फिल्म समीक्षा रईस
सिल्वर स्क्रीन पर एक बार फिर सत्तर के दशक की सलीम-जावेद की जोड़ी वाली एक्शन फिल्मों का अंदाज लिए फिल्म ‘रईस’ रिलीज़ हुई है। शाहरुख खान की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म एक ग़ैर-कानूनी ढंग से शराब का कारोबार करने वाले कारोबारी की कहानी है। नेशनल अवॉर्ड विनिंग डायरेक्टर राहुल ढोलकिया के डायरेक्शन में तैयार इस फिल्म की आइए करते हैं समीक्षा...
फिल्म : रईस
निर्माता : एक्सेल एंटरटेनमेंट, रेड चिलीज़
निर्देशक : राहुल ढोलकिया
कलाकार : शाहरुख खान, माहिरा खान, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, मोहम्मद जीशान अयूब,
अतुल कुलकर्णी, जयदीप अहलावत, सन्नी लियोन,
अतुल कुलकर्णी, जयदीप अहलावत, सन्नी लियोन,
संगीत : राम संपत
रेटिंग : 4/5
जॉनर : एक्शन क्राइम थ्रिलर
लंबे अरसे से रिलीज़ को तरस रही शाहरुख खान की फिल्म ‘रईस’ 70 और 80 के दशक की टिपिकल मसाला फिल्मों की याद दिलाती है। इस फिल्म का हीरो ग़ैर-कानूनी काम तो करता है, लेकिन वो गरीबों का मसीहा भी है। इस हीरो के साथ है एक खूबसूरत हिरोइन, जो हीरो उसकी परछाई की तरह है। हीरो का एक जिगरी दोस्त, जो उसके लिए अपनी जान भी दे सकता है। फिर एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर, जो अपने काम को पूरी ईमानदारी से पूरा करता है। इन सबके बेबस मां, अत्याचार की मारी जनता, कुछ बुरे लोग और खूब सारा एक्शन। इतने मसाले के बाद के एक जबरदस्त आइटम नंबर, जो हेलेन की याद दिलाता है और खून-खराबे के बीच राहत देता है।
कहानी
फिल्म की कहानी अस्सी के दशक के गुजरात पर आधारित है। यहां रईस (शाहरुख खान) अपनी अम्मी (शीबा चड्ढा) के साथ रहता है। घर की माली हालात बहुत ख़राब रहती है, जिससे रईस का दिमाग़ शुरू से ही धंधे की तरफ ही रहता है।
रईस बचपन में ही स्कूल बैग में शराब रखकर सप्लाई करने लगता है, लेकिन बड़े होने के बाद वो ख़ुद अपना धंधा शुरू करता है। अपने दिमाग़ और निडरता से अवैध शराब कारोबारी में बड़ा नाम बन जाता है।
सबकुछ ठीक चल रहा होता है, तभी एस पी मजूमदार (नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी) रईस के पीछे पड़ जाता है। मजूमदार एक कड़क पुलिस ऑफिसर रहता है, जो शराब के अवैध कारोबार को रोकने की कई कोशिशें करता है। तमाम कोशिशों के बाद भी रईस उसकी पकड़ से आज़ाद ही रहता है। कई उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए इस कहानी का अंत काफी दिलचस्प होता है।
निर्देशन
फिल्म का निर्देशन उम्दा है। फर्स्ट हॉफ काफी कसा हुआ है, लेकिन सेकंड हॉफ में फिल्म आपको अजीब से रॉबिन हुड ज़ोन में लेकर जाती है। यहां अचानक से एंटी हीरो के ख़याल बदलने लगते हैं और वो मसीहा बनने लगता है। सरपट भागती फिल्म हिचकोले लेने लगती है।
ख़ैर, यदि बात करे सिनेमैटोग्राफी की, तो के यू मोहनन का काम कमाल का रहा। फिल्म आपको अस्सी के दशक में ही लेकर जाती है। वहीं इस फिल्म के वन लाइनर भी जबरदस्त हैं। वन लाइनर्स पर फिल्म को दर्शकों की तालियां खूब मिली हैं।
जब सनी लियोनी अपने आइटन नंबर ‘लैला मैं लैला’ लेकर आती हैं, तो दर्शक झूम उठते हैं। वहीं कुछ गाने फिल्म की रफ़्तार बेजा ही सुस्त कर देते हैं।
अभिनय
फिल्म ‘रईस’ को पूरी तरह शाहरुख की फिल्म कहने में दोराय नहीं है। उनका प्रदर्शन भी बेहतरीन रहै है। गुस्से और फुर्ती से भरे शाहरुख इस बार अपनी बाहें फैलाते नहीं, बल्कि दूसरों को तोड़ते नज़र आ रहे हैं। वहीं नवाज़ुद्दीन ने ही शानदार अदाकारी की है। फिल्म में जब-जब दोनों कलाकार एक फ्रेम में नज़र आए, रोमांच चरम पर पहुंचा। मोहम्मद जीशान अयूब, अतुल कुलकर्णी के साथ बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है। हालांकि, पाकिस्तानी अदाकार माहिरा महज एक शो पीस सी ही लगीं।
संगीत
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बढ़िया है, लेकिन बाकी गानों में सिर्फ ‘लैला मैं लैला’ ही कहानी के हिसाब से अच्छा लग रहा है।
ख़ास बात
एक फॉर्मूला एक्शन फिल्म देखना चाहते हैं या शाहरुख खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के फैन हैं, तो ये फिल्म ‘ज़रूर देखें’ की कैटेगरी की है।
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