फिल्म समीक्षा : पटाखा

एक बार फिर विशाल भारद्वाज अपने चिर-परिचित अंदाज़ यानी कि ठेठ देसीपन के साथ हाजिर हैं। इस बार वो 'पटाखा' लेकर आए हैं। चरण सिंह पथिक के उपन्यास ‘दो बहनें’ पर बनी इस फिल्म में सान्या मल्होत्रा, राधिका मदन, सुनील ग्रोवर और विजय राज सरीखे कलाकार हैं। अब यह फिल्म कैसी बनी है, आइए करते हैं इसकी समीक्षा।

फिल्म पटाखा में सान्या मल्होत्रा और राधिका मदन

निर्माता :  विशाल,रेखा भारद्वाज,ईशान सक्सेना,अजय कपूर 
निर्देशक : विशाल भारद्वाज
कलाकार : सान्या मल्होत्रा, राधिका मदान, सुनील ग्रोवर, विजय राज,नमित दास
संगीतकार : विशाल भारद्वाज 
जॉनर : कॉमेडी -ड्रामा
रेटिंग : 4/ 5 

कहानी 
‘बड़की’ चंपा कुमारी और ‘छुटकी’ गेंदा कुमारी दो बहनें हैं और दोनों को एक-दूजे से इतनी नफरत रहती है कि हमेशा गुत्थम-गुत्थी ही करती रहती थीं। 

इन दो बहनों का शगल लड़ना है, वैसे ही एक ऐसा बंदा है, जिसको इनकी लड़ाई इतनी भाती है कि डिब्बा-कनस्तर पीट-पीट कर खुश होता है। उसका नाम है ‘डिप्पर’। 

एक-दूसरे की जान की प्यासी इन बहनों की आंखों में सपने भी पलते हैं। एक को अपना डेयरी खोलना है, जो दूजी को टीचर बनना है। 

इनके सपने में पलीता ‘बापू’ की मजबूरी से लगता है। दरअसल, ‘बापू’ को अचानक से चार लाख रुपयों की ज़रूरत पड़ जाती है, जिसकी पूर्ति गांव का ‘ठरकी पटेल’ करता है, लेकिन साथ में एक शर्त भी रखता है। 

विधुर ‘ठरकी पटेल’ को ‘बापू’ की ‘बड़की’ या फिर ‘छुटकी’ में से किसी एक के साथ ब्याह करना है। इस बीच लड़ती-भिड़ती ‘बड़की’-‘छुटकी’ को उनके-उनके सपनों के राजकुमार भी मिल जाते हैं। 

मजबूर ‘बापू’ शादी तय कर देता है, तो फिर घर बसाने से लेकर नाम बनाने तक के सपने चकनाचूर होते दिखता है। ऐसे में एक-एक कर के दोनों भाग खड़ी होती हैं और इन सब में उनकी मदद करता है ‘डिप्पर’। 

दोनों बहनों को घर से भागने के बाद लगता है कि चलो अच्छा हुआ जी का जंजाल छूटा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। दरअसल, दोनों ने अनजाने में सगे भाइयों से ही ब्याह रचा लिया था। 

अब आगे इनकी गृहस्थी की गाड़ी, दुश्मनी का जहाज कैसे चलता है, जानने के लिए थिएटर जाना होगा। 

समीक्षा
सबसे पहले बात करते हैं अभिनय की। सान्या मल्होत्रा ने ‘दंगल’ में अपनी काबिलियत दिखा दी थी और इस फिल्म में भी वो उम्मीद पर खरी उतरी हैं।

अब उस कलाकार की बात, जिसने चौंका दिया है। उसका नाम है राधिका मदन। ‘बड़की’ के किरदार में जान फूंक दिया है। कहीं भी वो अपने किरदार को छोड़ती नहीं दिखती हैं। इमोशंस को पूरी सहजता से ओढ़ा है। 

राधिका इससे पहले टेलीविज़न शो में अमीर लड़की के किरदार में नज़र आ चुकी हैं, लेकिन इस बार ठेठ गांवठी अंदाज़ में वो पर्दे पर दिखीं। 

इनके बाद उस किरदार का जिक्र, जिसका नाम ‘डिप्पर’ है। खुद को इन बहनों का शुभचिंतक कहता है, लेकिन फिर इनको लड़ता देख कर खुश कैसे हो सकता है। ‘डिप्पर’ काइयां भी है, केयरिंग भी है, बेवकूफ भी है, डेयरिंग भी है।

अब जिस किरदार के इतने शेड हो, उसको करीने से निभाने वाला शख्स कमतर हो ही नहीं सकता है। वैसे तो सुनील ग्रोवर की प्रतिभा को सभी मानते हैं। उन्होंने ‘रिंकू भाभी’, ‘गुत्थी’ या फिर ‘मशहूर गुलाटी’ सभी किरदारों को जीवंत किया है। अब उनके इस लीग में ‘डिप्पर’ भी आ खड़ा हुआ है। 

मजबूर ‘बापू’ के किरदार में विजय राज, ‘ठरकी पटेल’ बने सानंद वर्मा, ‘जगन’ बने नमित दास और ‘विष्णु’ अभिषेक दुहान ने भी उम्दा काम किया है। 

फिल्म का निर्देशन भी कमाल का रहा है। किरदारों के रॉ अंदाज़ को दिखाने में हमेशा विशाल भारद्वाज दिलचस्पी लेते हैं। कहानी जहां की होती है, वो वहां की ही लगती है। बनावटीपन झांक भी नहीं पाता है। मूल कहानी को जिस तरह से अडॉप्ट किया है, वो कमाल का है। 

संगीत के क्षेत्र में भी यह फिल्म कमतर नहीं लगती। विशाल की फिल्म है, तो फिर गाने गुलज़ार ही लिखेंगे। इस बार भी वैसा ही हुआ है। ‘बलमा’, ‘नैना’ और ‘कुल्हड़ फोड़े गली-गली’ सरीखे गाने ज़बान पर चढ़ जाते हैं।

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