फिल्म समीक्षा : अक्टूबर
वरुण धवन अभिनती फिल्म ‘अक्टूबर’ का इंतज़ार आखिरकार खत्म हो गया। इस शुक्रवार सिनेमाघरों में उतर आई है। शूजित सरकार के निर्देशन में बनी इस फिल्म की कहानी को जूही चतुर्वेदी ने लिखी है। शूजित और जूही की जोड़ी ने ‘पीकू’ और ‘विक्की डोनर’ सरीखें भावनात्मक और मनोरंजक फिल्में दी हैं। इस बार इनकी जोड़ी ‘अक्टूबर’ ले कर आइए है। आइए करते हैं समीक्षा...
फिल्म : अक्टूबर
निर्माता : शूजित सरकार
निर्देशक : शूजित सरकार
कलाकार : वरुण धवन, बनिता संधू
संगीत : शांतनु मोइत्रा, अनुपम रॉय और अभिषेक अरोड़ा
जॉनर : रोमांटिक ड्रामा
रेटिंग : 4/5
इस बार ‘अक्टूबर’ अप्रैल में ही आ गया है। निर्देशक शूजित सरकार की फिल्म ‘अक्टूबर’ इस शुक्रवार को रिलीज़ हुई है। जूही चतुर्वेदी ने इसका स्क्रीनप्ले तैयार किया है। शूजित और जूही इसे एक यूनिक लव स्टोरी बता रहे हैं।
कहानी
फिल्म ‘अक्टूबर’ डैन और शिउली की इमोशलन लव स्टोरी है। जहां डैन यानी दानिश वालिया (वरुण धवन) एक फाइव स्टार होटल में बतौर ट्रेनी काम करता है। लेकिन अपने काम को वो गंभीरता से नहीं लेता है। हर बार कुछ न कुछ गड़बड़ कर बैठता है। दरअसल, डैन किसी और के होटल में नौकरी नहीं करना चाहता है, बल्कि उसे तो खुद का रेस्तरां खोलना है।
इसी होटल में डैन के साथ उसके अन्य दोस्त भी ट्रेनिंग ले रहे हैं। उनमें से शिउली (बनिता संधू) भी एक रहती है। एक दिन डैन को पता चलता है कि शिउली का एक्सीडेंट हो गया है और वो आईसीयू में एडमिट है। शिउली कोमा में चली जाती है। अब शिउली की मां विद्या अय्यर (गीतांजलि राव) भी उसके ठीक होने की उम्मीद छोड़ देती है।
वहीं डैन कहता है कि शिउली जीना चाहती है और मुझे पूरी उम्मीद है कि एक दिन ठीक हो जाएगी। जैसे-जैसे समय बीतत जाता है, सब अपने दैनिक कार्य में व्यस्त हो जाते हैं, लेकिन डैन के दिमाग़ में शिउली ही रहती है। वो बार-बार कहता है कि शिउली जीना चाहती है, बस एक मौका उसे दे दो।
...तो क्या डैन, शिउली को एक मौका दिलवा पाएगा? इस हादसे के बाद क्या कुछ बदलता है डैन के जीवन में? और सबसे ज़रूरी सवाल कि आखिर फिल्म का नाम अक्टूबर क्यों रखा गया? इन सबके जवाबों के लिए थिएटर का रुख करना होगा।
समीक्षा
शूजित सरकार का निर्देशन हर बार की तरह इस बार भी जबरदस्त रहा। बिलावजह के सीन्स ठूंसने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की। फिल्म का फ्लो काफी अच्छा रहा।
वहीं अभिनय की बात करें, तो वरुण धवन ने उम्मीद से कहीं बेहतर काम किया है। उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। शूजित सरकार ने वरुण से वैसा काम निकलवाया, जैसा पहले किसी निर्देशक ने नहीं किया था।
अब बात करें ‘अक्टूबर’ से डेब्यू कर रही बनिता संधू की, तो उनके लिए फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था। उनका किरदार कोमा में रहा, लेकिन फिर भी एकाद जगह उन्होंने बखूबी परफॉर्म किया। इसके अलावा गीतांजली राव ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया।
फिल्म का संगीत ठीक है। हालांकि, सुनिधि चौहान का गाया ‘मनवा’ थिएटर से निकलने के बाद भी आप मन में गुनगुनाते रहोगे।
ख़ास बात
एक इमोशलन लव स्टोरी देख कर वीकेंड बिताने का इरादा है, तो यह फिल्म परफेक्ट चॉइस है। स्टारकास्ट का बेहतरीन प्रदर्शन और कमाल की स्टोरी को निर्देशक ने बेमिसाल फिल्म बनाई है।
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