'महाभारत' का क़िस्सागो 'मैं समय हूं' को ऐसे खोजा डॉ. राही मासूम रज़ा ने
बीआर चोपड़ा की 'महाभारत' में 'मैं समय हूं' के खोज की कहानी काफी दिलचस्प है। 'युधिष्ठिर' गजेंद्र चौहान ने बताया कि शो के पटकथा लेखक डॉ. राही मासूम रज़ा को किसी तरह से 'समय' का खयाल आया।
लॉकडाउन के चलते दूरदर्शन पर कई हिट धारावाहिकों का दोबारा प्रसारण शुरू कर दिया गया है। इनमें से एक बी आर चोपड़ी की 'महाभारत' भी है। इस धारावाहिक में 'मैं समय हूं' बिना चेहरे का, लेकिन मजबूत स्तंभ रहा है।
आखिर 'समय' की किस तरह से 'महाभारत' में एंट्री हुई, इसका खुलासा 'युधिष्ठिर' बने गजेंद्र चौहान ने एक वेब पोर्टल से बातचीत में किया।
गजेंद्र ने बताया, 'जो 'महाभारत' के शुरू होने के वक्त 'समय' आता है। इसको बाद में कई धारावाहिकों में कॉपी किया गया। कभी मैं पृथ्वी हूं, कभी मैं आसमान हूं.. मैं ये हूं... मैं वो हूं, लेकिन मैं समय हूं, यह कैसे आया, इसकी कहानी जुड़ी है टीवी शो 'हम लोग' से। उस वक्त उस टीवी शो में दादा मुनि यानी अशोक कुमार जी नरेशन किया करते थे।'
गजेंद्र आगे कहता हैं, 'चोपड़ा साहब ने महाभारत में नरेशन करने के लिए पहले साउथ के एनटीआर साहब को चुना, क्योंकि उन्होंने कई मै भक्ति-भाव से भरी फिल्में की थीं, लेकिन किसी ने कहा कि साउट के एनटीआर को नॉर्थ में लोग शायद पसंद न करें। ऐसे में एनटीआर का विचार उन्होंने छोड़ दिया। फिर दिलीप कुमार का खयाल आया, लेकिन किसी ने कहा कि उर्दु जुबान के साथ यदि 'महाभारत' की कॉस्ट्यूम के साथ जब नरेशन होगा तो अच्छा नहीं लगेगा।'
उन्होंने आगे बताया कि इस दौरान 'महाभारत' के नरेशन को लेकर सोच-विचार चल ही हा था। तभी डॉ. राही मासूम रज़ा के साथ एक वाकया हुआ कि सारा मामला ही सुलझ गया।
बकौल गजेंद्र, डॉ. राही मासूम रज़ा का एक फिक्स्ड रूटीन थी। वह सुबर बीआर चोपड़ा के ऑफिस आते थे और फिर लंच के लिए घर जाते थे। उनकी पत्नी डेढ़ बजे का अलॉर्म लगाकर रखती थीं और जब दो बजे राही जी घर पहुंचते थे तो उनको खाना तैयार मिलता था।
एक दिन ऐसा हुआ कि अलॉर्म दोपहर की बजाय रात के डेढ़ बजे का लग गया। अलॉर्म रात में डेढ़ बजे ही बज पड़ा। अलॉर्म के बजने से जॉ. राही की नींद खुल गई। साथ ही उनकी पत्नी भी उठ गईं और कहा, 'दोपहर के बजाय शायद मुझसे धोखे से रात का अलॉर्म लग गया था।'
ख़ैर, उस अलॉर्म की वजह से डॉ. राही मासूम रज़ा की नींद टूट गई, तो वो अपने स्टडी रूम में चले गए, जहां पर वो 'महाभारत' की स्क्रिप्ट लिखा करते थे। अपनी कुर्सी पर आकर उन्होंने लिखा, 'समय बड़ा बलवान है।'
फिर डॉ. रज़ा ने सोचा कि यदि 'समय' उनकी नींद खराब कर सकता है, तो फिर कहानी भी सुना ही सकता है। इसके बाद उन्होंने पहली बार लिखा था, 'मैं समय हूं और आज मैं आपको हस्तिनापुर की कहानी सुनाने जा रहा हूं।'
गजेंद्र चौहान कहते हैं कि एक अलार्म के गलत समय पर लग जाने से 'समय' सही हो गया।
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