फिल्म समीक्षा : संजू
रणबीर कपूर स्टारर संजय दत्त की बायोपिक 'संजू' इस हफ्ते सिनेमाघरों में उतर चुकी है। राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी इस फिल्म को लेकर लंबे समय से चर्चा थी। संजय दत्त की विवादास्पद ज़िंदगी के पन्नों को हिरानी ने पलटने के भरसक कोशिश की है। इस कोशिश को 'संजू' नाम दिया है। हालांकि, सिलेक्टिव वाकयों को जोड़कर फिल्म बनाई है। उनकी कोशिश कितनी सफल है, आइए करें समीक्षा।
फिल्म : संजू
निर्माता : विधु विनोद चोपड़ा
निर्देशक : राजकुमार हिरानी
कलाकार : रणबीर कपूर, मनीषा कोइराला, दीया मिर्ज़ा, परेश रावल, अनुष्का शर्मा, सोनम कपूर,
संगीत : ए आर रहमान
जॉनर : बायोपिक
रेटिंग : 3/5
'नायक नहीं, खलनायक हूं मैं' फिल्म 'खलनायक' का यह गाना संजय दत्त की ज़िंदगी पर सटीक बैठता है। होने को तो वो सितार माता-पिता के पुत्र रहे हैं, फिल्मों में नायक रहे हैं, लेकिन निजी ज़िंदगी में हमेशा वो अपनी 'खलनायकी' छवि के लिए सुर्खियां बटोरते रहे हैं। संजय दत्त की ज़िंदगी में वो सारे मोड़ मौजूद हैं, जो एक मसाला फिल्म की मंजिल तक जाते हैं। इसलिए तो राजकुमार हिरानी ने तुरंत-फुरत में संजय दत्त को अपनी फिल्म को सब्जेक्ट बना लिया। रणबीर कपूर की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में कितना है दम, आइए देखें हम।
कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है, संजय दत्त की ज़िंदगी के उस पड़ाव से शुरू होती है, जब उनको पांच साल की सजा सुनाई जाती है। फिल्म में संजय दत्त बने रणबीर कपूर अपनी बायोग्राफी लिखने के लिए एक लेखिका से संपर्क करते हैं। उस लेखिका का नाम विनी है, जिसकी भूमिका अनुष्का शर्मा निभा रही हैं। विनी, संजय से मिलने आती है और फिर कहानी शुरू होती है।
सुनील दत्त यानी परेश रावल और नरगिस यानी मनीषा कोइराला अपने बेटे संजय दत्त को ग़लत रास्ते पर जाने से बचाने के लिए बोर्डिंग स्कूल भेजने का रास्ता चुनते हैं। बोर्डिंग में संजय को बुली (परेशान) किया जाता है। इसी दौरान वो नशे की लत में गिरफ्त हो जाते हैं। जहां संजय मां से तो प्यार करते हैं, लेकिन पिता के लिए उनके दिल में नफरत पनपने लगती है। इसी बीच मां नरगिस की तबियत ख़राब हो जाती है।
मां-बेटे के बीच एक भावुक सा मंजर भी देखने को मिलती है। एक सीन के दौरान जब संजय कहते हैं कि उनको याद नहीं है कि अपनी मां के आखिरी पलों में वो नशे में थे या फिर होश में। ख़ैर, संजय नशे की लत में गिरफ्त थे, यह तो सभी को पता है। फिल्म में एक के बाद एक वो वाकये जिनकी वजह से संजय ने सुर्खियां पाई हैं, पर्दे पर आने लगीं।
नशे की लत से बाहर आने के लिए रिहैब जाना, मुंबई बम धमाकों में नाम आना, फिर कई बार जेल जाना। इनके समानांतर ही उनकी 'लव लाइफ'। एक के बाद एक सभी घटनाक्रम पर्दे पर उतरने लगे। फिल्म में पिता-पुत्र के रिश्ते, जिगरी दोस्त से बॉन्डिंग, फिर पत्नी का हर कदम पर साथ रहना। संजय दत्त की ज़िंदगी को लेकर सभी कमोबेश जानते हैं। बस उन्ही 37 सालों का फसाना पर्दे पर उतारा गया है।
समीक्षा
बतौर फिल्ममेकर बात करें, तो यह राजकुमार हिरानी की सबसे कमजोर फिल्मों में से एक है। हालाकि, फिल्म में उन्होंने कमाल तो किया है, लेकिन ईमानदारी नहीं बरती है। एक बायोपिक का मतलब होता है, सच को पर्दे पर उतारना। अव्वल तो फिल्म का विषय चुनते वक़्त सावधानी बरती जाती है, फिर भी विषय संजय दत्त हैं, तो कहानी में मसाला लाजिमी है।
संजय दत्त की विवादित ज़िंदगी को पर्दे पर हिरानी ने साकार करने कोशिश की है, लेकिन कई दफे फिल्ममेकर पर दोस्त भारी पड़ता दिखा। संजय के जीवन के विवादित हिस्सों को लेकर नरमी बरतते नज़र आए।
फिल्म में हिरानी ने मीडिया को कई मौक़ों पर जिम्मेदार ठहराया है। मसलन, मुंबई बम धमाकों के बाद की गिरफ्तारी के लिए मीडिया को दोष दे दिया। ख़ैर, उस समय फिल्म में तथ्यों की पड़ताल ज़रूरी थी। तथ्य यह है कि संजय के पास उस समय हथियार थे और वो हथियार अंडरवर्ल्ड के उन लोगों ने ही मुहैया करवाए थे, जिनके तार मुंबई बम धमाकों से जुड़े थे।
ख़ैर, हिरानी ने डिस्क्लेमर दे दिया था कि फिल्म में आधी कहानी और आधा फसाना है। कुलमिलाकर अपने दोस्त की इमेज को बनाना है। फिल्म में संजय दत्त की कमियों को उजागर किया गया है, लेकिन वो सिलेक्टिव हैं। मसलन, अचानक गुस्से में उबल पड़ना, दोस्तों की संगत में बिगड़ना, इमोशनल होकर फैसले लेना।
अब अदाकारी की बात करें, तो सबसे पहले रणबीर कपूर का जिक्र करना बनता है। रणबीर कपूर ने संजय दत्त के किरदार को बखूबी निभाया है। इस फिल्म में उन्होंने जी-जान से मेहनत की है। फिल्म के एक भी फ्रेम में रणबीर नहीं नज़र आए, वो हमेशा संजय दत्त ही दिखे। फिर आते हैं विक्की कौशल। विक्की कमाल के अभिनेता हैं और 'कमली' के किरदार को निभा कर एक बार फिर साबित कर दिया। इसके बाद परेश रावल और मनीषा कोइराला ने अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। फिल्म में जिम सर्भ, जो संजय के पहले दोस्त जुबिन मिस्त्री के किरदार में थे। उनके किरदार से आप नफरत करने लगेंगे, क्योंकि जुबिन ने ही संजय को ड्रग्स की लत लगाई थी। बाकी सभी अभिनेत्रियां फिल्म में शो-पीस सी ही नज़र आईं।
ख़ास बात
इस फिल्म को देखने की दो मजबूत वजहें हैं, पहली रणबीर कपूर की अदाकारी और दूसरी एक सितारे की ज़िंदगी।
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