क्यों पिटे भंसाली, काल्पनिक किरदार या वास्तविक हैं 'रानी पद्मावती'
निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली अपनी फिल्म ‘पद्मावती’ के लिए राजस्थान गए हुए थे, लेकिन शुक्रवार को करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने उन पर इतिहास के साथ छेड़-छाड़ के आरोप लगाते हुए, मारपीट की। इसके बाद भंसाली के साथ हुए इस वाकये के विरोध में पूरा बॉलीवुड अपनी आवाज़ उठा रहा है। फिलहाल भंसाली अपनी टीम के साथ पूरा सेट समेट कर मुंबई आ चुके हैं और अब वो बाकी की शूटिंग यहीं करेंगे।
मुंबई। इन दिनों संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर काफी हो-हल्ला हो रहा है। हाल ही में भंसाली के साथ राजस्थान में मारपीट भी हुई। इस मारपीट को अंजाम देने वाली करणी सेना का आरोप है कि वो रानी पद्मिनी यानी पद्मावती के चरित्र के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इतिहास के ग़लत तथ्य पर्दे पर उतार रहे हैं। हालांकि, करणी सेना के इस आरोप को भंसाली के साथ फिल्म में पद्मावती के किरदार निभा रही दीपिका भी निराधार बता रही हैं।
ख़ैर, रानी पद्मिनी यानी पद्मावती को लेकर इन दिनों चर्चा का बाज़ार गर्म है। कोई इसे काल्पनिक कहानी कह रहा है, कुछ लोग इस सच बता रहे हैं। अपनी सच्चाई के लिए चित्तौड़गढ़ के किले के अलावा कुछ शिलालेख का भी उदाहरण दे रहे हैं।
आपको बता दें कि ‘रानी पद्मावती/पद्मिनी’ को पहली बार पर्दे पर नहीं उतारा जा रहा है। इससे पहले साल 2009 में सोनी टेलीविज़न पर एक शो आया था। ‘चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर’ नाम के इस धारावाहिक का निर्माण नितिन चंद्रकांत देसाई ने किया था। आर्ट डायरेक्शन में चार आवॉर्ड अपने नाम करने वाले नितिन इनदिनों अपने स्टूडियों ‘एनडी स्टूडियो’ की देख रेख में व्यस्त हैं। नितिन के शो ‘चित्तौड़ का रानी पद्मिनी का जौहर’ में पद्मिनी तेजस्वी लोनारी बनी थीं।
अब हम यदि रानी पद्मिनी के बारे में बात करें, तो आज भी उनकी जीवनी को राजस्थान में पढ़ाया जाता है, उन्हें गौरव बताया जाता है और देश दुनिया से आने वाले पर्यटकों को चित्तौड़गढ़ के किले में वह स्थान दिखाए, बताए और समझाए जाते हैं जहां पर सुल्तान खिलजी ने उन्हें देखा था।
रानी पद्मावती/पद्मिनी की कहानी
रानी पद्मिनी या पद्मावती को लेकर पहली कहानी के मुताबिक़ 12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली पर सल्तनत का राज था और विस्तारवादी नीति के तहत सुल्तान ने मेवाड़ पर कई आक्रमण किए। इन आक्रमणों में से एक आक्रमण अलाउदीन खिलजी ने सुंदर रानी पद्मिनी को पाने के लिए किया था। ये कहानी अलाउदीन के इतिहासकारों ने किताबो में लिखी थी ताकि वो राजपूत प्रदेशों पर आक्रमण को सिद्ध कर सकें। कुछ इतिहासकार इस कहानी को ग़लत बताते हैं। उनका कहना है कि ये कहानी मुस्लिमों ने राजपूतों को उकसाने के लिए लिखी थी।
दूसरी कहानी या यूं कहिए की अब तक जुटाई जानकारी का सार। दूसरी कहानी के अनुसार रानी पद्मिनी के पिता का नाम गंधर्वसेन था, जो सिंहल के राजा थे और माता का नाम चंपावती था। रानी पद्मिनी बहुत सुंदर थी और उनके पास बोलने वाला तोता था, जिसका नाम ‘हीरामन’ था। पद्मिनी के बड़ी होने पर उनका स्वयंवर किया गया।
उस स्वयंवर में चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह भी पहुंचे। हालांकि वो पहले से ही शादीशुदा थे। उनकी पहली पत्नी का नाम नागमती था। राजा रावल रतन सिंह ने स्वयंमर जीते और पद्मिनी से विवाह किया। विवाह के बाद पद्मिनी के साथ वापस चित्तौड़ लौट गए।
चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह एक अच्छे शासक और पति होने के अलावा कला के संरक्षक भी थे। उनके दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे, जिनमें से राघव चेतन नाम का संगीतकार भी एक था। राघव चेतन संगीतकार के अलावा काला जादू भी करता है, इसकी जानकारी लोगों को नहीं थी। वह अपनी प्रतिभा का उपयोग दुश्मन को मार गिराने में करता था। ऐसे ही एक दिन राघव चेतन का बुरी आत्माओं को बुलाने का काम कर रहा था और वो रंगे हाथों पकड़ा गया।
इस बात की जानकारी होते ही रावल रतन सिंह ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। इस बात से राघव चेतन रावल रतन सिंह का दुश्मन बन गया। अपने अपमान का बदला लेने के लिए राघव चेतन दिल्ली चला गया। वहां, राघव चेतन एक जंगल में रुक गया जहां पर सुल्तान शिकार के लिए जाया करते थे।
एक दिन जब उसको पता चला कि सुल्तान शिकार के लिए जंगल में आ रहे हैं, तो राघव चेतन ने अपनी कला, यानी बांसुरी बजानी शुरू कर दी। बांसुरी में माहिर राघव चेतन की कला को पहचानते हुए खिलजी ने अपने सैनिकों से उसे अपने पास लाने को कहा। सुल्तान ने राघव चेतन की प्रशंसा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा।
खिलजी के इस प्रस्ताव से राघव चेतन को एक तीर से दो निशाने साधने का मौक़ा मिल गया। पहली तो वो अपनी कला के जरिये खिलजी के दरबार में पहुंचा, तो दूसरे रतन सिंह से बदले के लिए खिलजी को उकसाने लगा।
अब खिलजी, रावल रतन सिंह से जंग को तैयार ही नहीं हो रहा था, तो राघव चेतन ने दूसरा पासा फेंका। अब वो खिलजी को अक्सर रानी पद्मिनी की सुन्दरता के बारे में बताता, जिसे सुनकर खिलजी के भीतर रानी पद्मिनी से मिलने की इच्छा जागी। राजपूतों के बारे में खिलजी पहले से ही जानता था और इसलिए उसने अपनी सेना को चित्तौड़ कूच करने को कहा।
चित्तौड़गढ़ किले की घेरेबंदी के बाद खिलजी ने राजा रतन सिंह को संदेश भेजा कि वह रानी पद्मिनी को अपनी बहन समान मानता है और उससे मिलना चाहता है। खिलजी की बात सुनते ही रतन सिंह ने अपना राज्य बचाने के लिए उसकी बात मान ली, लेकिन रानी तैयार नहीं थी। लेकिन रतन सिंह के काफी कहने के बाद रानी पद्मिनी ने कहा कि वह अलाउदीन को शीशे में अपना चेहरा दिखाएंगी।
जब अलाउदीन को ये खबर पता चली कि रानी पद्मिनी उससे मिलने को तैयार हो गई हैं, वह अपने कुछ सैनिकों के साथ किले में गया।
बताया जाता है कि रानी पद्मिनी को शीशे में देखने के बाद अलाउदीन खिलजी ने उन्हें पाने की ठान ली। वापस अपने शिविर में लौटते समय खिलजी के साथ रतन सिंह भी थे। इस दौरान खिलजी के सैनिकों ने आदेश पाकर और मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया। रतन सिंह की रिहाई की शर्त थी पद्मिनी।
किले में चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने खिलजी को हराने के लिए एक योजना बनाई और खिलजी को संदेशा भेजा कि अगली सुबह पद्मिनी को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा।
अगली सुबह भोर होते ही 150 पालकियां किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की गईं। पालकियां वहां रुक गई जहां पर रतन सिंह को बंदी बनाकर रखा गया था। अचानक इन पालकियों से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा लिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर भाग निकले। बताया जाता है कि गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ जबकि बादल, रतन सिंह को सुरक्षित किले में तक ले गए।
अपने को अपमानित और धोखे में महसूस करते हुए खिलजी ने गुस्से में आकर अपनी सेना को चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण करने का आदेश दिया। किला मजबूत था और खिलजी की सेना किले के बाहर ही डट गई। खिलजी ने किले की घेराबंदी कर दी और किले में खाद्य आपूर्ति धीरे-धीरे समाप्त हो गई। मजबूरी में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और युद्ध के लिए ललकारा। रतन सिंह की सेना अपेक्षानुसार खिलजी के लड़ाकों के सामने ढेर हो गई और खुद रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुए।
रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुए, यह जानकारी होते ही पद्मिनी ने चित्तौड़ की औरतों से कहा कि अब हमारे पास दो विकल्प हैं या तो हम जौहर कर लें या फिर विजयी सेना के समक्ष अपना निरादर सहें।
कहा जाता है कि सभी महिलाओं की एक ही राय थी। एक विशाल चिता जलाई गई और रानी पद्मिनी के बाद चित्तौड़ की सारी औरतें उसमें कूद गईं और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गए। जिन महिलाओं ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोकगीतों में जीवित है, जिसमें उनके कार्य का गौरव बखान किया जाता है।