विनोद मेहरा : बोलती आंखों वाला अभिनेता
हिंदी सिने जगत को वो सितारा जिसकी मोहक मुस्कान और बोलती आंखों पर लोग फिदा थे। गज़ब की मासूमियत भरे इस चेहरे ने काफी कम उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया। जी हां, बात कर रहे हैं विनोद मेहरा की। महज 45 साल की उम्र में दुनिया छोड़ जाने वाले विनोद आज जीवित होते, तो अपना 73वां वर्षगांठ मना रहे होता।
मुंबई। सहज अभिनय, भोली सी मुस्कान और बोलती आंखों वाले अभिनेता ने 70-80 के दशक में अपनी एक ख़ास जगह बना ली थी। एक तरफ उसके अभिनय के चर्चे थे, तो दूसरी तरफ उसके इश्क़ के चर्चे भी खूब सुर्खियां बटोर रही थीं।
हिंदी सिने जगत के फलक का कौन सा सितारा कब उदय होगा और कब अस्त इसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। यह लाइन विनोद मेहरा के साथ बिलकुल सटीक बैठती है। महज 45 साल की उम्र में तीन शादियां रचा चुके विनोद के जीवन में जब स्थिरता ने पांव जमाना शुरू किया, तो दुनियां छोड़ गए।
जब विनोद मेहरा को मिला ब्रेक
आइए उनके सफर के बारे में बात करते हैं। साल 1971 में आई फिल्म ‘एक थी रीता’ से बतौर नायक विनोद मेहरा ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी। इसमें उनके अपोजिट तनूजा थी।
इस फिल्म में ब्रेक मिलने का भी अजीब सा क़िस्सा है। दरअसल, मुंबई के चर्चगेट इलाक़े का गेलार्ड नाम का रेस्तरां था, जो 50-60 दशक में स्ट्रगलर्स का अड्डा हुआ करता था।
अक्सर फिल्म निर्माता-निर्देशक वहां जाया करते थे। ऐसे ही एक दिन रूप के शौरी भी वहां जा पहुंचे और उनकी नज़र सीधे विनोद मेहरा पर पड़ी। शौरी की नज़र में विनोद इस क़दर चढ़े कि उनको सीधे अपनी फिल्म ‘एक थी रीता’ में बतौर लीड ब्रेक दे दिया।
हालांकि, विनोद ने पहली बार कैमरा फेस नहीं किया था, इससे पहले भी वो बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट कैमरा फेस कर चुके थे। साल 1958 में आई फिल्म ‘रागिनी’ में उन्होंने काम किया। फिर आई एक जौहर की साल 1960 में आई फिल्म बेवकूफ में उन्होंने किशोर कुमार के बचपन का किरदार निभाया। इसके अलावा साल 1960 में ही आई विजय भट्ट की फिल्म ‘अंगुलीमाल’ में भी वो ‘अभिषेक’ की भूमिका में दिखे।
‘एक थी रीता’ के बाद साल 1971 में आई ‘लाल पत्थर’ और साल 1972 में आई शक्ति सामंत की फिल्म ‘अमर प्रेम’ में दिखे। लेकिन उनके हिस्से बड़ी कामयाबी फिल्म ‘अनुराग’ लेकर आई।
साल 1972 में आई शक्ति सामंत की फिल्म ‘अनुराग’ में विनोद एक आदर्शवादी युवक की भूमिका में थे। इसमें उनके अपोजिट थीं मौसमी चटर्जी, जिन्होंने दृष्टिहीन युवती का किरदार निभाया था। इस फिल्म ने विनोद मेहरा को लोगों की नज़र में खड़ा कर दिया, लेकिन पेंच अभी भी बरकरार था।
दरअसल, विनोद को अभी भी सेकेंड लीड का ही प्रस्ताव मिलता था। उनको हीरो बनने का मौक़ा बस बी-ग्रेड की फिल्मों में ही मिला करते थे। वो दौर भी तो मल्टीस्टारर फिल्मों का था। तब विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, संजीव कुमार, धर्मेंद्र, जितेंद्र और अमिताभ सरीखे अभिनेताओं का बोलबाला था।लिहाजा, अच्छे किरदार इनकी झोली में पहले टपका करते थे।
बड़े-बड़े बैनर की फिल्में विनोद तक पहुंच ही नहीं पाती थीं। ख़ैर, जैसे-तैसे उनके हिस्से में बी आर चोपड़ा की फिल्म ‘द बर्निंग ट्रेन’ मिली, लेकिन कलाकारों की इतनी भीड़ थी कि वो एक्स्ट्रा ही से लगे। बावजूद इसके ये फिल्म इतनी बुरी तरह फ्लॉप हुई कि इस फिल्म का जिक्र करना भी कोई ज़रूरी नहीं समझता।
दक्षिण भारतीय निर्देशकों में विनोद मेहरा को लगातार अपनी फिल्मों में लेना शुरू किया। दरअसल, उन दिनों कृष्णन पंजू, आर कृष्णमूर्ति सरीखे निर्देशक हिंदी फिल्में बना रहे थे। लेकिन विनोद की बदकिस्मती कहिए कि जब दक्षिण भारतीय निर्देशक उनको फिल्में देने लगे, तो बॉलीवुड उनके हाथों से फिसलने लगा।
फिर अस्सी के दशक आते-आते मामला कुछ संभला, लेकिन बदकिस्मती क्या कहिए। वैरायटी भरे रोल मिले, लेकिन फिल्म का क्रेडिट नायक-नायिका के हिस्से आती। मोहन सहगल के निर्देशन में बनी फिल्म ‘कर्तव्य’ का क्रेडिट रेखा और धर्मेंद्र के हिस्से गया।
शादियां, इश्क़ सबमें सिफर
विनोदा मेहरा की पर्सनल लाइफ भी कुछ ख़ासा अच्छी नहीं रही। उन्होंने तीन शादियां कीं, लेकिन दो तलाक़ तक जा पहुंची और एक के साथ उम्र ने हाथ खींच लिया। इश्क़ भी बाखूबी किया, लेकिन वो मां को मंजूर न हुआ।
विनोद ने सबसे पहले शादी मीना ब्रोका से की, लेकिन दिलफेंक विनोद का दिल तो बिंदिया गोस्वामी के लिए धड़कने लगा। क्योंकि, बिंदिया के साथ वो लगातार कई फिल्मों में काम कर रहे थे। लिहाजा आकर्षण तो होना ही था। मीना से तलाक़ लेकर बिंदिया से शादी कर लिया, लेकिन बिंदिया से साथ लंबा न निभ पाया और उनसे भी तलाक़ हो गया।
इसके बाद रेखा के साथ विनोद का नाम जुड़ा और ख़बरें आईं कि दोनों ने सीक्रेट मैरिज कर ली है। लेकिन विनोद की मां ने रेखा को स्वीकार नहीं किया और उनको धक्के मार कर बाहर निकाल दिया। हालांकि, इस रिश्ते को लेकर न तो कभी विनोद ने कुछ कहा और न ही रेखा ने। अलबत्ता रेखा ने एक चैट में यह कहा कि वो और विनोद अच्छे दोस्त था। जबकि यासिर उस्मान द्वारा लिखी किताब में रेखा को विनोद की मां द्वारा धक्के मार कर बाहर निकालने वाले क़िस्से का जिक्र है।
ख़ैर, आखिरकार विनोद की जिंदगी में एक बार फिर बहार आई और किरण से उन्होंने ब्याह रचा लिया। विनोद और किरण को दो बच्चे हुए। बेटी सोनिया और बेटा रोहन। सोनियी डिजाइनर रही हैं और अब फिल्मों में नज़र आने लगी हैं। वहीं उनके बेटे रोहन भी फिल्म ‘बाज़ार’ से डेब्यू करने जा रहे हैं।
प्रोड्यूसर-डायरेक्टर विनोद मेहरा
बतौर प्रोड्यूसर और डायरेक्टर अपने करियर की दूसरी पारी शुरू करने चले विनोद मेहरा, अपनी कृति देख भी ना पाए। विनोद को हमेशा इस बात का मलाल रहा कि उनको जो मक़ाम मिलना चाहिए था, उससे वो महरूम ही रहे। लेकिन सभी इच्छाओं को एक बार फिर बटोरा और बतौर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर ‘गुरुदेव’ नाम की फिल्म शुरू की।
इस फिल्म में ऋषि कपूर और अनिल कपूर को लिया। साथ ही श्रीदेवी को भी साइन किया। इस फिल्म को बनने में काफी वक्त लगा। कहा जाता है कि इन कलाकारों ने विनोद को काफी सताया। उनको डेट्स देने में काफी आना-कानी करने लगे थे।
आखिरकार 30 अक्टूबर 1990 में उन्होंने इस दुनिया से रुखसती ले ली थी। दिल का दौरा पड़ा और 45 साल की उम्र में ही चल बसे। उनकी मौत की तरीबन सीन साल बाद फिल्म ‘गुरुदेव’ साल 1993 में रिलीज़ हुई।
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