पंकज त्रिपाठी आंदोलन में गए जेल और बन गए अभिनेता
पंकज त्रिपाठी ने हालिया इंटरव्यू में खुलासा किया कि वो साल 1993 में एक आंदोलन के चक्कर में सात दिन की जेल की हवा भी खा चुके हैं। हालांकि, जेल के अपने इस अनुभव को वो लाइफ चेंज़िंग बताते हैं।
लेखक और टीवी पत्रकार पीयूष पांडेय से बातचीत के दौरान पंकज ने बताया कि साल 1993 में वो सात दिन के लिए जेल जा चुके हैं। जेल जाने के बाद से उनकी ज़िंदगी में काफी बदलाव आए।
बकौल पंकज पूरा देश इन दिनों एक अदृश्य दुश्मन से लड़ रहा है। कभी-कभी सोचता हूं कि तुर्रम खां देशों ने एक से बढ़ कर एक हथियार, एटम बम, मिसाइल, टैंक आदि बना कर क्या हासिल कर लिया है। आज जब हम लोग एक वायरस को नहीं मार पा रहे हैं। इस वायरस से लड़ने का सिर्फ एक ही कारगर उपाय है और वो है क़ैद। घर के भीतर क़ैद। लेकिन, सच कहूं तो क़ैद की अपनी एक अहमियत है। एकांतवास में आप कुछ नए प्रयोग करते हैं, कुछ नए सवालों के उत्तर भी खोजते हैं।
पंकज आगे बताते हैं कि लॉकडाउन वाली क़ैद से अलग उन्होंने एक बार वास्तव में जेल में सात दिन गुजारे हैं।
वो सात दिन
पंकज कहते हैं कि साल 1993 में मधुबनी गोलीकांड में दो छात्र मारे गए थे, तब उसके विरोध में छात्रों ने एक आंदोलन किया। इसी आंदोलतन के चलते जेल में डाल दिया गया था। हालांकि, सज़ा की अवधि सात दिन की ही थी।
आगे बताया, 'उस वक्त मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का सदस्य था, लेकिन जेल में सिर्फ विद्यार्थी परिषद के ही नहीं बल्कि वामपंथी संगठनों के छात्रों को भी डाला गया था। ऐसे में अलग-अलग विचाराधारा वाले हम छात्रों में विभिन्न मुद्दों पर खूब चर्चाएं भी होती थीं। उन्हीं दिनों मैंने उनके साथ रहते हुए नागार्जुन की कविताओं को जाना। इसके अलावा कुछ दूसरे साहित्यकारों की बड़ी कहानियों की जानकारी मिली और उन पर भी चर्चा हुई।
पंकज का कहना है कि वो गांव के बाहर ज्यादा गए नहीं थे, तो ज्यादा एक्सपोजर भी नहीं मिला था। लेकिन, उन सात दिनों की जेल ने उनके भीतर साहित्य और रंगमंच को लेकर नई दिलचस्पी जगा दी थी।
पंकज ने बताया, 'जेल से बाहर निकलकर पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ। जेल में ही किसी साथी ने कहा कि जेल के बाद फलां नाटक देखने आना, तो मैं गया। हालांकि, मैंने गांव में एक दो नाटक किए थे, लेकिन वो बहुत बचकाने थे। उन नाटको में हम डायलॉग भी याद नहीं करते थे। फिर पटना में रंगमंच से जुड़ा, तो थिएटर की शुरुआती बातें समझ आने लगीं।
अपनी बातों को समेटते हुए कहते हैं कि मैं आज सोचता हूं कि यदि मुझे सात दिन की जेल नहीं हुई होती तो क्या मैं आज वैसा होता, जैसा हूं। पता नहीं .... इसलिए आज अगर आप घर में बंद हैं तो परेशान मत होइए। अच्छा पढ़िए, अच्छा देखिए। मुझे परिवार के साथ समय मिला है, तो बेटी खुश है।
इस बातचीत में पंकज त्रिपाठी ने खुलासा किया कि उन्होंने अब तक ‘मिर्जापुर’ वेब सीरीज नहीं देखी। जबकि पंकज की इस वेब सीरीज़ ने ओटीटी प्लेटफॉर्म धमाल मचाया था। इसमें पंकज 'कालीन भैया' की भूमिका में दिखे थे।
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