CoronaVirus:वायरस पैंडेमिक पर बेस्ड फिल्में

कोरोना वायरस को लेकर पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे में हम आपके लिए उन फिल्मों की सूची लाए हैं, जो वायरस पैंडेमिक पर बेस्ड हैं। इन फिल्मों की कहानियां वायरस से फैलने वाली महामारियों के इर्द-गिर्द बुनी गई है। फिर लॉकडाउन में इन फिल्मों को देख ही लिया जाए। 
movie based on virus epidemics
फिलहाल विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है। इस महामारी का हल कब मिलेगा, कब इस पर काबू पाया जा सकेगा, लेकिन फिलहाल तो लॉकडाउन कर दिया गया है। अब वायरस की चर्चा जब चारों तरफ है, तो फिर क्यों न उन फिल्मों पर नज़र दौड़ाएं, जो वायरस पैंडेमिक पर बेस्ड हैं। 

वायरस 

साल 2019 में आई मलयाली भाषा की इस फिल्म को आशिक अबू ने निर्देशित किया है। फिल्म की कहानी एक सत्य घटना को केंद्र में रख कर बुनी गई है। बता दें कि साल 2018 में केरल के कोझिकोड और मलप्पुरम डिस्ट्रिक में नीपा नाम का वायरस फैल गया था, जिससे 17 लोगों की जान गई थी। इसी घटना से मूल में रखकर फिल्म 'वायरस' की कहानी को लिखा गया है। 

फिल्म में दिखाया गया है कि एक युवक अस्पताल में भर्ती है, जिसे बुखार, सिरदर्द और उल्टियां हो रही हैं। कुछ देर बाद उस युवक का खयाल रखने वाली नर्स को सांस आना बंद हो जाता है। बाद में पता चलता है कि यह एक जानलेवा वायरस है। इसके बाद कई थ्योरिज़ आती हैं। कुछ का कहना है कि चमगादड़ से फैला है, तो किसी को आतंकवादियों का हथियार लगा, कुछ को दवाई की कंपनियों के माफिया का हथकंडा लगता है। इस बीच शहर में मरीज बढ़ने लगते हैं। पूरे शहर में हड़कंप मच जाता है और फिर वैज्ञानिक और डक्टर इस महामारी से टक्कर लेते हैं। 

28 डेज़ लेटर

साल 2002 में आई फिल्म को 'स्लमडॉग मिलियनेयर' का निर्देशन करने वाले डैनी बॉयल ने निर्देशित किया था। फिल्म की कहानी में दिखाया जाता है कि एक शख्स जो 28 दिन के बाद कोमा से बाहर आता है, तो पाता है कि पूरी दुनिया तहस-नहस हो चुकी है। 

दरअसल, चिंपांजी से एक जानलेवा वायरस फैला, और फैलता ही गया। अब वो भी व्यक्ति उस वायरस की चपेट में आता, वो जॉम्बी बन जाता था। 'जॉम्बी' यानी ज़िंदा लाश। पूरे शहर में ऐसे ज़ॉम्बी घूम रहे हैं। अब बचे हुए चार इंसान कब तक खुद को इन जॉम्बिज़ से खुद को बचा पाते हैं या नहीं, जानने के लिए फिल्म देख ही लीजिए। 

आउटब्रेक

वोल्फगैंग पीटरसन की साल 1995 में आई फिल्म 'आउटब्रेक' की कहानी भी वायरस के इर्द-गिर्द बुनी गई है। कहानी में दिखाया जाता है कि अफ्रीका के एक जंगल से बंदर को स्मलिंग के जरिये अमेरिका लाया जाता है। अब उस बंदर को एनिमल टेस्टिंग लेबोरेटरी का एक कर्मचारी चुरा लेता है। चुरा उसे ब्लैक मार्केट में बेट देता है।

दरअसल, अफ्रीका के जंगल से लाये गए उस बंदर में मोटाबा नाम का वायरस रहता है। अब जब इसकी कालाबाजारी होती है, तो वायरस सब जगह फैल जाता है। ऐसे में पूरे शहर को आइसोलेट कर दिया जाता है। कोई वायरस आउटब्रेक करने के लिए बम से पूरे शहर को उड़ाना चाहता है, तो कोई इस वायरस से जैविक हथियार बनाने की जुगाड़ में लग जाता है। 

अलग-अलग मानसिकता वालों के बीच इस वायरस से कैसे शहर को आर्मी ऑफिसर बचा पाते हैं या फिर मामला कहां तक पहुंचता है, जानने के लिए फिल्म देखिए। 

कंटेजियन

स्टीवन सोडरबर्ग के निर्देशन में बनी फिल्म 'कंटेजियन' साल 2011 में रिलीज़ हुई थी। चमगादड़ और सुअर के मेल से उत्पन्न वायरस दुनिया के अलग-अलग शहरों में कई लोगों की मौत का कारण बन जाता है। 'कंटेजियन' के बताये गए वायरस के लक्षण बिलकुल वैसे ही हैं, जैसे इन दिनों कोरोना वायरस के लक्षण बताये जा रहे हैं। 

फिल्म में एक महिला बिजनेस टूर से लौट कर अमेरिका आती है और फिर अचानक उसकी मृत्यु हो जाती है, जिसके बाद इसके वायरस के लक्षण दिखने तेज़ हो जाते हैं। इस वायरस के वैक्सीन की खोजबीन के लिए दुनिभर के वैज्ञानिक जुट जाते हैं। वैज्ञानिक कोशिश में कामयाब हो पाते हैं या कहानी क्या मोड़ लेती है, जानने के लिए देखिए फिल्म। 

ब्लाइंडनेस

'सिटी ऑफ गॉड्स' और 'टू पोप्स' सरीखी फिल्मों को बनाने वाले फर्नेंडो मारिल्स की फिल्म 'ब्लाइंडनेस' साल 2008 में सिनेमाघरों में उतरी थी। यह फिल्म नोबेल प्राइज़ विनर होस सैरामेगो की नॉवेल 'ब्लाइंडनेस' पर बेस्ड है। फिल्म में दिखाया जाता है कि जापान में एक लड़के को कार चलाते हुए अचानक दिखना बंद हो जाता है। वह लड़का जिस डॉक्टर के पास जाता है, कुछ दिनों बाद वह भी अंधा हो जाता बै। धीरे-धीरे यह महामारी की शक्ल एख्तियार कर लेता है। लोगों को क्वारंटाइन कर दिया जाता है, ताकि इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके। 

इस फिल्म में देखने को मिलता है कि कैसे बीमारी की विभीषिका में इंसानियत भी दम तोड़ने लगती है। सारे कथानक को जानने के लिए फिल्म देखना ही एकमात्र उपाय है, तो देख लीजिए। 


द क्रेजीज

जॉर्ज ऐ. रोमेरो के निर्देशन में बनी साल 1973 में रिलीज़ हुई फिल्म 'द क्रेजीज़' भी संक्रमण से होने वाली बीमारी पर बेस्ड है। कहानी में दिखाया जाता है कि मिलट्री का एक प्‍लेन, जो बिना टेस्‍ट किए हुए बायो-हथियारों को लेकर जा रहा है, अमेरिका के एक शहर के पास दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाता है, जिससे उस इलाके का पानी पॉल्युट हो जाता है। इस पॉल्युट पानी को पीने से लोग मरने लगते हैं। 

अब सरकार इस खतरे से बचने के लिए 'शूट एट साइट' का ऑर्डर दे देती है। क्या वह शहर पूरा खत्म हो जाता है या फिर इसकी रोकथाम हो जाती है, जानने के लिए फिल्म देख लीजिए। 

द हॉट ज़ोन

यह एत टीवी सीरीज़ है, जो छह एपिसोड की है। साल 2019 में आई इस सीरीज़ को माइकल उपेन्डाहल और निक मर्फी ने डायरेक्ट किया है। रिचर्ड प्रेस्टन की इसी नाम से लिखी किताब पर यह सीरीज़ बेस्ड है। कहानी में दिखाया गया है कि वॉशिंगटन की एक लैब में बंदरों में इबोला वायरस देखा जाता है। 

डॉक्टर को यह डर हो जाता है कि कहीं यह अमेरिका में फैल न जाए। डॉक्टर अपने रिसर्च पार्टनर के साथ इसके रोकथाम में लग गया। इस 6 एपिसोड की सीरीज में इबोला जैसे वायरस से लड़ने की कहानी है। इस सीरीज में बताया गया है कि कैसे कई एजेंसियां अपने-अपने काम के करने के तरीके के चलते झगड़ती हैं और उनका ये झगड़ा इस बीमारी को फैलाने में और भी कारगर साबित होता है।


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