शास्त्री जी ने मीना कुमारी से पहली मुलाक़ात में क्या पूछ लिया था?
मीना कुमारी से भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पहली ही मुलाक़ात में कुछ ऐसा पूछ लिया कि सब हक्के-बक्के रह गए। मीना कुमारी और लाल बहादुर शास्त्री के पहले मुलाक़ात का वो दिलचस्प किस्सा कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'ऑन लीडर्स एंड आइकॉन्स: फ्रॉम जिन्ना टू मोदी' ने लिखा है।
बॉलीवुड की 'ट्रेजडी क्वीन' मीना कुमारी का नाम हिन्दी सिने जगत के इतिहास में अमर है। जब तक यह फिल्म इंडस्ट्री रहेगी, तब तक उनका नाम रोशन रहेगा। वहीं यदि आपसे कोई कह दे कि मीना कुमारी के सामने ही उनके बारे में किसी ने पूछा लिया था, 'यह महिला कौन है?'
भले ही अविश्वसनीय लग रहा हो, लेकिन यह सच है और क़िस्से का ब्यौरा कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'ऑन लीडर्स एंड आइकॉन्स: फ्रॉम जिन्ना टू मोदी' में दिया है। आज मीना कुमारी के पुण्यतिथि में उस वाकये को बताते हैं।
अब हुआ यह कि मीना कुमारी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'पाकीज़ा' की शूटिंग चल रही थी और उस वक़्त देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थी। तब महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उनको मुंबई आने के लिए दबाव बनाया, जिसे शास्त्री जी टाल नहीं पाए। फिर क्या था मुंबई आ गए।
अब जिस स्टूडियो में फिल्म 'पाकीज़ा' की शूटिंग चल रही थी। वहां सब पहुंचे और मीना कुमारी ने प्रधानंमंत्री को माला पहना कर स्वागत किया। नैयर अपनी किताब में लिखते हैं, 'उस वक्त स्टूडियो में कई बड़े सितारे मौजूद थे। मीना कुमारी ने जैसे ही लाल बहादुर शास्त्री को माला पहनाी। शास्त्री जी ने बड़ी ही विनम्रता से मुझसे पूछा-यह महिला कौन है? मैंने हैरानी जताते हुए उनसे कहा- मीना कुमारी। शास्त्री जी ने अपनी अज्ञानता व्यक्त की। फिर भी मैंने उनसे सार्वजनिक तौर पर इसे स्वीकार करने की अपेक्षा नहीं की थी।'
आगे नैयर लिखते हैं, 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि शास्त्री जी यह बात सार्वजनिक तौर पर पूछेंगे। हालांकि, मैं शास्त्री जी के इस भोलेपन और ईमानदारी से बेहद प्रभावित हुआ था। बाद में लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी स्पीच में मीना कुमारी को संबोधित करते हुए कहा था- मीना कुमारी जी...मुझे माफ करें, मैंने आपका नाम पहली दफा सुना है।'
शास्त्री जी की इस स्वीकारोक्ति को सुनकर पहली पंक्ति में बैठी मीना कुमारी के चेहरे पर शर्म साफ झलक रही थी। स्थिर बैठी हुई मीना कुमारी शर्माए जा रही थीं।
मीना कुमारी ने हिन्दी सिने जगत को अपनी ज़िंदगी के 33 साल दिए। इस दौरान 'बैजू बावरा', 'परिणीता', 'काजल', 'दिल एक मंदिर', 'काजल', 'मेरे अपने' , 'आरती', 'साहेब बीवी गुलाम', 'यहूदी', 'बहु बेगम', 'ग़जल', 'फुटपाथ' आदि कई यादगार फिल्मों की सौगात सिने प्रेमियों को दिये हैं।
फिल्मों की 'ट्रेजडी क्वीन' मीना कुमारी की निजी ज़िंदगी थपेड़ों से होकर गुजरी। आखिर तक वो अपनों के प्यार को तरसती रही। न सिर्फ वो एक अदाकार थी, बल्कि वो शायरा भी थीं। 'नाज़' के नाम से वो लिखा करती थीं। उनके निधन के बाद गीतकार-पटकथा लेखक-निर्देशक गुलज़ार ने उनके लिखी हुई शायरियों को संकलन तैयार करवाया था।
मीना कुमारी को शराब पीने की ऐसी लत लगी, जो उनकी जान लेकर ही मानी। 31 मार्च 1972 में मीना कुमारी का निधन हो गया। यूं तो उनका लिखा काफी कुछ है, लेकिन फिलहाल उनके लिए यही निकलता है।
'अयादत होती जाती है इबादत होती जाती है
मेरे मरने की देखो सब को आदत होती जाती है।'
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