फिल्म समीक्षा : दूरदर्शन
एक फिल्म चुपके से सिनेमाघरों में उतरी है। न तो बड़े स्टार हैं और ना ही ज्यादा ताम-झाम है। गगन पुरी के निर्देशन में बनी यह फिल्म अस्सी-नब्बे के दशक के बच्चों के लिए एक ट्रीट हो सकी है। एक ऐसा झरोखा, जिसमें से वो बीते दिनों को एक बार फिर से जी लें। फिर आइए जानते हैं क्या कुछ खास है इस फिल्म में।
निर्माता : ऋतु आर्या, संदीप आर्या
निर्देशक : गगन पुरी
कलाकार : मनु ऋषि चढ्डा, माही गिल शार्दूल राणा, सुमित गुलाटी, सुप्रिया शुक्ला, राजेश शर्मा, डॉली अहलूवालिया।
जॉनर : कॉमेडी-ड्रामा
रेटिंग : 3
यदि आपने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर 'गुल्लक' और 'ये मेरी फैमिली' सरीखी सीरीज़ देखी हैं और वो आपको पसंद आई हैं, तो फिर 'दूरदर्शन' भी ज़रूर आपका मनोरंजन करने वाली है।
कहानी
यह कहानी है दिल्ली के सुनील ( मनु ऋषि चड्ढा) की, जो अपनी बीजी यानी मां (डॉली अहलूवालिया) से बहुत प्यार करते हैं। बीजी तकरीबन तीस सालों से कोमा हैं। वहीं सुनील की पत्नी प्रिया (माही गिल) भी उसे छोड़कर उससे अलग रह रही है।
सुनील और प्रिया का एक बेटा है, जो कॉलेज में पढ़ता है। अपनी कॉलेज की पढ़ाई से वो परेशान है और उसे अडल्ट बुक्स पड़ने का शौक लग गया है। वहीं सुनील और प्रिया की बेटी भी है, जिसकी अपनी अलग दिक्कते हैं। फिर भी सबकी ज़िंदगी अपने हिसाब से चल रही है।
इनकी ज़िंदगी की गाड़ी तब डिरेल होती होती है, जब अचानक एक दिन बीजी तीस साल के कोमा से बाहर आ जाती हैं। अब ऐसे में बीजी को अचानक झटका न लगे, इसे ध्यान में रखकर पूरा परिवार 'दूरदर्शन' वाला दौर जीने लग जाता है। आज कल के समय में 'दूरदर्शन' वाला दौर क्रिए करने में काफी सारे ट्विस्ट-टर्न्स आते हैं और फिर लगता है कॉमेडी का जबरदस्त तड़का।
समीक्षा
फिल्म का निर्देशन अच्छा है। हालांकि, कई सीन्स ऐसे हैं, जो दर्शकों को निगलने में दिक्कत होती है। इसके बावजूद भी फिल्म आपको अपने साथ हंसाने-रूलाने पर मजबूर कर देती है। हालांकि, फिल्म की स्क्रिप्टिंग पर थोड़ा हाथ कसने की ज़रूरत थी। साथ ही इसकी एडिटिंग पर भी काम होना चाहिए था।
सोनी सिंह की सिनेमैटोग्राफी की तारीफ बनती है। वो दिल्ली के माहौल को बखूबी क्रिएट कर ले गई हैं।
भले ही फिल्म में स्टार पॉवर न हो, लेकिन एक्टर पॉवर से आप इंकार नहीं कर पाएंगे। मनु ऋषि और डॉली अहलूवालिया के सीन्स काफी अच्छे बन पड़े हैं। एक सीन में जब बीजी, अपने बेटे सुनील से इतने दिनों तक मल-मूत्र साफ करने की बात करती हैं, तो सुनील उनको अपने बचपन की मेहनत याद दिलाता था। यह सीन वाकई भावुक कर जाता है।
वहीं माही गिल शुरू-शुरू में थोड़ी असहज महसूस हुईं, लेकिन धीर-धीरे किरदार में उतर गईं। बाकी कलाकारों राजेश शर्मा, सुप्रिया शुक्ला, शार्दुल राणा और सुमित गुलाटी भी अपने-अपने किरदारों में ठीक रहे।
फिल्म का म्यूज़िक काफी कमजोर है। फिल्म के संगीत को फिल्म के फ्लेवर के मुताबिक रचना चाहिए था।