मन्ना डे नहीं गाना चाहते थे ‘एक चतुर नार, बड़ी होशियार’
कई ऐसे गायक हैं, जिनके तराने वक्त को थामने की काबिलियत रखते हैं। उन्हीं गायकों में से एक का आज जन्मदिन है। यूं तो उनका नाम प्रबोध चंद्र डे था, लेकिन बाकी दुनिया उनको मन्ना डे के नाम से जानती है। अपने संगीतकार चाचा कृष्ण चंद्र डे के साथ मुंबई आए और फिर यहीं से शुरू किया अपने संगीत का सफर...।
मुंबई। ‘कसमें वादे प्यार वफा...’, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’, ‘ज़िंदगी कैसी है पहेली’, ‘पूछो न कैसे मैंने रैन’...न जानें ऐसे कई तराने जिन्हें सुनकर आज भी कदम ठिठक जाते हैं। इन सभी तरानों को मन्ना-डे ने अपनी अवाज़ से सजाया है।
इनका जन्म 1 मई 1919 में कोलकाता में हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम प्रबोध चंद्र डे रखा, लेकिन वो मशहूर हुए मन्ना डे के नाम से। जबकि उनके फैन्स उनको ‘मन्ना दा’ ही कहा करते हैं। घरवाले चाहते थे कि प्रबोध बैरिस्टर बने। वहीं मन्ना डे स्कूली दिनों में कुश्ती, मुक्केबाजी और फुटबाल जैसे खेलों में व्यस्त रहा करते थे। संगीत के क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी अपने चाचा कृष्ण चंद्र डे की वजह से बढ़ी।
साल 1942 में अपने संगीतकार चाचा कृष्ण चंद्र डे के साथ मुंबई आए और फिर यहीं से उन्होंने अपने संगीत का सफर शुरू किया। मन्ना डे ने हिंदी के अलावा कई अन्य भाषाओं में भी हिट गाने दिए। क्षेत्रिय भाषाओं में सबसे ज्यादा बंगाली फिल्मों के लिए उन्होंने गाया।
जब मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और मुकेश के दीवाने हुआ करते थे, वहीं ये गायक मन्ना डे के मुरीद थे। तभी तो मन्ना डे को उस्दातों का उस्दात कहा जाता था। यहां तक कि मोहम्मद रफी ने एक इंटरव्यू में यह तक कह दिया था कि लोग मेरा गाना सुनते हैं और मैं मन्ना डे का फैन हूं।
उनको पहला मौका चाचा कृष्ण चंद्र ने साल 1942 में ही दिया। फिल्म ‘तमन्ना’ के लिए अभिनेत्री-गायिका सुरैया के साथ जुगलबंदी की। हालांकि, पहचान उनको साल 1950 में आई फिल्म ‘मशाल’ में ‘ऊपर गगन विशाल’ से मिली। अशोक कुमार पर फिल्माए इस गीत को कवि प्रदीप ने लिखा था और इसे एस डी बर्मन ने कंपोज किया था। लेकिन फिल्म साल 1954 में आई फिल्म ‘बूटपालिश’ के गाने ‘लपक झपक तू आए बदरवा’ ने उनको स्थापित किया। इस गाने को अभिनेता डेविड पर फिल्माया गया था। वे ऐसे गायक के रूप में उभरे जिसे गीत गवाने के लिये संगीतकारों को खास तैयारी करने की जरूरत पड़ती थी।
साल 1942 से शुरू संगीत सफर पर वो साल साल 2010 तक सक्रिय रहे। उन्होंने हिंदी और क्षेत्रिय भाषाओं में तकरीबन 4000 गाने को अपनी आवाज़ दी। हिंदी के अलावा बंगाली, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़, असमिया में भी हिट तराने दिए।
‘एक चतुर नार’ को किया ‘ना’
मन्ना डे बेबाक गायक कहे जाते थे। वो अपने गाने, गायन शैली से कभी भी समझौता नहीं करते थे। कई बार गानों के बोल को लेकर भी अपनी राय पुरजोर तरीक़े से रखते थे।
यहां तक कि मन्ना डे ने फिल्म ‘पड़ोसन’ के गाने ‘एक चतुर नार, बड़ी होशियार’ को गाने से मना कर दिया था, लेकिन बाद में काफी समझाने के बाद वो तैयार हो गए और यह गाना सुपर-डुपर हिट हुआ।
इस गाने की रिकॉर्डिंग में भी मन्ना डे ने ऐतराज़ जताया था। दरअसल, जब किशोर कुमार गाना रिकॉर्ड कर रहे थे, तब मन्ना डे ने उनको टोका कि आप किस राग में गा रहे हैं। बाद में अभिनेता महमूद ने हस्तक्षेप किया कि फिल्म में ऐसा परिस्थिति है कि किशोर को इस तरह से गाना पड़ रहा है।
राजेश खन्ना के कर्ज़दार
मन्ना-डे खुद को राजेश खन्ना के कर्ज़दार मानते थे। इस बात का ज़िक्र उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘जलझाधोरे’ (यादें जी उठीं) में किया है। मन्ना डे लिखते हैं, ‘मैं राजेश खन्ना का बहुत बड़ा फैन हूं और मैं उनका हमेशा कर्ज़दार रहूंगा’।
मन्ना डे कहते हैं कि जिस तरह से राजेश खन्ना परदे पर गाने के जीवंत करते हैं, वो अद्वितीय है। गाने को अमर बनाने के लिए सिर्फ आवाज़ ही नहीं पिक्चराइज़ेशन भी अहम होता है।
बता दें फिल्म ‘आनंद’ में राजेश खन्ना पर पिक्चराइज़ सॉन्ग ‘ज़िंदगी कैसी है पहेली’ को मन्ना डे ने अपने सुरों से संवारा था।
पुरस्कार
फिल्म जगत में अपने योगदान के लिए उन्हें साल 2007 में दादा साहेब फाल्के खिताब से नवाज़ा गया। इससे पहले साल 2005 में उनको पद्मभूषण से पुरस्कृत किया गया। इससे पहले साल 1971 में उनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्होंने 4 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स भी अपने नाम किए।
मन्ना डे के गानें
बॉलीवुड के क्लासिकल गायकों में शीर्ष पर मौजूद मन्ना डे के गीत ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई’ और ‘लागा चुनरी में दाग’ आज भी कई संगीत सीखने वालों के लिए मिसाल है।
‘दिल का हाल सुने दिल वाला’, ‘ए भाई जरा देख के चलो’, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’, ‘ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं’ सरीखे कई तराने संगीत प्रेमियों के जेहन में एक के बाद एक उभरते चले आते हैं।
24 अक्टूबर 2013 को मन्ना डे अपने चाहने वालों को छोड़ कर फानी दुनिया से विदा हो गए। लेकिन उनके तराने आज भी और आने वाले कई सौ सालों तक ज़िंदा रहेंगे।
संबंधित ख़बरें
किशोर कुमार ने इस गाने में गा दिया था ‘गाने का बजट’ जब रफी ने ‘मूड बनाने’ के लिए स्टूडियो में बुलाई लड़कियां