विनोद खन्ना : खलनायक, नायक, सन्यासी, राजनेता
एक इंसान और इतने सारे किरदार...और फिर उन सभी को शिद्दत से निभाने वाले अभिनेता विनोद खन्ना को फानी दुनिया से विदा हुए एक साल बीत गए। हिन्दी सिनेमा में भारतीय छवि के मूर्त रूप विनोद ने यूं तो शुरुआत बतौर खलनायक की, लेकिन एक समय पर हाइयेस्ट पेड एक्टर रहे। आइए उनके जीवन के उन पहलुओं को एक बार फिर छूते हैं....
मुंबई। सत्तर साल की उम्र में बीते साल विनोद खन्ना का निधन हो गया था। उनको हाल ही में दादा साहब फाल्के खिताब से नवाज़ा गया है। आज उनकी पहली पुण्यतिथि है। सिनेमा से लेकर राजनीति तक में दखल रखने वाले विनोद खन्ना ने कुछ वर्ष आध्यात्म की डगर पर चलने का फैसला लिया और सन्यासी भी हो गए।
बड़े कारोबारी पिता के पुत्र विनोद खन्ना का सिनेमा की दुनिया में आना कोई आसान बात न थी। फिर भी पिता के विरोध और मां की एक शर्त के साथ उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा।
विनोद खन्ना की जीवनी
विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 में पेशावर (पाकिस्तान) में हुआ था। पिता कृष्णचंद खन्ना टेक्सटाइल, डाई और केमिकल का कारोबार करते थे, जबकि मां कमला हाउस वाइफ थीं। विनोद खन्ना पांच भाई-बहन थे। बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया और मुंबई में बस गया।
जहां एक तरफ पिता अपने कारोबार को एक बार फिर से खड़ा करने में जुटे थे, वहीं बाकी भाई-बहनों के साथ विनोद अपनी स्कूलिंग कर रहे थे। हालांकि, कभी दिल्ली, तो फिर कभी मुंबई आना के वजह से स्कूल बदलते रहे। आखिरकार, पिता ने मुंबई में ही बसने का मन बना लिया। वहीं विनोद को भी एक बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया।
बोर्डिंग स्कूल के समय ही विनोद खन्ना ने ‘सोलहवां साल’ और ‘मुग़ल-ए-आज़म’ फिल्में देखी और फिर सिनेमा से उनको मोहब्बत हो गई। बाद में कॉमर्स से ग्रेजुएशन किया। हालांकि, विनोद खन्ना को फिल्मों के अलावा क्रिकेट से भी काफी लगाव था। यहां तक कि उन्होंने एक वीकली के लिए लिखे अपने कॉलम में भी लिखा है कि मैं काफी समय तक क्रिकेट खेला और फिर मुझे अहसास हुआ कि क्रिकेट मेरा पहला प्यार है। फिर भी मैं यह समझ चुका था कि मैं विश्वनाथ नहीं बन सकता।
विनोद खन्ना का फिल्मी सफर
विनोद खन्ना को बॉलीवुड में लाने का श्रेय सुनील दत्त को जाता है। दरअसल, सुनील दत्त अपने भाई को लॉन्च करने की योजना बना रहे थे। अपने होम प्रोडक्शन तले वो ‘मन का मीत’ की तैयारी कर रहे थे, तभी उनकी मुलाक़ात एक पार्टी में विनोद खन्ना से हुई।
सुनील दत्त को अपनी फिल्म में विलेन की भूमिका के लिए नया चेहरा चाहिए था। विनोद खन्ना की पर्सनॉलिटी देखकर सुनील ने उनको विलेन बनने का ऑफर दे डाला। इतने बड़े अभिनेता से मिले प्रस्ताव को कोई कैसे ठुकराए, लेकिन विनोद के लिए यह फैसला आसान न था।
जब इस प्रस्ताव के बारे में घर में बताया, तो मां-पिता दोनों ही खफा हो बैठे। कहा जाता है कि पिता ने तो पिस्तौल भी उठी ली थी। ख़ैर, मां के बीच-बचाव के बाद मामला शांत हुआ। मां ने विनोद को समझाया, लेकिन बात बनती न देख उन्होंने सशर्त फिल्मी दुनिया में जाने की इजाज़त दी।
विनोद खन्ना से उनकी मां ने कहा कि यदि दो सालों में वो बॉलीवुड में सफल न हुए, तो फिर चुपचाप से कारोबार संभालोगे। विनोद ने यह शर्त मानी और फिर अपना करियर शुरू कर दिया। साल 1968 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘मन का मीत’ उनकी पहली फिल्म थी।
फिल्म रिलीज़ हुई, ख़ास सफलता नहीं मिली। लेकिन विनोद खन्ना के लिए रास्ते खुल गए थे। उनको सहायक अभिनेता और खलनायक की भूमिका के प्रस्ताव मिलने लगे थे।
विनोद खन्ना की ख़ास बातें
विनोद खन्ना ने अपने करियर में तकरीबन 150 फिल्मों में काम किया। बतौर विलेन अपने करियर की शुरुआत करने वाले विनोद एक समय पर इंडस्ट्री के हाइयेस्ट पेड एक्टर थे और अपने करियर के इसी मुकाम पर एक दिन अचानक ही उन्होंने सन्यास लेने की घोषणा कर दी। साल 1982 में वो ओशो के शिष्य बन गए और उनके आश्रम में रहने लगे। तब उनको सेक्सी सन्यासी सरीखे उपनाम भी दिए गए।
अपनी पत्नी गीतांजलि और बेटे अक्षय-राहुल को छोड़ कर वो सन्यास की डगर पर चल पड़े। हालांकि, बाद में जब वो वापस आए, तो गीतांजलि ने उनको तलाक़ दे दिया। इसके बाद विनोद ने कविता दफ्तरी से दूसरी शादी की। विनोद खन्ना के चार बच्चे हैं, जिनमें राहुल, अक्षय और साक्षी बेटे हैं और एक बेटी श्रद्धा है।
बॉलीवुड में विनोद खन्ना ने दो पारियां खेली। पहली सन्यासी बनने से पहले और दूसरी उसके बाद। पहली पारी साल 1968 से 1982 तक रही। फिर दूसरी 1987 से 2015 तक। अपनी दूसरी पारी के दौरान की विनोद खन्ना ने हाइयेस्ट पेड एक्टर का खिताब भी मिला था।
खूबसूरत अभिनेताओं में शुमार विनोद खन्ना के खाते में कई सफल फिल्में हैं। ‘मेरे अपने’, ‘परवरिश’, ‘हेरा फेरी’, ‘खून पसीना’, ‘कुर्बानी’, ‘दयावान’, ‘चांदनी’ उनमें से खास हैं।
फिल्मों के अलावा अब राजनीति में भी प्रवेश करने का मन बनाया। साल 1997 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ली और गुरुदासपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और फिर जीत भी हासिल की। मृत्यु के समय भी विनोद खन्ना उस सीट से सांसद थे। राजग सरकार में वो केंद्रीय मंत्री भी रहे।
विनोद खन्ना साल 2015 में आई फिल्म ‘दिलवाले’ में नज़र आए। हालांकि, उनकी अंतिम फिल्म ‘एक थी रानी’ थी। यह फिल्म राजमाता विजय राजे सिंधिया पर बनी थी और इसे राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने लिखा था।