फिल्म समीक्षा: पद्मावत
संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ को लेकर बीते काफी अरसे से हाय-तौबा मचा हुआ है। एक फिल्म को लेकर कितने विवाद हो सकते हैं, इस बात का उदाहरण ‘पद्मावत’ से बेहतर और कोई नहीं हो सकता। ख़ैर, जैसे-तैसे फिल्म सिनेमाहाल में उतर आई है। दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह सरीखे सितारों से सजी फिल्म की करते हैं समीक्षा...
फिल्म का नाम : पद्मावतनिर्माता : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, संजय लीला भंसाली
निर्देशक : संजय लीला भंसाली
कलाकार : दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, अदिति राव हैदरी, रज़ा मुराद, जिम सर्भ
संगीत : संजय लीला भंसाली, संचित बलहारा
जॉनर : एपिक पीरियड ड्रामा
रेटिंग : 4/5
विजुअल ट्रीट के लिए जाने जाने वाले संजय लीला भंसाली की अगली पेशकश ‘पद्मावत’ आखिर रिलीज़ हो ही गई। तमाम विरोधों को पार करते हुए आखिरकार भंसाली की ‘पद्मावती’, ‘पद्मावत’ के रूप में बड़े पर्दे पर साकार हो ही गई। लगभग 200 करोड़ की लागत से बनी यह यह फिल्म अब तक की सबसे महंगी फिल्म बताई जा रही है। साथ ही पहली 3डी फिल्म होने का तमगा भी इसने अपने सीने पर सजा लिया है।
कहानी
फिल्म की कहानी मलिक मोहम्मद जायसी की कृति ‘पद्मावत’ पर आधारित है। जायसी ने साल 1540 में इसकी रचना की थी। इसमें राजपूत महारानी पद्मावती के शौर्य और वीरता की गाथा है।
फिल्म की शुरुआत होती है, तेरवहीं सदी से। अफगानिस्तान में खिलजी वंश का शासक जलालुद्दीन खिलजी यानी रज़ा मुराद दिल्ली फतह करने के मंसूबे बना रहा होता है। इसी बीच उसका भतीजा अलाउद्दनी खिलजी यानी रणवीर सिंह आता है और चाचा की बेटी मेहरूनिसा यानी अदिति राव हैदरी से निकाह कर लेता है। बाद में अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या करके गद्दी हथिया लेता है।
वहीं दूसरी तरफ मेवाड़ के राजा रावल रतन सिंह यानी शाहिद कपूर सिंङल देश जाते हैं, तो वहां उनकी मुलाक़ात राजकुमारी पद्मिनी यानी दीपिका पादुकोण से होती है। पहले से ही शादीशुदा रतन सिंह को पद्मिनी से प्रेम हो जाता है और वो उनसे विवाह करते चित्तौड़ लौट आते हैं।
चित्तौड़ लौटने के बाद कुछ कारणों के चलते राज पुरोहित राघव चेतन को रतन सिंह देश निकाला दे देते हैं। राघव अपने इस अपमान का बदला लेने की ठानता है। इसके लिए वो दिल्ली जाता है और अलाउद्दनी खिलजी से रानी पद्मावती के रूप-गुण का बखान करता है।
राघव की बातों से प्रभावित होकर अलाउद्दीन अब रानी पद्मावती को पाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सारी रणनीति अपनाता है। कई दिलचस्प मोड़ से होते हुए कहानी अंत तक पहुंचती है।
समीक्षा
संजय लीला भंसाली की इस फिल्म में आंखों को चकाचौंध कर देने वाले कई दृश्य हैं। सिनेमाहाल से बाहर आने के बाद भी आप इस फिल्म के जादू में खुद को गिरफ़्त ही पाएंगे।
ख़ैर, अब बात करें निर्देशन की, तो फिल्म के हर सीन में संजय लीला भंसाली का स्पेशल टच देखने को मिलेगा। शानदार आर्ट वर्क आपको मोहित कर देगा। मलिक मोहम्मद जायसी की कृति पर बनी इस फिल्म की कहानी अनसुनी या अनछुई नहीं है, लेकिन जबदरस्त पटकथा से इसे रोचक बनाया है। पटकथा को ‘काल्पनिक’ होने का डिस्क्लेमर दिया गया। फिल्म में राजपूत समाज के पराक्रम को स्क्रीन पर जीवंत करने की कोशिश की गई है।
फिल्म में कलाकारों ने शानदार प्रदर्शन किया है। रानी पद्मिनी के किरदार में दीपिका पादुकोण बेहतरीन रही हैं, तो वहीं राजा रवल रतन सिंह के किरदार में शाहिद कपूर भी शानदार रहे हैं। लेकिन पर्दे पर जिसने चौंकाया है, वो है रणवीर सिंह। क्रूर, वीभत्स शासक अलाउद्दीन खिलजी के किरदार में रणवीर सिंह ने जान फूंक दी है। उनकी मेहनत दिखती है। इसके अलावा रज़ा मुराद, अदिति राव हैदरी, जिम सर्भ आदि ने भी कमाल का काम किया है।
संगीत
तुर्क-अफगानी संगीत का बेहतरीन संगम है। ‘घूमर’, ‘एक दिल एक जान’ पहले से ही दर्शकों की ज़बान पर चढ़ चुके हैं। फिल्म के गाने फिल्म को रोकते नहीं है, बल्कि साथ में बहते हैं। वहीं बैकग्राउंड स्कोर में कुछ कसर सी लगती है।
ख़ास बात
पीरियड ड्रामा के शौक़ीन है, जबरदस्त विजुअल्स देखना चाहते हैं, तो इस सप्ताहांत यह फिल्म आपकी एंटरटेनमेंट किटी में होनी चाहिए। साथ ही यह फिल्म वो भी देख आएं, जिनको इससे शिक़ायतें हैं, देखने के बाद शिक़ायत करें।
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