फिल्म समीक्षा: भूमि

संजय दत्त फिल्म ‘भूमि’ से कमबैक कर रहे हैं। ओमंग कुमार के निर्देशन में बनी इस एक्शन पैक फिल्म में संजय के अलावा अदिति राव हैदरी, सिद्धांत गुप्ता, शरद केलकर और शेखर सुमन मुख्य भूमिका में हैं। पिता-पुत्री के रिश्ते के इर्द-गिर्द बुनी इस रीवेंज़ ड्रामा में कितना दम है, आइए करते हैं इसकी समीक्षा...

फिल्म भूमि में संजय दत्त
फिल्म : भूमि
निर्माता : टी-सीरीज़, लीजेंड स्टूडियो
निर्देशक : ओमंग कुमार
कलाकार : संजय दत्त, आदिति राव हैदरी, सिद्धांत गुप्ता, शरद केलकर, शेखर सुमन
संगीतकार : सचिन-जिगर, इस्माइल दरबार
जॉनर : एक्शन थ्रिलर
रेटिंग : 2/5


‘मैरीकॉम’, ‘सरबजीत’ सरीखी फिल्मों को बनाने वाले ओमंग कुमार इस बार संजय दत्त के एक्शन अवतार को स्क्रीन पर लेकर आए हैं। संजय ने इस फिल्म को अपनी कमबैक फिल्म के रूप में चुना है। क्या कुछ है इसकी कहानी और दर्शकों को क्या कुछ देखने को मिलेगा। आइए जानते हैं। 

कहानी 

उत्तरप्रदेश के आगरा की कहानी है। यहां अरुण सचदेव (संजय दत्त) अपनी बेटी भूमि (अदिति राव हैदरी) के साथ रहते हैं। अरुण की जूतों की दुकान है, उससे ही पिता-पुत्री जीवन यापन करते हैं। अरुण का दोस्त और पड़ोसी ताज (शेखर सुमन) है। भूमि, नीरज (सिद्धांत गुप्ता) से प्रेम करती है और दोनों की शादी भी तय हो जाती है। वहीं भूमि से कॉलोनी का ही एक लड़का एकतरफा प्यार करती है।

अपनी चाहत को पाने के लिए वो अपने भाई धोली (शरद केलकर) के पास जाता है। फिर शादी से ऐन पहले दोनों मिलकर भूमि को उठा ले जाते हैं और उसका रेप कर देते हैं, जिसके बाद भूमि और उसके पिता के जीवन में भूचाल आ जाता है। इसके बाद अरुण अपनी बेटी भूमि के लिए इंसाफ मांगने निकल पड़ता है। वो पुलिस स्टेशन से लेकर कोर्ट रूम तक के चक्कर लगाता। क्या पिता अरुण अपनी बेटी भूमि को न्याय दिलवा पाता है। इसके लिए थिएटर जाना होगा। 

समीक्षा 

फिल्म की कहानी काफी घिसी-पिटी है, लेकिन इसका डारेक्शन और बैकड्रकप अच्छा है। फिल्म में सरप्राइज़ एलीमेंट नहीं है, दूसरे सीन का अंदाज़ा पहले के खत्म होने से पहले ही लगाया जा सकता है। वहीं इस तरह की कहानियों को उभारने के लिए अच्छे डायलॉग की दरकार होती, वो भी इस फिल्म में नदारत है। 

इस फिल्म से कमबैक करने के फैसले पर संजय को ज़रूर पछतावा हो सकता है। कमबैक के लिए किसी दूसरी फिल्म के बारे में वो सोच सकते थे। 

ख़ैर, यदि अभिनय के बारे में बात की जाए, तो संजय बाजी मार ले जाते हैं। उनकी उम्दा अदाकारी से आपकी आंखे नम हो सकती हैं। इसके अलावा अदिति ने भी बढ़िया प्रदर्शन किया। लेकिन फिल्म में खलनायक बने शरद केलकर वाकई शाबाशी के हकदार हैं। वहीं शेखर सुमन ठीक-ठाक ही रहे। 

रही बात संगीत की, तो कोई ख़ास दम नहीं है। इस फिल्म के म्यूज़िक पर मेहनत की ज़रूरत थी।

ख़ास बात 

संजय दत्त को बड़े पर्दे पर देखने का इंतज़ार कर रहे थे, तो ज़रूर इस फिल्म को देखने जाएं। यदि ऐसा नहीं है, तो फिर वीकेंड के लिए कोई दूसरा प्रोग्राम फिक्स कर लें।

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