फिल्म समीक्षा: कालाकांडी

साल 2011 में आई फिल्म ‘डेली बेली’ के राइटर अक्षत वर्मा बतौर निर्देशक अपने करियर का आगाज़ फिल्म ‘कालाकांडी’ से कर रहे हैं। ट्रेलर काफी दिलचस्प था, तो फिर क्या फिल्म भी उतनी ही जबरदस्त बनी है। यह जानने के लिए आइए देखते हैं समीक्षा। 

फिल्म कालाकांडी में सैफ अली खान
फिल्म : कालाकांडी
निर्माता : रोहित खट्टर, आशी दुआ सारा
निर्देशक : अक्षत वर्मा 
कलाकार : सैफ अली खान, दीपक डोबरियाल, विजय राज, कुणाल राय कपूर, अक्षय ओबेरॉय
संगीत : समीर उद्दीन, शाश्वत सचदेव
जॉनर : ब्लैक कॉमेडी
रेटिंग : 2/5

बॉलीवुड में बतौर निर्देशक ‘कालाकांडी’ अपनी पारी की शुरुआत करने जा रहे अक्षत वर्मा को लोग साल साल पहले आई फिल्म ‘डेली बेली’ के राइटर के रुप में जानते हैं। ब्लैक कॉमेडी जॉनर की इस फिल्म में अक्षत ने क्या कमाल दिखाया है, आइए देखते हैं। 

कहानी 

इस फिल्म में तीन कहानियां समानांतर चल रही हैं। इसकी शुरुआत होती है रिहीन यानी सैफ अली खान से, जिसने अपनी ज़िंदगी में कभी भी कोई ग़लत काम नहीं किया है। रिहीन किसी भी ग़लत आदत का शिकार भी नहीं है। तभी उसे पता चलता है कि उसे कैंसर हो गया है। इसके बाद वो यह तय करता है कि उसने ज़िंदगी में अब तक जो नहीं किया, वो सब अब करेगा। मसलन शराब, गुटखा, ड्रग्स इन सबसे दूर रहने वाला रिहीन अब इन सबका लुत्फ उठाएगा। 

वहीं दूसरी तरफ रिहीन का भाई अंगद यानी अक्षय ओबेरॉय शागी करने जा रहा है कि अचानक उसकी मुलाक़ात उसकी एक्स गर्लफ्रेंड से हो जाती है। अंगद की गर्लफ्रेंड उससे काफी नाराज़ है। 

अब रिहीन ने धीरे-धीरे ड्रग्स लेना शुरू कर दिया है। इसी बीच उसकी मुलाकात एक ट्रांस जेंडर नैरी सिंह से होती है। वहीं सोभिता धुलिपला और आदित्य राय कपूर लवर्स हैं, लेकिन सोभिता आगे की पढ़ाई के लिए यूएस जा ही है। ऐसे में ये दोनों अपने फ्रेंड की बर्थडे पार्टी में साथ जाने का प्लान बनाते हैं और उस पार्टी में पुलिस की रेड पड़ जाती है। 

फिल्म की तीसरी कहानी है अंडरवर्ल्ड डॉन विजय राय और दीपक डोबरियाल की। ये दोनों प्रोड्यूसर से पैसा उगाही का काम करते हैं। 

एक के बाद एक ये सारे किरदार एक-दूसरे से टकराते हैं और फिर फंसते जाते हैं। इन सबके टकराने से क्या कुछ नाटकीयता पनपती है, उसे देखने के लिए सिनेमाहॉल का रुख करना होगा। 

समीक्षा 

फिल्म का निर्देशन ठीक-ठाक ही रहा है, क्योंकि कई जगह पर फिल्म बिखरी हुई सी लगी। कई बार ऐसा लगता है कि फिल्म में बेवजह की कॉमेडी घुसाई गई है। वहीं क्लाइमैक्स पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया गया है। दो सीन्स को जोड़ने के दौरान के जर्क साफ नज़र आते हैं। 

सैफ अली खान ने अच्छा काम किया है। मल्टीस्टारर फिल्म होने के बाद भी फिल्म सैफ की ही लगी है। वहीं विजय राज और दीपक डोबरियाल ने निराश किया है। सोभिता के चेहरे पर भाव बिलकुल भी नहीं नज़र आते। 

संगीत की बात करें, तो कुछ ख़ास कमाल नहीं किया है। कई बार तो सीन्स पर भी अनफिट नज़र आता है। हालांकि, बैकग्राउंड स्कोर अच्छा रहा है।

ख़ास बात

सैफ अली खान के दीवाने है, तो बेशक जाएं। फिल्म में लॉजिक नहीं खोजते, तो भी इस फिल्म को देखने जाया जा सकता है। इस फ्लेवर काफी कुछ ‘डेली बेली’ जैसा ही है।

संबंधित ख़बरें 
आगे फिल्म समीक्षा : 1921