फिल्म समीक्षा: रंगून
निर्देशक विशाल भारद्वाज ने पहले शेक्सपीयर की लिखी कहानियों से प्रेरित होकर फिल्में बनाई और अबकी बार वो कुछ अलग करने निकल पड़े। इस बार 40 के दशक के भारत में होने वाली गतिविधियों पर केंद्रित त्रिकोणिय प्रेम कहानी फिल्म ‘रंगून’ बनाई। इस त्रिकोणिय प्रेम कहानी की शुरुआत युद्ध के दृश्यों से होती है। ये उस दौर को दिखाती है, जहां एक तरफ दूसरा विश्वयुद्ध पूरे जोर पर था, तो वहीं दूसरी तरफ भारत में भी आज़ादी की लड़ाई शुरू थी। कंगना रनौत, सैफ अली खान और शाहिद कपूर के अभिनय से सजी फिल्म की करते हैं समीक्षा।
फिल्म : रंगून
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला, विशाल भारद्वाज
निर्देशक : विशाल भारद्वाज
कलाकार : कंगना रनौत, शाहिद कपूर, सैफ अली खान, रिचर्ड मैकेबे
संगीतकार : विशाल भारद्वाज
रेटिंग : 3/5
जॉनर : वॉर ड्रामा
विशाल भारद्वाज दुखांत फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार वो आज़ादी की लड़ाई, महात्मा गांधी का अहिंसा आंदोलन और सुभाष चंद्र बोस को कथानक में बुनकर लाए हैं। प्रेम-त्रिकोणिय फिल्म में चालीस के दशक के भारत को दिखाने की कोशिश की गई है।
कहानी
फिल्म ‘रंगून’ की कहानी है एक्शन क्वीन जूलिया (कंगना रनौत) की। जूलिया, रूसी बिलीमोरिया (सैफ अली खान) की प्रोडक्शन कंपनी में काम करती है। रूसी और जूलिया को एक-दूसरे से प्रेम है, लेकिन प्रेम कम और अहसान ज़्यादा नज़र आता है।
वहीं दूसरी तरफ द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा है और सुभाष चंद्र बोस की आईएनए भारत को अंग्रेजों से आज़ाद कराने में जुटी है। इसी बीच एक मिशन शुरू होता है। इस मिशन के दौरान ही जूलिया की मुलाक़ात होती है, नवाब मलिक (शाहिद कपूर) से। नवाब मलिक ब्रिटिश सेना में भारतीय सैनिक है, जो 8 महीने जापानियों के कैद में युद्धबंदी के रूप बिताने के बाद, वहां से भाग निकलता है। नवाब मलिक के इस साहस के कारण सभी उसकी इज्जत करते हैं।
एक घटनाक्रम में जूलिया और उसकी सुरक्षा में तैनात नवाब मलिक बाकी टुकड़ी से बिछड़कर दुश्मन के इलाक़े में फंस जाते हैं। दुश्मन के इलाक़े से निकलने के दौरान कई वाकये होते हैं और फिर इन दोनों में इश्क़ हो जाता है, लेकिन इस प्यार की मे कई पेंच हैं। मसलन, युद्ध, वास्तविकता और रूसी बिलिमोरिया।
निर्देशन
हर बार की तरह इस बार भी विशाल भारद्वाज का निर्देशन काबिल-ए-तारीफ रहा। रियल लोकेशन पर हुई शूटिंग, फिल्म क दर्शनीय बनाती है। चालीस के दशक की डिटेलिंग पर बखूबी ध्यान रखा गया है। सिनेमैटोग्राफी में भी इस फिल्म को काफी अच्छे अंक मिलते हैं।
अब यदि रफ्तार की बात करें, तो कुछ धीमी रही है। इसकी रफ्तार बढ़ाई जा सकती थी। कहानी को खींचने की वजह से क्लाइमैक्स कुछ कमज़ोर सा हो जाता है।
विशाल जिस इंटेनसिटी के लिए जाने जाते हैं, वो इस बार कम नज़र आई। एक तरफ आज़ादी के लिए आईएनए का गठन दिखाई दे रहा है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ दो प्रेमियों की कहानी। कुछ भी पूरा नहीं दिखा, बस एक खिचड़ी सी पक गई।
अभिनय
अभिनय की बात करें, तो एक बार फिर कंगना रनौत ने साबित कर दिया है कि वो मौजूदा दौर की सशक्त अभिनेत्री हैं। वहीं, सैफ अली खान ने भी बढ़िया काम किया है। शाहिद कपूर और उनकी अदायगी ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि फिल्म दर फिल्म उनका काम और भी सहज हो रहा है। मेजर जनरल का किरदार निभाने वाले एक्टर रिचर्ड मैकेबे ने फिल्म में चार चांद लगाए हैं। फिल्म की कास्टिंग काफी सटीक है और इसकी वजह से हरेक किरदार बहुत ही रियल लगता है।
संगीत
फिल्म का संगीत बस ठीक-ठाक ही कहा जाएगा। इस से बेहतर की उम्मीद की जा सकती थी।
ख़ास बात
यदि कंगना रनौत की एफर्टलेस एक्टिंग आपको देखनी है, तो यह फिल्म आपके लिए ट्रीट है। वहीं सैफ और शाहिद के दीवाने हैं, तो भी यह मस्ट वॉच की कैटेगरी में ती है। हालांकि, आपको विशाल की ‘ओमकार’ और ‘मक़बूल’ या फिर ‘हैदर’ की सी अनुभूति नहीं मिलेगी।
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