भारतीय मूल की ऑस्कर के लिए नॉमिनेटेड पहली अभिनेत्री थी मरले
89वें अकादमी पुरस्कार ( ऑस्कर ) को लेकर काफी चर्चा हो रही है। भारत इस बार भी उम्मीद भरी निगाहों से ऑस्कर को ताक रहा है। इसकी वजह है भारतीय मूल के अभिनेता देव पटेल। देव फिल्म ‘लॉयन’ के लिए बेस्ट एक्टर की कैटेगरी में नॉमिनेटेड हैं और वो भारतीय मूल के तीसरे कलाकार हैं, जो नॉमिनेट हुए हैं। देव से पहले बेन किंग्सले और बेन से पहले मरले ओ ब्रायन ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो चुकी हैं। आइए जानते हैं मरले की कहानी, जो जीवनभर खुद को भारतीय बताने से कतराती रही हैं।
मुंबई। फिल्मों के लिए दिए जाने वाले पुरस्कारों में ‘ऑस्कर अवॉर्ड’ ख़ास अहमियत रखता है। अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर) पर भी भारतीय नज़र उम्मीद से गड़ी हैं। इसकी वजह हैं अभिनेता देव पटेल।
भारतीय मूल के देव फिल्म ‘लॉयन’ के लिए बेस्ट एक्टर की कैटेगरी में नॉमिनेटेड हैं। देव से पहले बेन किंग्सले भी बेस्ट एक्टर के लिए नॉमिनेट हो चुके हैं और उन्होंने एक अवॉर्ड प्राप्त भी किया था।
बेन को फिल्म ‘गांधी’ के लिए बेस्ट एक्टर का एकेडमी अवॉर्ड मिला था। लेकिन बेन से भी पहले अभिनेत्री मरले ओ ब्रायन एकेडमी अवॉर्ड्स में बेस्ट एक्ट्रेस के लिए नॉमिनेड हो चुकी थीं। हालांकि, अवॉर्ड उनके हाथ न लगा था।
ख़ैर, मरले पहली एंग्लो-इंडियन अदाकारा थीं, जो एकेडमी अवॉर्ड्स तक पहुंची थी। अब यह बात अलग है कि वो ख़ुद को भारतीय नहीं कहती थीं। उनके निधन के बाद आई बॉयोग्राफी में इस बात का खुलासा हुआ कि उनका भारत से क्या नाता है?
साल 1911 में मुंबई में इनका जन्म हुआ था। उस वक्त उनका नाम एसले मरले ओ ब्रायन रखा गया था। मरले का पालन-पोषण उनकी दादी ने किया था। तक़रीबन सत्रह साल की उम्र में जब वो इंग्लैंड गईं, तभी उन पर फिल्ममेकर एलेक्ज़ेंडर कोरडा की नज़र पड़ी। कोरडा हंगरी के रहने वाले थे।
कोरडा ने मरले को फिल्म ‘द प्रायवेट लाईफ ऑफ हेनरी VIII’ का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव को तुरंत मरले ने मंजूर किया। इस तरह उनके फिल्मी करियर का शुभारंभ हुआ। इस फिल्म में उनके नाम की स्पेलिंग भी बदली गई। मरले ओ ब्रायन से अब वो मरले ओबरॉन हो गईं।
इसके बाद कोरडा से मरले ने शादी कर ली और फिर कोरडा की कई फिल्मों में वो बतौर लीड एक्ट्रेस नज़र आईं। इन्हीं में से एक फिल्म थी साल 1935 में आई फिल्म ‘डार्क एंजेल’, जिसके लिए वो एकेडमी अवॉर्ड्स में बेस्ट एक्ट्रेस की कैटेगरी में नॉमिनेट हुईं।
हालांकि, यह पुरस्कार उनकी झोली में तो नहीं आया, लेकिन उनके अभिनय को डंका खूब बजा। वैसे, मरले की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। जब तक वो ज़िंदा रहीं, खुद को भारतीय होने से छुपाती रहीं। वो हमेशा अपनी जन्मभूमि तस्मानिया को बताती रहीं, जहां उनके पिता की शिकार करते समय दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
उन्होंने अपने जीवन में कुल जमा तीन शादियां कीं। इसके अलावा उनका एक अलग ही रिकॉर्ड है। वो बिना मेकअप के कभी भी कैमरे के सामने नहीं आईं। इस बात का ख़याल मरले के साथ कोरडा भी रखते थे। इसकी वजह यह थी कि उस समय गहरे रंग वाले कलाकारों को काम करने की इजाजत नहीं दी जाती थी।
मरले साल 1937 एक भयानक हादसे की शिकार हुईं, तब लगा कि बस उनका करियर अब ख़त्म हुआ। लेकिन मरले एक साल बाद फिल्म ‘वॉदरिंग हाईट्स’ से वापसी की। इस फिल्म के लिए उनको काफी प्रशंसा मिली।
साल 1973 में आई फिल्म ‘इंटरवल’ मरले की आखिरी फिल्म रही। उसके बाद साल 1979 में हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई।
मरले की ज़िंदगीं में कई उतार-चढ़ाव आए, किसी दिलचस्प फिल्म की सी ज़िंदगी थी उनकी। हैरत की बात है कि किसी बड़े फिल्मकार की निगाह मरले की कहानी पर क्यों न गई।