राजेंद्र कुमार के साथ उनकी 'खटिया' भी हो गई थी मशहूर
राजेंद्र कुमार यानी बॉलीवुद के 'जुबली कुमार' की किस्मत चमकी, तो फिर उनकी 'खटिया' के भी भाग जाग गए थे। राजेंद्र कुमार के मशहूर होने के साथ उनकी वो 'खटिया', जिस पर सोते थे, वह भी पॉपुलर हो गई थी।
राजेंद्र कुमार को 'जुबली कुमार' का तमगा मिलने के पीछे भी काफी दिलचस्प तथ्य है। दरअसल, उनकी फिल्में 25 सप्ताह तक सिनेमाघरों में लगी रहती थी और रिकॉर्ड बनाती थी। इस वजह से उनको हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में 'जुबली कुमार' कहा जाने लगा।
अब शुरू करते हैं वो क़िस्सा, जिसका जिक्र शुरू में किया है। यह उन दिनों की बात है, जब राजेंद्र कुमार मायानगरी में अभिनेता बनने का सपना लेकर आये थे। राजेंद्र कुमार बांद्रा स्टेशन पर पहुंचे। वहीं एक पुरानी बिल्डिंग में एक गेस्ट हाउस था, जिसका नाम था 'बॉम्बे गेस्ट हाउस'।
'बॉम्बे गेस्ट हाउस' के सामने लिखा हुआ था, 'यह गेस्ट हाउस सिर्फ एक्टर बनने आये लोगों के लिए ही है।' बताया जाता है कि इसी गेस्ट हाउस में रहकर धर्मेंद्र से लेकर राज कुमार तक ने संघर्ष किया है।
अब राजेंद्र कुमार भी उस गेस्ट हाउस में आकर ठहरे। रोज़ उठ कर काम की तलाश में निकलते। ऑडिशन देते और फिर अपने कमरे में रखी खाट पर आकर सो जाते। यह सिलसिला चलता रहा और फिर एक दिन क़िस्मत ने साथ दिया और उनको काम मिला। काम मिला, तो वो गेस्ट हाउस के साथ वो खाट भी छूट गया।
राजेंद्र कुमार तो आगे बढ़ गए, लेकिन उस गेस्ट हाउस के मालिक ने दिमाग़ लगाकर मार्केटिंग शुरू कर दी। मार्केटिंग के लिए उसने राजेंद्र कुमार जिस खाट पर सोते थे, उसे चुना। अब जब भी कोई नया अभिनेता स्ट्रगल करने आता, तो गेस्ट हाउस का मालिक कहता कि यह खाट देखो। इसी पर सोने की वजह से राजेंद्र कुमार जुबली कुमार बने हैं।
बाद में गेस्ट हाउस की वो खाट इतनी मशहूर हुई कि लोग जब आते, तो उसी खाट को किराये पर लेने के लिए कहते थे। इस तरह से राजेंद्र कुमार की किस्मत चमकी, तो जिस खाट पर वो सोते थे, उसके भी भाग जाग गए।
उल्लेखनीय है कि राजेंद्र कुमार को पहला ब्रेक साल 1950 में आई फिल्म 'जोगन' में मिली, जिसमें उनकी छोटी सी भूमिका थी। वहीं उनकी डेब्यू फिल्म 'वचन' कही जाती है। इस फिल्म में गीता बाली के साथ वो नज़र आए। हालांकि, राजेंद्र कुमार को साल 1957 में आई महबूब खान की फिल्म 'मदर इंडिया' से मिली, जिसमें उनके अलावा नरगिस और सुनील दत्त अहम भूमिकाओं में थे।
पंजाब के सियालकोट में 20 जुलाई 1929 को एक मध्यम वर्गीय परिवार मे जन्में राजेन्द्र कुमार अभिनेता बनने का सपना देखा करते थे। जब वह अपने सपनों को साकार करने के लिये मुंबई पहुंचे थे, तो उनके पास सिर्फ पचास रुपये थे, जो उन्होंने अपने पिता से मिली घड़ी बेचकर मिले थे। इस घड़ी बेचने पर उन्हें 63 रुपये मिले, जिसमें 13 रुपये से उन्होंने फ्रंटियर मेल का टिकट खरीदा और फिर मुंबई पहुंचे। मुंबई आकर स्ट्रगल शुरू किया और अपना मुकाम हासिल किया।
राजेंद्र कुमार से जुड़ा एक और क़िस्सा है। कहते हैं जब वह बॉलीवुड में खुद को स्थापित कर रहे थे, तभी उनकी नज़र एक बंगले पर पड़ी। बाद में उन्होंने उस बंगले को खरीद लिया। हालांकि, लोगों का मानना था कि वह एक भूत बंगला है, लेकिन इस बंगले को खरीदने के बाद राजेंद्र कुमार ने एक के बाद एक हिट फिल्में दीं। बाद में इसी बंगले को राजेश खन्ना ने खरीदा था।
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