फिल्म समीक्षा : भावेश जोशी सुपरहीरो
हर्षवर्धन कपूर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ इस सप्ताह रिलीज़ हुई है। विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में यह फिल्म हर्षवर्धन की दूसरी फिल्म है। जुर्म के खिलाफ खड़े एक नौजवान की कहानी है, कितना कमाल कर पाती है, वो तो बॉक्स ऑफिस पर छोड़िए। फिलहाल फिल्म की समीक्षा करते हैं।
फिल्म : भावेश जोशी सुपरहीरो
निर्माता : विक्रमादित्य मोटवानी, अनुराग कश्यप, विकास बहल, मधु मंटेना
निर्देशक : विक्रमादित्य मोटवानी
कलाकार : हर्षवर्धन कपूर, प्रियांशु पेनयुली, आशीष वर्मा, निशिकांत कामत, राधिका आप्टे, श्रेया सबरवाल
संगीत : अमित त्रिवेदी
जॉनर : एक्शन ड्रामा
रेटिंग : 3/5
‘लुटेरा’, ‘उड़ान’ और ‘ट्रैप्ड’ सरीखी फिल्मों का निर्देशन करने वाले विक्रमादित्य मोटवानी इस बार एक्शन में हाथ आजमा रहे हैं। एक्शनपैक सुपरहीरो फिल्म लेकर आए हैं। आइए जानते हैं कि कितना कमाल किया है विक्रमादित्य ने।
कहानी
फिल्म की कहानी तीन दोस्तों सिकंदर खन्ना यानी हर्षवर्धन कपूर, भावेश जोशी यानी प्रियांशु और रजत यानी आशीष वर्मा की है। यह तीनों युवक न सिर्फ दोस्त हैं, बल्कि फ्लैटमेड भी हैं। तीनों युवकों पर एक आंदोलन का कुछ इस कदर असर होता है कि स्वस्थ समाज के निर्माण में जुट जाते हैं।
कभी ये पेड़ों की कटाई को रोकने की कोशिश करते दिखते हैं, तो भी कूड़े को जलाने से रोकते हैं। समाज में जो भी कुछ बुरा हो रहा है, उसे बेनकाब करने की कोशिश करते हैं। लेकिन बीच में ही रजत और सिकंदर को लगता है कि वो अपनी कोशिशों में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, तो मुहीम को छोड़ देते हैं।
भले ही रजत और सिकंदर इस मुहीम से बाहर चले जाते हैं, लेकिन भावेश अपने अभियान में जुटा ही रहता है। इसी कड़ी में एक दिन वो मुंबई के पानी माफिया से टकरा जाता है। उनके खिलाफ सबूत निकालने की कोशिश में भावेश पानी माफिया के गिरोह के हाथों मारा जाता है।
उधर सिकंदर को उसकी कंपनी अमेरिका भेजती है, लेकिन जैसे ही भावेश की मौत की ख़बर सुनता है, वो मुंबई ही रूक जाता है। अब उसका सिर्फ एक ही मिशन होता है और वो है अपने दोस्त की मौत का बदला। क्या भावेश का नकाब पहन कर सिकंदर, अपने दोस्त भावेश के क़ातिलों का पर्दा फाश कर पाएगा। वो किन परेशानियों से जूझेगा। क्या इस बार रजत उसका साथ देगा। यह सब जानने के लिए थिएटर का रुख करना होगा।
समीक्षा
सबसे पहले सबसे ज़रूरी सूचना ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ का प्रस्ताव लेकर विक्रमादित्य सबसे पहले इमरान खान के पास गए, फिर सिद्धार्थ मल्होत्रा के पास आए। जब दोनों ने मना किया, तब हर्षवर्धन को यह फिल्म मिली।
इस फिल्म को विक्रमादित्य मोटवानी, अनुराग कश्यप और अभय कोर्ने ने मिलकर लिखी है। फिल्म में साधारण लोगों को ही सुपरहीरो बनाया है। अमूमन सुपरहीरो, यानी जिनके पास सुरप पावर हो। वहीं इस फिल्म में आपको 80 के दशक का रिवेंज ड्रामा नज़र आएगा।
ख़ैर, इंटरवल से पहले फिल्म वास्तविक लगी, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाती है, दर्शकों का उत्साह भी ठंडा होता जाता है। फिल्म के संवाद बड़े और बोझिल हैं। क्लाइमेक्स कमज़ोर है।
अब अभिनय की बात करें, तो हर्षवर्धन ने बेहतरीन अभिनय किया है। अपने किरदार के साथ वो न्याय करते दिखे हैं। जबकि खलनायक की भूमिका में निशिकांत कामत निराश करते हैं।
प्रियांशु पेनयुली ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। श्रेया सबरवाल, आशीष वर्मा के लिए कुछ खास नहीं था।
फिल्म का संगीत भी ठीक-ठाक है। अमित त्रिवेदी के संगीत से अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं।
ख़ास बात
यदि आपके भीतर देश-भक्ति कूट-कूट कर भरी है, तो इस फिल्म को आप देख सकते हैं। हालांकि, बहुत ज्यादा उम्मीद लेकर थिएटर न ही जाएं।
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