फिल्म समीक्षा : छपाक
कई बार फिल्ममेकर्स अपने फिल्म के माध्यम से समाज के उस लिजलिजे सच से आपका सामना करवाते हैं, जिसे जानते तो सब हैं, लेकिन कहने से कतराते हैं। ऐसे ही एक ‘सच’ को पर्दे पर उतारने ही हिम्मत मेघना गुलज़ार ने की है। फिल्म में दीपिका पादुकोण ने मुख्य भूमिका निभाई है, साथ ही उन्होंने इस फिल्म से बतौर निर्माता अपनी नई पारी की शुरुआत भी की है।
निर्माता : फॉक्स स्टार स्टूडियोज़, दीपिका पादुकोण, गोविंद सिंह संधू और मेघना गुलज़ार
निर्देशक : मेघना गुलज़ार
कलाकार : दीपिका पादुकोण, विक्रांत मैसी, मधुरजीत, अंकित बिष्ट
जॉनर : डॉक्यू ड्रामा
रेटिंग : 3/5
एसिड अटैक सर्वाइवर को एक चेहरा और नाम दिया जाए, तो वो लक्ष्मी अग्रवाल होंगी। लक्ष्मी की ही कहानी को मेघना ने पर्दे पर उतारा है। कैसे तमाम संभावनाओं और सपनों से सजी एक लड़की को तेजाब डालकर बुझाने की कोशिश की गई, लेकिन वो लड़की अपनी जीजीविषा से खड़ी हुई और फिर लड़ी और जीत हासिल की। अभिनेत्री दीपिका पादुकोण इस फिल्म से बतौर निर्माता भी कदम बढ़ा रही हैं। फिर आइए करते हैं फिल्म की समीक्षा।
कहानी
फिल्म की कहानी है मालती अग्रवाल (दीपिका पादुकोण) की, जिस पर एसिड से अटैक होता है और इस हादसे में उसका पूरा चेहरा झुलस जाता है। तामाम सपनों से भरी लड़की की ज़िंदगी चुटकी में अलग मोड़ ले लेती है। मालती के साथ हुए इस घटना के लिए लोगों का शक उसके दोस्त राजेश (अंकित बिष्ट) पर जाता है, लेकिन मालती का गुनहगार राजेश नहीं, बल्कि बब्बू उर्फ बशीर खान निकलता है। बशीर की इस काम में मदद उसकी रिश्तेदार परवीन शेख करती है।
अपने साथ हुए इस अन्याय के लिए मालती केस लड़ने का मन बनाती है और उसकी मदद के लिए आगे आती है उसके पिता की मालकिन शिराज और उनकी वकील अर्चना (मधुरजीत सरघी)। अर्चना, मालती का केस लड़ती है और उसे न्याय दिलाने के लिए मेहनत करती है।
इसी दौरान मालती की मुलाकात अमोल (विक्रांत मैसी) से होती है। अमोल ने पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए एक एनजीओ चलाता है। साथ में काम करते हुए अमोल और मालती एक-दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं।
समीक्षा
मेघना गुलज़ार संवेदनशील कहानियों को परोसने का हुनर खूब जानती हैं। ‘छपाक’ सरीखी फिल्म को उन्होंने खूबसूरती से परोसने की कोशिश की है। कुल-मिलाकर मेघना ने उम्दा निर्देशन किया है।
स्क्रिप्ट ज़रूरत से ज्यादा कसी होने की वजह से फिल्म से कई बार तारतम्य टूट जा रहा था। किरदारों दर्शकों की समझ में आने तक का समय नहीं मिला। जल्दबाजी में समेटा हुआ था महसूस होता है।
वहीं फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, संगीत के साथ प्रोस्थेटिक्स कमाल का है। फिल्म का कलेवर ज़रूर सिनेमाई है, लेकिन अंदाज़ डॉक्यूमेंट्री टाइप ही है।
अब बात करते हैं अभिनय की। सबसे पहले तो इस तरह के किरदार को पर्दे पर साकार करने की जिस हिम्मत की ज़रूरत होती है, वो दिखाने के लिए दीपिका पादुकोण की तारीफ होनी चाहिए। रही बात एक्टिंग की, तो उन्होंने उम्दा काम किया है। मालती के हर दर्द, खुशी और हौंसले को दीपिका ने बखूबी निभाया है। हालांकि, जब वो स्कूल गोइंग गर्ल बनी पर्दे पर दिखेंगी, तो थोड़ी अजीब लगती हैं। वहीं पर उनकी कमजोरी पकड़ में आती है।
अमोल बने, विक्रांत मैसी शानदार रहे। अपनी परफॉर्मेंस से उन्होंने साबित कर दिया कि उनको बॉलीवुड में और भी अवसर मिलने चाहिए। अब इन दोनों के अलावा बाकी एक्टर्स जैसे अंकित बिष्ट, मधुरजीत सरघी, देवस दीक्षित ने भी बेहतरीन काम किया है।
वहीं असल जिंदगी की एसिड अटैक सर्वाइवर ऋतू, बाला, जीतू और कुंती, जो कि फिल्म की शीरो यानी हीरो हैं, ने भी उम्दा काम किया है।
संगीत की बात करें, तो बोल गुलज़ार ने लिखे हैं और संगीत दिया शंकर, अहसान और लॉय ने। फिल्म का संगीत भी आपको बहा ले जाता है।
ख़ास बात
यदि आप सोशल इश्यू पर बनी कोई अच्छी फिल्म देखने का मन बना रहे हैं, तो ‘छपाक’ एक अच्छा विकल्प हो सकता है। हालांकि, फिल्म थोड़ी सी भारी ज़रूर लगेगी।
की दुनिया में थोड़ा और गहरे उतर सकती थी।