फिल्म समीक्षा : जय गंगाजल
फिल्मकार प्रकाश झा सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। तेरह साल पहले प्रकाश ने अजय देवगन के साथ 'गंगाजल' बनाई थी अब वो प्रियंका चोपड़ा के साथ वे 'जय गंगाजल' लेकर आए हैं। पिछली फिल्म को दर्शकों ने खूब सराहा था, लेकिन क्या इस बार भी वही प्यार प्रकाश को मिलेेगा। आइए करते हैं इसकी समीक्षा।
फिल्म : जय गंगाजल
निर्माता - निर्देशक : प्रकाश झा
कलाकार : प्रियंका चोपड़ा, मानव कौल, प्रकाश झा, निनाद कामत, मुरली शर्मा
अवधि: 2 घंटा 38 मिनट
जोनर : एक्शन ड्रामा
रेटिंग: 3 स्टार
'गंगाजल' के 13 साल बाद निर्देशक प्रकाश झा एक्शन ड्रामा फिल्म 'जय गंगाजल' रिलीज हो गई है। इस क्राइम थ्रिलर फिल्म में प्रियंका चोपड़ा लीड रोल में हैं।वे एक बहादुर महिला एसपी की भूमिका निभा रही हैं। पिछली फिल्म में ऐसा ही किरदार अजय देवगन ने निभाया था।
कहानी
'जय गंगाजल' की कहानी एक भ्रष्ट विधायक और ईमानदार पुलिस अफसर की है। कहानी कुछ यूं शुरू होती है। बिहार के बांकेपुर के भ्रष्ट एमएलए बबलू पाण्डेय (मानव कौल) का दबदबा रहता है और बी एन सिंह (प्रकाश झा) वहां के सर्कल बाबू उर्फ डीएसपी हैं, जो बबलू पाण्डेय के बड़े वफादार हैं।
सबकुछ ठीक चल ही रहा होता है कि एक महिला एसपी आभा माथुर (प्रियंका चोपड़ा) की पोस्टिंग बांकेपुर में हो जाती है। इससे बबलू पाण्डेय को असुरक्षा महसूस होने लगती है। दरअसल, बबलू पांडेय और उसका भाई डब्लू (निनाद कामत) अपने फायदे के लिए किसानों की ज़मीन हड़प लेते हैं।
दोनों भाइयों के हड़पने और गुंडागर्दी से पूरा बांकेपुर परेशान रहता है। आभा को पता चलते ही खिलाफ मोर्चा खोलती है। बी एन सिंह बबलू को बचाने की कोशिश में लग जाता है। ऐसे में शुरू होता है धरने, चुनाव, मार-पीट, आत्महत्या का सिलसिला। इन परिस्थितियों में आभा कैसे अपने जॉब के साथ इंसाफ करती है? वह जीत पाती है या नहीं? यह सब आपको थिएटर जाकर ही देखना होगा।
सबकुछ ठीक चल ही रहा होता है कि एक महिला एसपी आभा माथुर (प्रियंका चोपड़ा) की पोस्टिंग बांकेपुर में हो जाती है। इससे बबलू पाण्डेय को असुरक्षा महसूस होने लगती है। दरअसल, बबलू पांडेय और उसका भाई डब्लू (निनाद कामत) अपने फायदे के लिए किसानों की ज़मीन हड़प लेते हैं।
दोनों भाइयों के हड़पने और गुंडागर्दी से पूरा बांकेपुर परेशान रहता है। आभा को पता चलते ही खिलाफ मोर्चा खोलती है। बी एन सिंह बबलू को बचाने की कोशिश में लग जाता है। ऐसे में शुरू होता है धरने, चुनाव, मार-पीट, आत्महत्या का सिलसिला। इन परिस्थितियों में आभा कैसे अपने जॉब के साथ इंसाफ करती है? वह जीत पाती है या नहीं? यह सब आपको थिएटर जाकर ही देखना होगा।
अभिनय
सभी कलाकारों ने अभिनय जबरदस्त किया है। प्रियंका ने तो महिला पुलिस अफसर के किरदार में जान डाल दी है। प्रकाश झा का एक्टिंग डेब्यू है, लेकिन उन्होंने जबरदस्त काम किया है। इसके अलावा, मानव कौल, निनाद कामत और राहुल भट्ट की एक्टिंग की भी तारीफ के काबिल है।
मानव कौल बेहतरीन अभिनेता हैं, इस फिल्म से पहले 'वजीर' में नजर आए थे। बबलू पाण्डेय की भूमिका को सजीव कर दिया है। फिल्म में मुख्य भूमिका होते हुए भी प्रियंका बहुत कम सीन्स में नज़र आईं, वहीं पूरी फिल्म में सबसे ज़्यादा प्रकाश झा नज़र आए। निनाद कामत कई बार ओवर एक्टिंग करते लगेए तो राहुल भट्ट का ज़्यादा इस्तेमाल नहीं हुआ।
निर्देशन
शुरुआत करते हैं पटकथा से। इसकी स्क्रिप्ट आउटडेटेड सी लगी। अचानक फिल्म बोझिल और लंबी लगने लगती है। डायलॉग्स भी सुने सुनाए से लगे। फिल्म के कई सीन प्रिडिक्टेबल हैं। फिल्म का प्लॉट जमीन माफियों, मंत्री, पुलिस और आम आदमी के इर्द गिर्द घूमता है, कनेक्टिविटी में थोड़ी समस्या लगी।
खै़र, इन सबके बावजूद प्रकाश झा एक बेहतरीन निर्देशक हैं और वह काम बहुत अच्छी तरह से करते हैं। लेकिन इस बार एक्टिंग के पचड़े में फंस गए और फिल्म पर एक निर्देशक की पकड़ कमजोर हो गई। फिल्म फर्स्ट हाफ में कई जगह कमजोर नजर आती है। वहीं, कई जगह छोटी-छोटी बातों को उन्होंने नजर अंदाज किया है।
कहानी बांकेपुर, लखीसराय जैसे शहरों की है, जो बिहार में हैं। लेकिन पुलिस अफसर के बैज, यहां तक कि पुलिस स्टेशन तक पर म. प्र. पु. लिखा देखा जा सकता है, मध्य प्रदेश पुलिस की शॉर्ट फॉर्म है। गाड़ियों पर नंबर भी मध्य प्रदेश के दिखाई देते हैं। लगता है हड़बड़ी में गड़बड़ी हो गई।
खै़र, इन सबके बावजूद प्रकाश झा एक बेहतरीन निर्देशक हैं और वह काम बहुत अच्छी तरह से करते हैं। लेकिन इस बार एक्टिंग के पचड़े में फंस गए और फिल्म पर एक निर्देशक की पकड़ कमजोर हो गई। फिल्म फर्स्ट हाफ में कई जगह कमजोर नजर आती है। वहीं, कई जगह छोटी-छोटी बातों को उन्होंने नजर अंदाज किया है।
कहानी बांकेपुर, लखीसराय जैसे शहरों की है, जो बिहार में हैं। लेकिन पुलिस अफसर के बैज, यहां तक कि पुलिस स्टेशन तक पर म. प्र. पु. लिखा देखा जा सकता है, मध्य प्रदेश पुलिस की शॉर्ट फॉर्म है। गाड़ियों पर नंबर भी मध्य प्रदेश के दिखाई देते हैं। लगता है हड़बड़ी में गड़बड़ी हो गई।
संगीत
यह एक एक्शन ड्रामा फिल्म है, जिसमें संगीत का कुछ ख़ास लेना देना नहीं है। फिर भी इसका बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है और फिल्म के कुछ दृश्यों के साथ चलता लगता है।
ख़ास बात
साल 2003 में आई अजय देवगन स्टारर 'गंगाजल' आज भी दर्शकों को पसंद है। इस बार की 'जय गंगाजल' भी पूरी तरह से प्रकाश झा फिल्म है। यदि आप प्रकाश झा की फिल्मों को पसंद करते हैं, तो यह आपके लिए एक अच्छा विकल्प है। प्रियंका चोपड़ा के लिए भी इस फिल्म को देखा जा सकता है।
फिल्म समीक्षा : अलीगढ़