‘सच’ बर्दाश्त नहीं होता न करण जौहर!
ख़ुशफहमी के शिकार फिल्मकार करण जौहर महीने-दर-महीने अपनी टुच्ची अभिव्यक्ति के जरिये अपने व्यक्तित्व की लानत-मलामत करने पर उतारू हो चुके हैं। ऐसा भी क्या करण कि आपसे एक ‘सच’ बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है। महीनों पहले बोला गया एक ‘सच’ का ‘मज़ाक’ तथाकथित करीबियों के संग उड़ाए जा रहे हैं। मंच देश में हो या विदेश में, दिल में चुभी ‘सच’ की ‘फांस’ को निकालने की कोशिश में जुटे हुए हैं। क्या बात है कि एक ‘सच’ बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
मुंबई। आईफा अवॉर्ड 2017 के मंच पर जो कुछ हुआ, उससे सैफ़ अली खान, वरुण धवन और करण जौहर की मानसिकता को दिखाने के लिए काफी है। कैसे किसी एक ‘सच’ बात से यह तीनों ‘बॉलीवुडिया बच्चे’ तिलमिलाए बैठे हैं।
हो सकता है इस ‘सच’ ने कुछ और लोगों को आहत किया हो, लेकिन वो यूं गाहे-बगाहे मुंह उठाए कुछ भी नहीं बोलते। इस मुद्दे को बार-बार लगातार करण उछालते नज़र आ जाते हैं।
मज़ेदार बात तो यह है कि जब भी वो इस मुद्दे को उछालते हैं, उनकी थू-थू होती है और फिर उस बेइज्जती से बचने का एक अलग ही उपचार करने बैठ जाते हैं।
जब भी करण इस विवाद में घिर जाते हैं, चुपके से अपने बच्चों के पहलू में छुप जाते हैं। कभी उनके होने की ख़बर फैलाने लगते हैं, तो कभी उनकी पहली तस्वीर जारी करने लगते हैं। पिता होकर अपने बच्चों का सहारा लेकर मुंह छुपाए फिरते हैं।
ख़ुद के इर्द-गिर्द इतना झूठ भर लिया है कि महीनों पहले बोले गए एक ‘सच’ को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। यह बहुत ही भयावह स्थिति है और तब तो और जब आप खुद ‘सिंगल पेरेंट’ की भूमिका निभाने जा रहे हैं।
हमारी आपसे यही इल्तज़ा है कि अपने यश-रूही को ‘सच’ बोलने के साथ ‘सच’ बर्दाश्त करने का भी हुनर सिखाइएगा।
‘नेपोटिज़्म रॉक्स’ बोलकर सैफ़ अली खान, वरुण धवन और करण जौहर ने अपनी ओछी मानसिकता से जाहिर कर दिया कि किसी ‘ग़ैरफिल्मी’ परिवार से आने वाले कलाकारों के लिए फिल्म इंडस्ट्री कितनी कठोर हो सकती है।
कुछ दिनों पहले अनुपम खेर को दिए अपने इंटरव्यू में कंगना ने इस विषय पर विस्तार पूर्वक चर्चा की। कंगना ने स्टार किड के बॉलीवुड में करियर बनाने के बात को लेकर अनुपम से कहा कि स्टार किड कहते हैं कि उनपर सफलता का दबाव रहता है। एक दर्शक वर्ग होता है, जो उनसे उम्मीदें लगाए बैठा रहता है।
कंगना ने कहा कि सोचिए, अनुपम सर हम और आप जैसे गैरफिल्मी परिवार के बच्चों को वो दर्शक वर्ग सालों की कड़ी मेहनत के बाद मिलते हैं। वहीं इन स्टार किड के पास ये ऑडियंस रहती है।
कंगना की इस बात में कोई दो-राय नहीं है। हर्षवर्धन कपूर ने भी अपने इंटरव्यू में इस बात की तस्दीक की थी कि स्टार किड होने का फायदा यह है कि आपको घंटों ऑडिशन के लिए नहीं खड़ा रहना पड़ता। अपने आप को साबित करने के मौक़े आपको अपने अभिभावको की बदौलत मिल जाते हैं।
दबे-छुपे लफ़्जों में ही सही लेकिन स्टारकिड मानते हैं कि फिल्मी परिवार से आने के उनको फायदे तो होते ही हैं। साथ ही किसी गैरफिल्मी परिवार से आने की तुलना में उनका संघर्ष कम होता है। हालांकि, खुद को साबित करने का दबाव तो रहता ही है, लेकिन दबाव किस पर नहीं होता।
ख़ैर, आईफा के मंच पर किए गए ‘नेपोटिज़्म रॉक्स’ के लिए जब वरुण धवन घिरने लगे, तो उन्होंने ट्विटर पर माफी मांग ली। वहीं सैफ़ ने भी मौक़ा देख कर एक इंटरव्यू में अपनी करतूत के लिए खेद जता दिया।
वहीं करण लीपा-पोती में जुट गए। मामला तूल पकड़ता देख, अपने बच्चों की तस्वीर साझा करने जुट गए, लेकिन लगा कि बात नहीं बनी, तो फिर इंटरव्यू देकर सफाई देने लगे।
बहरहाल, यह बात समझ में नहीं आती कि जब कोई मुद्दा लगभग ठंडा हो चुका था, तो फिर उसे हवा देने की कोशिश क्यों की गई? इसके पीछे की मंशा क्या थी? बहुत सोचने के बात सिर्फ एक ही बात समझ आती है कि करण के शो ‘कॉफी विद करण’ में आकर कंगना के कहे ‘सच’ ने उनको भीतर से झंझोड़ दिया। करण, ख़ुद भी यह बात जानते हैं कि वो ‘नेपोटिज़्म’ के ध्वजारोहक हैं।
अब अगर करण के इस शो की बात करें, तो कहा जाता रहा है कि इस शो में की गई बात को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह सब हंसी मज़ाक का हिस्सा है।
यदि यह बात सही है, तो फिर करण खुद क्यों नहीं इस बात को मज़ाक मान पा रहे हैं। दरअसल, करण भीतर से यह जानते हैं कि कंगना ने जो कुछ भी कहा है वो सच है। शायद अपने व्यक्तित्व के उस हिस्से को वो खुद से भी छिपाना चाहते हैं, लेकिन कंगना ने एक हंसी के साथ उसके परतें खोल दीं।
उस परत के सामने आने के तिलमिलाए करण ने तकरीबन दो सप्ताह बाद ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉनिक्स एक इवेंट में खुलकर कंगना की उस टिप्पणी पर कटाक्ष किया।
वहीं इस बीच कंगना पूरे मामले में चुप्पी साधे रहीं और अपनी गरिमा को बरकरार रखा। इसके बाद जब कंगना ने करण की बातों पर अपना खंडन दिया, तो कंगना को ‘फुटेज’ न मिल पाए, इसके लिए अपने सरोगेसी की बात सार्वजनिक कर दिया। हालांकि, वो ध्यान भटकाने में कामयाब नहीं हो पाए।
फिर अप्रैल में अनुपमा चोपड़ा के साथ टाउन हाल चैट के दौरान एक बार फिर करण ने नेपोटिज़्म के मुद्दे को कुरेदा। फिर कहा कि वो इसे भूल चुके हैं और तूल नहीं देना चाहते।
अरे! भूलने के बाद भी इस बारे में बात कर रहे हैं। किसे बेवकूफ समझा है करण साहब।
लगता है कि उम्र के इस पड़ाव पर भी ‘बुद्धिमानी’ से पाला नहीं पड़ा। आईफा अवॉर्ड के मंच पर गिग की शक़्ल में की गई ओछी हरकत तो यही साबित करती है कि करण में ‘बचपना’ बाक़ी है। साथ ही यह बी समझ आता है कि उनको औरतों की इज्जत करनी नहीं आती है।
करण, वाकई ‘नेपोटिज़्म’ की बदौलत ही खा रहे हैं, क्योंकि जो भी सफलता उनके जिम्मे आई है, वो उनकी कमाई नहीं, बल्कि उनके पिता यश जौहर विरासत है।
यश जौहर और यश चोपड़ी की वजह से ही उनको लगातार मौक़े मिले और बड़े सितारों का साथ मिला, जिससे उनको आज एक पहचान मिली। यश जौहर की क्रेडिट ही थी, जिसकी वजह से अभिनेता प्राण ने अपना मेहनताना दस साल तक नहीं मांगा। एक निर्माता और अभिनेता के बीच का वो रिश्ता जो यश जौहर ने कायम किया, करण शायद ही कभी कर पाएं।
सब कुछ रेडीमेड पाने की आदत वालों को संघर्ष शब्द का मतलब समझ नहीं आ सकता। तभी तो तीन सितारा पुत्रों ने मिलकर एक उस गैरफिल्मी हस्ती के कहे ‘सच’ का मज़ाक बनाया, जो वहां मौजूद भी न थी।
उस अभिनेत्री के सच को पचा नहीं पा रहे थे, जिसने अपना मुक़ाम खुद बनाया है। लगातार मेहनत करके। फिल्मों में उसके रोल पर कैंची चली, कभी किसी अभिनेता ने उसको बपौती समझ हाउस अरेस्ट किया, कभी किसी अभिनेता के बेटे ने उस पर काला जादू का आरोप लगाया। यह सब वो कमजोर इंसान रहे हैं, जो उस मजबूत महिला के बेखौफ अंदाज से खौफजदा रहे हैं।
...और आप करण जौहर, परिवार के आदर्श, प्यार की महिमा से भरी फिल्में बनाने वाले खुद को यूथ आईकॉन कहलवाना चाहते हो। ठहरो ज़रा, सोचो तनिक।