फिल्म समीक्षा : बागी 3
अहमद खान के निर्देशन में बनी और टाइगर श्रॉफ, श्रद्धा कपूर, रितेश देशमुख सरीखे कलाकारों से सजी एक्शन से भरपूर फिल्म 'बागी 3' इस शुक्रवार सिनेमाघरों में उतर चुकी है। इस फिल्म में बाइक, कार, तोप, ट्रेन और हैलीकॉप्टर तक उड़ता हुआ नज़र आने वाला है। अब एक्शन से लबरेज इस फिल्म की आइए करते हैं समीक्षा।
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निर्माता : फॉक्स स्टार स्टूडियोज़, साजिद नाडियाडवाला
निर्देशक : अहमद खान
कलाकार : टाइगर श्रॉफ, श्रद्धा कपूर, रितेश देशमुख, अंकिता लोखंडे, जयदीप अहलावत, विजय वर्मा, जमील खौरी
जॉनर : एक्शन थ्रिलर
रेटिंग: 2/5
'आतंकवाद' के घिसे-पीटे टॉपिक को एक बार फिर खूब सारा एक्शन का मसाला लगाकर अहमद खान ने नई फिल्म बनाई है। टाइगर श्रॉफ, जैकी श्रॉफ, रितेश देशमुख और श्रद्धा कपूर की अहम भूमिका वाली इस फिल्म में दर्शकों को क्या कुछ देखने को मिलेगा, आइए जानते हैं।
कहानी
पुलिस ऑफिसर प्रताप सिंह (जैकी श्राफ) मरते-मरते अपने छोटे बेटे रॉनी (टाइगर) से वादा लेता है कि वो अपने बड़े भाई विक्रम (रितेश देशमुख) की ज़िंदगी भर रक्षा करेंगे। दरअसल, विक्रम सीधा-सादा लड़का रहता है और वहीं रॉनी तेज-तर्रार रहता है। दोनों भाइयों में बचपन से ही अच्छी बॉन्डिंग रहती है। विक्रम के एक आवाज़ पर रॉनी आ जाता है और गुंडों को पलक झपकते ही धराशायी कर देता है। सिक्स पैक एब्स वाला रॉनी पर अपने भाई को बचाते-बचाते कई केस लग जाते हैं। वहीं विक्रम को पिता की जगह पर पुलिस की नौकरी मिल जाती है।
दोनों भाइयों की ज़िंदगी पटरी पर चल रही होती है कि एक दिन अचानक विक्रम आतंकवादियों द्वारा किडनैप कर लिया जाता है। अपने भाई को बचाने के लिए रॉनी निकल पड़ता है। रॉनी के इस मिशन में उसकी गर्लफ्रेंड सिया (श्रद्धा कपूर) भी उसके साथ हो लेती है।
अपने भाई को आतंकवादियों के चंगुल से रॉनी बचा पाएगा या नहीं...यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।
समीक्षा
रोहित शेट्टी की तरह मसाला एंटरटेनर बनाने के लिए ज़रूरी नहीं कि कार, बसे, ट्रेन, ट्रक, तोप को उड़ाया जाए। कहानी पर भी थोड़ी मेहनत करनी होती है। हालांकि, यह बात अहमद खान को समझ नहीं आती है और उनको बताए भी तो कौन?
फिल्म 'बागी 3' में एक्शन सीन्स को गढ़ने में अहमद खान ने काफी कोशिश की है, जो कुछ हद तक ठीक बने हैं, लेकिन इमोशनल और कॉमेडी सीन्स को अधपका ही छोड़ दिया है। फिल्म में सिर्फ और सिर्फ टाइगर श्रॉफ नज़र आए हैं यानी टाइगर श्रॉफ की ओवरडोज हो गया है। वहीं श्रद्धा कपूर को फिल्म में काफी कम स्क्रीन टाइमिंग मिली। फिर भी अपने ग्लैमरेस अंदाज़ में ठीक-ठाक लगीं।
वैसे तो फिल्म में रितेश देशमुख की भूमिका काफी अहम है, लेकिन उनके बच्चों जैसे बर्ताव के पीछे का राज़ फिल्म में बताने की कोशिश भी नहीं की गई। आखिर क्यों उनको हमेशा प्रोटेक्ट करना पड़ता है। स्टोरी की एंडिंग भी ऑडियंस को कन्विंस नहीं कर पाती है।
अबू जलाल बने जमील खौरी अपने किरदार के साथ न्याय करते दिखते हैं, लेकिन बाकी के विलन उतने दमदार नहीं रहे। संगीत के मामले में फिल्म औसत है।
ख़ास बात
यदि आपको पर्दे पर एक्शन देखना पसंद है और स्टोरी लाइन से कोई ख़ास लेना-देना न हो, तो फिर यह फिल्म आपके लिए है।