फिल्म समीक्षा : दरबार
रजनीकांत, नाम ही काफी है। पर्दे पर स्लो मोशन वॉक, सनग्लासेस से खेलता हीरो जब अपनी स्टाइलिश फाइट से गुंडों को धूल चटाता है, तो थिएटर में बैठा दर्शक और माहौल ‘रजनीमय’ हो जाता है। एक बार फिर से वही माहौल रचने की कोशिश ए आर मुरुगदॉस ने की है।
निर्माता : अल्लीराजा सुभाषकरण
निर्देशक : ए आर मुरुगदॉस
कलाकार : रजनीकांत, नयनतारा, निवेता थॉमस, योगी बाबू, प्रतीक बब्बर, सुनील शेट्टी, नवाब शाह और दिलीप ताहिल
जॉनर : एक्शन थ्रिलर
रेटिंग : 2/5
आमिर खान के साथ ‘गजनी’, सोनाक्षी सिन्हा की ‘अकीरा’ और अक्षय कुमार के साथ ‘हॉलीडे’ सरीखी सफल फिल्में बनाने वाले निर्देशक ए आर मुरुगदॉस रजनीकांत के साथ ‘दरबार’ लेकर आए हैं। फिल्म में कहानी क्या होगी, पटकथा कैसी होगी, वो तो बात की बात है, लेकिन इन सब पर भारी पड़ेगा ‘रजनीकांत का जलवा’। फिर आइए करते हैं फिल्म की समीक्षा।
कहानी
फिल्म की कहानी है आदित्य अरुणाचलम (रजनीकांत) की, जो मुंबई के कमिश्नर हैं। सालों पहले एक अपराधी हरि चोपड़ा (सुनील शेट्टी) ने कुछ ऐसा कर दिया था, जिससे पुलिस महकमे की साख पर सवाल खड़े हो गए थे। पुलिस डिपार्टमेंट के दामन पर वो दाग आदित्य को इतना खलता है कि उसे अभी भी हरि चोपड़ा की तलाश है।
आदित्य की तलाश जारी है, लेकिन तभी वो एक दूसरे केस में उलझ जाता है और उसके साथ एक घटना घट जाती है। अब आदित्य अचानक इन परिस्थितियों में एक के बाद एक उलझता जाता है। ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा है कि आखिर उसके साथ ऐसा कर कौन रहा है? अब वो इश गुत्थी को कैसे सुलझा पाता है और हरि की तलाश आख़िर ख़त्म होती है या नहीं? यह सब जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।
समीक्षा
कहानी ए आर मुरुगदॉस ने ही लिखी और पूरी तरह से फॉर्मूला फिल्म की कहानी उन्होंने लिख दी है। हीरो-हिरोइन, रोमांस, एक्शन, इमोशंस आदि-अनादि। हालांकि, उन्होंने स्क्रिप्ट लिखते वक्त उन्होंने ट्विस्ट-टर्न्स का बराबर ध्यान रखा है, साथ ही इसमें एक्शन भी समय-समय पर परोसा है।
कहानी में कई जगह झोल कर दिया गया है, लेकिन निर्देशक को लगा कि रजनीकांत पर्दे पर हों, तो फिर बाकी बातों पर कौन ध्यान देता है। इस तरह से थोड़ी-थोड़ी ढील भी ले ली गई है।
हालांकि, कहानी पर ध्यान दे देते, तो फिल्म कमाल कर जाती। रजनीकांत पर्दे पर हों और जबरदस्त कहानी हो, तो फिर सोचिए कॉम्बिनेशन कितना लीथल होगा।
फिल्म की रफ्तार की बात करें, तो फर्स्ट हॉफ तो फास्ट रही, लेकिन सेकंड हॉफ में रफ्तार भी हांफने लगी। वहीं स्क्रीन टाइमिंग में भी मामला गड़बड़-घोटाला ही रहा। अब एक-तरफ आप विलेन हरि चोपड़ा की बात करते हैं, लेकिन हरि चोपड़ा यानी सुनील शेट्टी स्क्रीन पर गेस्ट अपीयरेंस टाइप नजर आए।
वहीं रजनीकांत और नयनतारा का रोमांटिक ट्रैक भी अजीब तरीक़े से खत्म किया गया। मानो, एडिटिंग टेबल पर रोमांटिक ट्रैक बेमतलब नज़र आया और ‘खच्चाक’ से कैची चला दी गई। हालांकि, फिल्म का क्लामैक्स मज़ेदार था, जिसमें जबरदस्त एक्शन देखने को मिला। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है।
मुरुगदॉस ने कहानी भी लिखी और निर्देशन भी किया, लेकिन बतौर निर्देशक वो ज्यादा इंप्रेसिव हैं। वैसे मुरुगदॉस ने ‘दरबार’ को पूरी तरह से ‘रजनीमय’ ही कर दिया है। ज्यादा से ज्यादा वक्त रजनीकांत ही पर्दे पर नज़र आए।
फिल्म में रजनीकांत के अलावा जो थोड़े-थोड़े समय के लिए कलाकार नज़र आ रहे थे, सबने सराहनीय काम किया है। जहां तक बात संगीत की है, तो बैकग्राउंड स्कोर अच्छा रहा, लेकिन बाकी फिल्म के म्यूजिक में कोई खास दम नहीं है।
ख़ास बात
यदि आप रजनीकांत के फैन हैं, तो ‘दरबार’ आपके लिए ही बनाई गई है। आपको पक्का यह फिल्म पसंद आने वाली है।