्टार स्टूडियो
कलाकार : सोनम कपूर, शबाना आज़मी, शेखर रवजियानी
संगीतकार : विशाल खुराना
जॉनर : क्राइम थ्रिलर
रेटिंग : 4
राम माधवानी के निर्देशन में में बनी फिल्म 'नीरजा' शुक्रवार को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म में मुख्य भूमिका सोनम कपूर ने निभाई है। सोनम के अलावा इस फिल्म में शबाना आज़मी और संगीतकार से अभिनेता बने शेखर रवजियानी भी हैं। राम को बेहतरीन विज्ञापन बनाने के लिए कई अवॉर्ड भी मिले हैं।
फिल्म में भी वो अपना जादू दिखाने में कामयाब रहे। ग़ौरतलब है कि 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़, पंजाब में जन्मी नीरजा को मृत्यु के बाद कई वीरता अवॉर्ड दिए गए। इनमें भारत की ओर से उन्हें अशोक चक्र भी दिया गया। इतनी कम उम्र में पहले कभी किसी को यह पुरस्कार नहीं मिला। नीरजा को पाकिस्तान की तरफ से भी तमगा-ए-इंसानियत दिया गया था।
कहानी
फिल्म की कहानी नीरजा (सोनम कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो पैन एम 73 फ्लाइट में फ्लाइट अटेंडेट है। 5 सितंबर 1986 को नीरजा यह फ्लाइट पकड़ती हैं, जो मुंबई से कराची पहुंचता है। इस फ्लाइट को कराची एयरपोर्ट पर चार आतंकवादी इसे हाईजैक कर लेते हैं।
आतंवादियों की योजना के अनुसार वो प्लेन को साइप्रस ले जाना था और वहां जेल में कैद उनके साथी को छुड़वाना था, लेकिन नीरजा सही वक्त पर पायलट्स को इस हाइजैक के बारे में मैसेज पहुंचा देती हैं और पायलट्स वहां से निकल भागते हैं, लिहाजा आतंकवादियों का आधा प्लान चौपट हो जाता है।
आगे नीरजा किस तरह बहादुरी से यात्रियों की जान बचाती है, यह दिखाया गया है। नीरजा अपने साहस और समझदारी से आतंकवादियों के सामने लोगों को समय-समय पर खाना पीना भी देती रहती हैं। नीरजा अपनी हिम्मत से ना केवल आतंवादियों की योजना का नाकाम करती है, बल्कि 359 सैकड़ों लोगों की जान भी बचाती हैं। नीरजा की बहादुरी को देखने के लिए फिल्म देखनी होगी।
निर्देशन
राम माधवानी ने फिल्म के लिए कड़ी मेहनत की है, जो साफ दिखाई देती है। फिल्म शुरू से आखिरी तक बांधे रखने में सफल होती है। नीरजा की जिंदगी की विभिन्न पहलुओं को बखूबी परदे पर उतारा है। सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म में बारीकियों का काफी ख्याल रखा है।
फिल्म कहीं से भी बोझिल नहीं लगती। फिल्म निर्देशक ने नीरजा भनोट के साहस, बहादुरी और संवेदना को काफी संजीदगी से उकेरा है, तो वहीं नीरजा का किरदार निभाते हुए सोनम कपूर ने यह साबित किया है कि अच्छे किरदार उन्हें मिलें तो वह उनके साथ न्याय करेंगी। कहा जा सकता है कि सोनम की अब तक की यह सबसे अच्छी फिल्म है।
पूरी फिल्म सोनम कपूर यानी नीरजा पर केंद्रित है। फिल्म की कहानी न सिर्फ काफी दमदार है, बल्कि असरदार भी है। इसके लिए निर्देशक राम माधवानी भी सलामी के हकदार हैं।
अभिनय
सबसे पहले बात करते हैं सोनम कपूर की। इस फिल्म को देखने के बाद कहा जा सकता है कि यदि फिल्में और किरदार अच्छे मिले, तो सोनम दमदार अभिनय कर सकती हैं । उन्होंने नीरजा की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को बेहतरीन तरीके से पर्दे पर दिखाया।
इसके अलावा, नीरजा की मां के रोल में शबाना और पिता के रोल में हरीश टीकू ने शानदार काम किया है। संगीतकार शेखर रवजियानी का छोटा सा रोल है, लेकिन वे फिट बैठे हैं। आखिर में दिखाया गया नीरजा की मां का मोनोलॉग आपकी आंखे नम कर देगा।
संगीत
फिल्म का संगीत ठीक ठाक है। इसके गाने 'गहरा इश्क' और 'ऐसा क्यों मां' अच्छे हैं। इसके अलावा, एंथम 'जीते हैं चल' पहले ही सुर्खियां बटोर चुका है। 'आखें मिलाएंगे डर से' भी अपनी जगह ठीक है।
ख़ास बात
अच्छी बायोपिक देखना है, तो यह एक बेहतर विकल्प है। यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी। इसके अलावा, सोनम कपूर के फैन उनकी शानदार एक्टिंग के लिए इसे देख सकते हैं।
संबंधित ख़बरें
फिल्म समीक्षा: फितूर
संबंधित ख़बरें
फिल्म समीक्षा: फितूर