फिल्म समीक्षा : जवानी जानेमन

बेफिक्र ज़िंदगी जीने वाले शख्स को जब अचानक पता चलता है कि वो न सिर्फ 21 साल की लड़की का पिता है, बल्कि जल्दी ही वो नाना बनने वाला है। तब कैसे संभालता है वो खुद को और उस लड़की को। इसी के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी को नितिन कक्कड़ लेकर आए हैं, जिसमें सैफ अली खान और तब्बू मुख्य भूमिकाओं में हैं और साथ ही अलाया फर्नीचरवाला इस फिल्म से अपना सिने डेब्यू कर रही हैं। 

सैफ अली खान फिल्म जवानी जानेमन में
फिल्म : जवानी जानेमन

निर्माता : जैकी भगनानी, सैफ अली खान, दीपशिखा देशमुख, जय शेवक्रमणी

निर्देशक : नितिन कक्कड़

कलाकार : सैफ अली खान, तब्बू, अलाया फर्नीचरवाला, फरीदा जलाल, चंकी पांडेय, कुमुद मिश्रा

संगीत : तनिष्क बागची, गौरवल-रोशिन, प्रेम-हरदीप

जॉनर : कॉमेडी ड्रामा

रेटिंग : 3/5

‘फिल्मिस्तान’ और ‘नोटबुक’ सरीखी फिल्मों का निर्देशन करने वाले नितिन कक्कड़ की अगली पेशकश का नाम है, ‘जवानी जानेमन’। इस फिल्म से बीते जमाने की अदाकारा पूजा बेदी की बेटी अलाया फर्नीचरवाला सिने डेब्यू कर रही हैं और फिल्म में सैफ अली खान, तब्बू सरीखे दमदार सितारे मुख्य भूमिका में हैं। फिर आइए देखते हैं कैसी बनी है फिल्म। 

कहानी

अपनी उम्र के चालीसवें को पार कर चुके जसविंदर सिंह उर्फ जैज (सैफ अली खान) लंदन में रहता है और प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता है। खूब सारा पैसा कमाता है, लेकिन कमिटमेंट से दूर भागता है। शादी, बच्चे, परिवार आदि को वो बोझ मानता है और अपनी बैचलर्स लाइफ में ही मस्त रहना चाहता है। तभी तो भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद भी वो अकेला रहता है। 

मामले में ट्विस्ट तब आता है, जब अचानक उसके जीवन में 21 साल की टिया (अलाया फर्नीचरवाला) आती है। अपनी फितरत के मुताबिक जैज, बाकी लड़कियों की तरह ही टिया से भी फ्लर्ट करने की फिराक में रहता है, लेकिन तभी उसको कुछ ऐसी बात पता चलती है कि उसके सिर से आसमान और पैर के नीचे की जमीन खिसक जाती है। 

दरअसल, टिया कहती है कि 33 फीसदी चांसेस हैं कि जैज उसका पिता हो सकता है। इस बात को साबित करने के लिए आखिरकार उसको डीएनए टेस्ट करवाना पड़ता है, जिसमें पता चलता है कि टिया जैज की ही बेटी है। बात यही नहीं है, बल्कि टिया भी अपने बॉयफ्रेंड के बच्चे की मां बनने वाली है। 

इतने सारे ट्विस्ट-टर्न्स के बाद जैज की ज़िंदगी 360 डिग्री घूम जाती है। बेटी के बॉयफ्रेंड, उसका बच्चा और सबसे अहम अपनी बेटी की मां...इतनी सारी उलझनों को किसी तरह जैज सुलझाएगा। क्या कुछ निकल कर सामने आएगा, इसके लिए फिल्म देखें। 

समीक्षा

आज के दौर की कहानी कहने आए नितिन कक्कड़ ने काफी कोशिश की, लेकिन फिल्म कई बार उनके हाथों से छूटती हुई सी महसूस होती है। फिल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं, दर्शकों को खूब गुदगुदाते हैं, लेकिन फिल्म की कहानी ज़मीन छोड़ देती है। दर्शक फिल्म से अपने-आप को जोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन हर बार वो नाकाम ही रहा। हालांकि, अलाया के आने के बाद में थोड़ी दिवचस्पी बढ़ती है, लेकिन बाद फिर मामला वही पुराना हो जाता है।

कुल मिलाकर फिल्म स्क्रीनप्ले लचर है, जिसे निर्देशक संभालते-संभालते फिसल जाता है। वहीं फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। 

सबसे पहले बात डेब्यूटेंट अलाया फर्नीचरवाला की, उन्होंने अपनी पहली फिल्म में ही बता दिया है कि उनमें संभावनाएं हैं। नाना कबीर बेदी की एक्टिंग और मां पूजा बेदी के लुक्स का मिश्रण अलाया में जबरदस्त कॉन्फिडेंस नज़र आया। 

वहीं सैफ अली खान अभिनय के मामले में ठीक-ठाक रहे, लेकिन जिन दर्शकों ने उनको ‘सलमान नमस्ते’ और ‘कॉकटेल’ में देखा होगा, वो समझ जाएंगे कि कई बार उनको हाव-भाव इन दो फिल्मों में निभाए गए किरदारों के हाव-भाव से मिलते दिखे। 

तब्बू को काफी कम स्क्रीन स्पेस मिला है, लेकिन उन्होंने उतने में ही झंडा गाड़ दिया है। उनके किरदार को थोड़ा और स्पेस चाहिए था, क्योंकि यह कहानी एक-तरफा सी लगती है। बाकी कलाकारों में चंकी पाण्डे, कुबरा सेठ और कुमुद मिश्रा ने भी उम्दा काम किया है।

म्यूज़िक के मामले में फिल्म के गाने पहले ही काफी पसंद किए जा रहे हैं। क्योंकि फिल्म में नब्बे के हिट नंबर्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल जो किया गया है। 

ख़ास बात

फिल्म औसत दर्जे की है। हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्म है, जिसे फैमिली के साथ देखा जा सकता है।