फिल्म समीक्षा: अंग्रेज़ी मीडियम
इरफान खान के कमबैक का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे दर्शकों के लिए होमी अदजानिया 'अंग्रेज़ी मीडियम' लेकर आए हैं। इरफान को बॉलीवुड का एफर्टलेस एक्टर कहा जाता है। अपनी अभिनय शैली से उन्होंने एक अलग पहचान बनाई है। फिर आइए जानते हैं, उनकी फिल्म 'अंग्रेज़ी मीडियम' में दर्शकों को क्या खास देखने को मिलेगा।
फिल्म : अंग्रेज़ी मीडियम
निर्मता : दिनेश विजान
निर्देशक : होमी अदजानिया
कलाकार : इरफान खान, करीना कपूर खान, राधिका मदान, डिंपल कपाड़िया, दीपक डोबरियाल, कीकू शारदा और रणवीर शौरी
संगीत : सचिन- जिगर, तनिष्क बागची
जॉनर : कॉमेडी
रेटिंग : 3/5
साल 2017 में साकेत चौधरी की 'हिन्दी मीडियम' रिलीज़ हुई थी, जिसे दर्शकों के साथ क्रिटिक्स की भी तारीफ मिली थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भी कामयाब रही। अब उसी फिल्म की स्पिन-ऑफ लेकर होमी अदजानिया आए हैं और नाम रखा है, 'अंग्रेज़ी मीडियम'। इस फिल्म में इरफान खान के अलावा राधिका मदान, करीना कपूर खान, दीपिक डोबरियाल, रणवीर शौरी, डिंपल कपाड़िया, कीकू शारदा सरीखे कलाकार हैं। इस फिल्म से इरफान अपनी बीमारी से निजाद पाने के बाद वापसी कर रहे हैं। फिर आइए देखते हैं, कैसी बनी है फिल्म।
कहानी
फिल्म की कहानी है चंपक बंसल (इरफान खान) की, उदयपुर में अपनी बेटी तारिका (राधिका मदान) उर्फ तरू के साथ रहता है। दरअसल, चंपक की पत्नी का काफी पहले निधन हो गया था, और वो विधुर है। वहीं चंपक के पास गुज़र-बसर के लिए एक मिठाइयों की दुकान है, जो पुश्तैनी है। उसका एक कज़िन गोपी (दीपक डोबरियाल) है, जिससे उसका टॉम एंड जैरी वाला रिश्ता है। दोनों लड़ते भी हैं, लेकिन एक-दूजे के बिना रह नहीं पाते। इनका एक दोस्त गज्जू (कीकू शारदा) भी है।
चंपक की बेटी तरू का लंदन जाकर पढ़ने का सपना है। इसके लिए वो खूब मेहनत करती है और फिर स्कूल की तरफ से उसे लंदन की ट्रूफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ने का मौका मिलता है, लेकिन चंपक की एक ग़लती की वजह से वो मौका हाथ से चला जाता है। लेकिन तरू को यह लगता है कि चंपक ने यह जान-बूझकर किया है, क्योंकि वो तरू को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता। चंपक, तरू से वादा करता है कि वो किसी भी क़ीमत पर लंदन भेजेगा। तरू को लंदन भेजने के लिए चंपक अपना सबकुछ दांव पर लगा देता है।
बाद में चंपक, गोपी अपने दोस्त बबलू (रणवीर शौरी) के झांसे में आकर तरु के साथ लंदन पहुंच जाते हैं, लेकिन चंपक और गोपी का अंग्रेज़ी में हाथ तंग रहता है, जिसकी वजह से इमिग्रेशन ऑफिसर्स को गलतफहमी होती है और चंपक, गोपी को इंडिया वापस भेज देते हैं। इधर तरू लंदन में अकेली पड़ जाती है। फिर गज्जू के कज़िन टोनी (पंकज त्रिपाठी) की मदद से गोपी, चंपक वापस लंदन पहुंचते हैं, जहां उनकी मुलाक़ात पुलिस ऑफिसर नैना (करीना कपूर) और उसकी मां मिसेज कोहली (डिंपल कपाड़िया) से होती है। नैना और मिसेज कोहली से मिलने के बाद गोपी, चंपक और तरू की कहानी में क्या कुछ घटता है, बाप-बेटी के उतार-चढ़ाव भरे इस रिश्ते में क्या होता। यह सब जानने के लिए थिएटर जाना होगा।
समीक्षा
फिल्म की स्क्रिप्ट को भावेश मंडालिया, गौरव शुक्ला, विनय चव्वल और सारा बोदिनर ने मिलकर लिखा है। चार लोगों ने मिलकर जो कहानी लिखी है, उसमें कन्फ्यूज़न में भी खूब सारा है। कई बार कलाकारों के डायलॉग के लहजे बोझिल लगते हैं। हालांकि, कहानी में यंग जनरेशन के उड़ते सपने और पेरेंट्स के साथ उनके रिश्ते को लेकर एक नई परत खोलने की कोशिश की गई है, जो कुछ अधूरी लगती है। अनिल मेहता की सिनेमैटोग्राफी सिर्फ राजस्थान को ही सुंदर दिखा पाया, लंदन को उन्होंने कोई तवज्जो देना ठीक नहीं लगा।
होमी अदजानिया ने यंग जनरेशन के सपने और फिर अपनों से उनके रिश्तों को उकेरने की, लेकिन मामला कहीं-कहीं फैल सा गया। फर्स्ट हॉफ अच्छी है, लेकिन सेकंड हॉफ काफी धीमा कर दिया। वहीं कलाकारों को भरने के चक्कर में कुछ को ज़ाया किया। जैसे फिल्म में पंकज त्रिपाठा का ट्रैक बिलावजह का लगा। उनको फिल्म में लिया था, तो किरदार गढ़ा जाता।
ख़ैर, एक्टिंग के मामले में क्या ही कहा जाए। इस फिल्म की मजबूत कड़ी कलाकारों की अदायगी ही है। अब चाहे वो इरफान खान हो, दीपक डोबरियाल या राधिका मदान। सभी ने जबरदस्त अदायगी दिखाई है।
वहीं करीना कपूर और डिंपल कपाड़िया की भूमिका फिल्म में गेस्ट अपीरियंस से थोड़ा सा ज्यादा है। फिर भी अपने-अपने हिस्से को दोनों अच्छी तरह निभा ले गईं।
कीकू शारदा और रणवीर शौरी ने भी अच्छी-खासी परफॉर्मेंस दी है।
कुल मिलाकर यदि इस फिल्म की स्क्रिप्टिंग पर थोड़ा और ध्यान दिया जाता, तो यह फिल्म और भी बेहतर बन जाती।
ख़ास बात
यदि आप इरफान खान के फैन है, तो फिर उनकी जबरदस्त अदायगी देखने के लिए ज़रूर जाएं।
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