कहां ‘चूक’ गए इम्तियाज़ अली?
मासूम सी कहानी के साथ सुफियाना इश्क़ का ख़ुमार देने वाले निर्देशक के करियर की आठवीं फिल्म बोझिल और बेदम क्यों कर हो गई? बड़ी स्टारकास्ट की मेगाबजट फिल्म आख़िर बॉक्स ऑफिस पर क्यों धराशाई हो गई? कभी ज़हनी निर्देशक के तौर पर पहचान बनाने वाले इम्तियाज़ अली की फिल्म को दर्शकों ने क्यों नकार दिया....आख़िर कहां चूक गए इम्तियाज़?
मुंबई। ‘सोचा न था’, ‘जब वी मेट’, ‘लव आज कल’, ‘रॉकस्टार’ और ‘हाइवे’ सरीखी फिल्में बनाने वाले इम्तियाज़ अली की हालिया रिलीज़ फिल्म ‘जब हैरी मेट सेजल’ बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी।
फिल्म समीक्षकों से लेकर दर्शक तक फिल्म को बोझिल-बेदम बता रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक बार नज़र दौड़ाने पर पाएंगे कि कोई कह रहा है कि फिल्म में कहानी नहीं है, तो कोई कह रहा है कि इम्तियाज़ अली का जादू ख़त्म हो गया है। किसी ने लिखा है कि शाहरुख के स्टारडम के आगे इम्तियाज़ झुक गए। कुछ तो यह भी लिख रहे हैं कि इम्तियाज़ के करियर की सबसे बकवास फिल्म ‘जब हैरी मेट सेजल’ है।
यही वो निर्देशक है, जिसे कभी शाहरुख खान ने आज के दौर का यश चोपड़ा कहा था। इस फिल्म के बाद ख़ुद शाहरुख भी सोच रहे होंगे कि क्या से क्या हो गया। बीते कुछ समय से शाहरुख की फिल्में यूं भी कुछ ख़ास कमाल नहीं कर रही हैं, तो उनको लगा होगा कि जिस निर्देशक ने अभय देओल, शाहिद कपूर, रणबीर कपूर और सैफ अली खान को हिट दिलाया, शायद मेरे भी ख़ाते में एक और ब्लॉकबस्टर आ जाए। लेकिन ऐसा हो न सका।
ख़ैर, शाहरुख को छोड़ इम्तियाज़ पर चर्चा करते हैं। इम्तियाज़ के फिल्मी फ़ार्मूले पर ग़ौर करेंगे, तो पाएंगे कि वो एक ही लाइन पर फिल्में बनाते आए हैं। अभी तक की सारी फिल्मों में आपको इश्क़, सफर, असमंजस, तड़प देखने को मिलेगा। दो अजनबी मिलेंगे, एक सफर तय करेंगे, प्यार होगा, वो बिछड़ेंगे, फिर साथ रहना है नहीं, यह सोचेंगे। इसलिए तो उनको ट्रीटमेंट का डायरेक्टर कहना सही होगा।
अपने इस फ़ार्मूले पर इम्तियाज़ को इतना विश्वास था कि वो भूल गए कि फिल्म में कहानी ज़रूरी है और कहानी के किरदार भी ख़ासे ज़रूरी हैं। वो दिन लद गए जब पर्दे पर एक सुपरस्टार जोड़े को यूरोप की हसी वादियों में बाहों में बाहें डाल कर घूमता हुआ दिखा कर दर्शक को मूर्ख बना दिया जाता था।
फिल्म ‘जब हैरी मेट सेजल’ को देख कर लगता है कि निर्देशक पर सितारा हावी हो गया था। इस बार फिल्म के किरदार अपने आपे से बाहर निकलते दिखाई दे रहे थे। सेजल का ख़ुद को स्वार्थी कहना, फिर अंगूठी मिलने पर हैरी को अपने साथ भारत लाने की बात कहना। वहीं हैरी का पंजाब को बार-बार याद करना, जबकि उसका किरदार ही जुदा है। यह सब खलता है।
फिल्म को देख कर कहीं भी इम्तियाज़ का जादू देखने को नहीं मिलता है, हर बार लगता है कि निर्देशक की कुर्सी शाहरुख के कब्ज़े में है।
इम्तियाज़ ने धीरे-धीरे यह सफर तय किया है, लेकिन लगता है कि इम्तियाज़ के इस सफर की मंजिल सिर्फ शाहरुख खान ही थे। तभी तो शाहरुख तक पहुंच कर इम्तियाज़- इम्तियाज़ न रहे। वो शाहरुख के आभामंडल में ही समा गए।
हालांकि, इस असफलता का ठीकरा शाहरुख पर बिलकुल भी नहीं फोड़ जा सकता, क्योंकि इम्तियाज़ ने अपनी खींची लकीर को खुद ही छोड़ना शुरू कर दिया था। उनकी पिछली फिल्म ‘तमाशा’ के हश्र के बाद भी चेतना नहीं आई। उनको समझना चाहिए था कि अब दर्शकों को कुछ अच्छा चाहिए।
एक अच्छे फिल्मकार का बह जाना, अच्छा नहीं लगता। उम्मीद करते हैं कि जिन जड़ों को इम्तियाज़ भूल चुके हैं, उसे दोबारा याद कर लें।