फिल्म समीक्षा : ट्यूबलाइट

सलमान खान और कबीर खान की जोड़ी इस बार ‘ट्यूबलाइट’ लेकर आई है। यह एक वॉर ड्रामा फिल्म है। भारत-चीन युद्ध बैकड्रॉप पर बनी यह फिल्म साठ के दशक की कहानी को दिखाने की कोशिश है। अभी तक दोनों की जोड़ी की फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड कायम किए हैं, तो आइए करते इस फिल्म की समीक्षा...

फिल्म ट्यूबलाइट में सलमान खान के साथ मैटिन
फिल्म : ट्यूबलाइट
निर्माता : सलमान खान फिल्म्स, कबीर खान फिल्म्स 
निर्देशक : कबीर खान
कलाकार : सलमान खान, सोहेल खान, ज़ू ज़ू, मैटिन रे टंगू, मोहम्मद जीशान अयूब, ओम पुरी
संगीत : प्रीतम
जॉनर : वॉर ड्रामा 
रेटिंग : 3/5

कबीर खान और सलमान खान की जोड़ी के नाम ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘एक था टाइगर’ सरीखी सफलता दर्ज हैं। इस जोड़ी की तीसरी फिल्म भी सिनेमाघरों में उतर गई है। ईद अब तक सलमान की सात फिल्में रिलीज़ हुई हैं और सभी सफल रही हैं। इस बार फिल्म का कारोबार कैसा रहता है, वो वक़्त और सलमान के फैन ही बताएंगे। 

कहानी 

यह कहानी है भरत सिंह बिष्ट (सोहेल खान) और लक्ष्मण सिंह बिष्ट (सलमान खान) की। बचपन में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो जाती है। इन दोनों भाइयों में बहुत प्रेम रहता है। जहां भरत ठीक रहता है, वहीं लक्ष्मण का दिमाग़ कुछ कमज़ोर रहता है, जिसकी वजह से उसे सब ‘ट्यूबलाइट’ कहते हैं। 

ख़ैर, दोनों भाई एक-दूसरे का खयाल रखते हैं। बड़े होने पर भरत को आर्मी की तरफ से युद्ध लड़ने के लिए बाहर जाना पड़ता है, जिसकी वजह से लक्ष्मण दुखी हो जाता है। वह नहीं चाहता कि उसका भाई युद्ध लड़ने जाए। कुछ समय के बाद जब भरत घर वापस नहीं आता, तो लक्ष्मण उसकी तलाश में निकल जाता है।

फिल्म में बन्ने चाचा (ओम पुरी) भी हैं, जिन्होंने लक्ष्मण को पाला है। उन्होंने उसे हर मुसीबत में गांधी जी का ज्ञान इस्तेमाल करने की सीख दी है। वहीं नारायण (मोहम्मद ज़ीशान) इलाके का बदमाश है, जो लक्ष्मण को बिना वजह थप्पड़ मारता रहता है। लक्ष्मण को नारायण के थप्पड़ से चोट नहीं लगता, लेकिन उसको अपनी बेइज्जती महसूस होती है। फिर उसकी ज़िंदगी में लिलिंग (जू जू) और चुलबुला गुओ (मैटिन) जगतपुर आते हैं। ये दोनों चीन प्रवासी हैं। 

अब जब लक्ष्मण अपने भाई को तलाशने निकल पड़ता है, तो रास्ते में कई बातों का अहसास होता है। उसके भीतर एक यकीन होता है कि वह अपने भाई को वापस ले आएगा। क्या इस काम में लक्ष्मण सफल हो पाता है? 

निर्देशन-पटकथा 

फिल्म का निर्देशन अच्छा है और सिनेमैटोग्राफी, लोकेशंस भी कहानी के हिसाब से अच्छे हैं, क्योंकि कबीर खान हमेशा से ही वर्जिन लोकेशन पर शूटिंग करने के लिए जाने जाते हैं। इस वजह से फिल्मांकन के दौरान कहानी काफी अच्छी लगती है। कैमरावर्क और कहानी का फ्लो भी अच्छा है।

कहानी काफी भावुक है, जो सलमान खान की टिपिकल फिल्म से अलग है। सलमान की मसाला फिल्मों जैसी यह फिल्म नहीं है। इस वजह से हो सकता है कि एक खास तरह की ऑडियंस को ही यह पसंद आए। फिल्म में कई घटनाक्रम अलग-अलग समय पर होते रहते हैं, जिनके बीच सामंजस्य और फ्लो देखने को नहीं मिलता और कहानी काफी बिखरी-बिखरी सी नजर आती है। फिल्म की स्क्रिप्ट बेहतर हो सकती थी। 

अभिनय

सलमान खान का बेहतरीन परफॉर्मेंस फिल्म में देखने को मिलेगा। यहां तक कि उनके करियर की सर्वोत्तम फिल्म कही जा सकती है। उनके चेहरे की मासूमियत और उनकी आंखों में पानी कुछ लोगों की आंखें नम भी कर सकता है। सलमान के अलावा मंझे हुए कलाकार ओम पुरी हैं, जो अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका काम भी काफी उम्दा है। सोहेल भी काफी गंभीर दिखे हैं। बाल कलाकार मेटिन रे टंगू ने भी बढ़िया काम किया है। चाइना मूल की अभिनेत्री ज़ू ज़ू का काम भी बेहतरीन है। मोहम्मद जीशान अयूब ने सराहनीय काम किया है। शाहरुख खान का कैमियो सरप्राइज़ करता है। 

संगीत

फिल्म का संगीत अच्छा है और गाने फिल्म की गति को बढ़ाते हैं। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर उम्दा है। 

ख़ास बात 

यदि सलमान खान के फैन हैं, तो यह फिल्म आपको एक बार ज़रूर देखनी चाहिए।

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