ज़ोहरा सहगल: हिन्दी सिनेमा से भी एक साल बड़ी थीं चुलबुली 'दादी'
नवाबों के घर में पैदा हुई ज़ोहरा सहगल ने पूरी दुनिया कदमों से नापी है। बुर्क़े में रहने की हिदायत पाने वाली ज़ोहरा ने पहली ही कोशिश में जर्मनी के बैले स्कूल में एडमिशन पा लिया। शायद पहली अदाकारा हैं, जो फिल्मों तक नहीं गईं, बल्कि फिल्में उन तक आईं। ज़ोहरा सहगल कई दिलचस्प क़िस्सों से होकर गुज़री हैं, तो फिर आइए कुछेक आप और हम भी पढ़ लें...
बीते जमाने की मशहूर अदाकारा, नृत्यांगना और कॉरियोग्राफर ज़ोहरा मुमताज़ सहगल का जन्म 27 अप्रैल 1912 को रामपुर रियासत के नवाबी खानदान में हुआ था। ज़ोहरा ने करीब आठ दशक के अपने करियर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और साल 2014 में 102 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
जोहरा सहगल ने 'चीनी कम', 'हम दिल दे चुके सनम', 'दिल से', 'वीर जारा' जैसी हिंदी फिल्मों में 'चुलबुली और ज़िंदादिल दादी' बनकर दर्शकों के दिलों में जगह बनाई थी। वहीं जोहरा की आखिरी हिंदी फिल्म 2007 में संजय लीला भंसाली की 'सांवरिया' रही।
सौ साल की बच्ची
ज़ोहरा सहगल ने फिल्म 'चीनी कम' में अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका निभायी थी। जब साल 2012 में ज़ोहरा सहगल ने 100 साल पूरे किए थे, तब अमिताभ बच्चन ने उन्हें '100 साल की बच्ची' कहा था। अमिताभ ने कहा था, 'एक प्यारी छोटी सी बच्ची की तरह हैं वो। इस उम्र में भी उनकी असीमित ऊर्जा देखते ही बनती है। मैंने उन्हें कभी भी निराश या किसी दुविधा में नहीं देखा वो हमेशा हंसती, खिलखिलाती रहती हैं।'
अमिताभ ने आगे बताया था कि फिल्म 'चीनी कम' के सेट पर ज़ोहरा हमेशा सबको बड़े प्यार से पुरानी कहानियां सुनाया करती थीं।
ज़ोहरा सहगल की पहली फिल्म 'नीचा नगर' थी। इस फिल्म ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा दी थी। वैसे, आपको बता दें कि ज़ोहरा फिल्मों में नहीं आईं, बल्कि फिल्में उन तक चल कर गईं। यह वाकई काफी दिलचस्प है, क्योंकि ज़ोहरा ने अपना एक मकाम बना लिया था।
ज़ोहरा का बचपन
रामपुर की रोहिल्ला पठान परिवार के दो बच्चों जकुल्लाह और हजराह की पैदाइश के बाद तीसरे नंबर मुमताजुल्लाह पैदा हुई। यही ज़ोहरा का नाम था। ज़ोहरा के बाद इकरामुल्लाह, उजरा, एना और साबिरा दुनिया में आए। अब इन सबके साथ ज़ोहरा का बचपन चकराता में गुजारा। पेड़ों पर चढ़ना, उछल-कूद करना अमूमन उस उम्र के बच्चे जो करते हैं, वो भी वही सब किया करती थीं। इसी दौरान उनको ग्लूकोमा हो गया। वैसे, तो डायबिटीज़ के मरीज़ों को होता है, लेकिन ज़ोहरा को बचपन में हो गया। अब ग्लूकोमा के कारण उनकी बाई आंख से दिखाई देना बंद हो गया। इसके इलाज़ के लिए वो लंदन भी गईं। साल भर वो काफी दर्द में रही। यदि आपने उनकी फिल्में अगर आपने देखी हैं, तो आपको समझ आएगा कि वह कैमरे की तरफ देखते समय थोड़ा असहज महसूस करती थीं।
जर्मनी के बैले स्कूल में एडमिशन लेने वाली पहली इंडियन
बचपन में अम्मी को खो दिया, लेकिन अम्मी की ख्वाहिश के चलते ज़ोहरा अपनी बहन के साथ लाहौर पढ़ने चली गईं। लाहौर के क्वीन मेरी कॉलेज में एडमिशन लिया। कॉलेज में काफी सख्त पर्दा होता था। ख़ैर, इसी दौरान बहन की शादी हुई, तो उसकी हालत देख ज़ोहरा ने तय कर लिया कि पहले ज़िंदगी बनायी जाएगी, फिर शादी देखा जाएगा।
ज़ोहरा के मन को भांप कर उनके एडिनबर्ग वाले मामू ने उनकी अप्रेंटिस का इंतजाम कर दिया एक ब्रिटिश एक्टर की शागिर्दी में। लाहौर से कार से ईरान, फिलिस्तीन, सीरिया और मिस्र पहुंचे और वहां से पानी के रास्ते यूरोप पहुंचे।
ज़ोहरा जर्मनी पहुंची और वहां के मैरी विगमैन बैले स्कूल में एडमिशन लिया। वैसे, वो इस स्कूल में दाखिला पाने वाली पहली भारतीय बनी। तीन साल तक यहां उन्होंने नये जमाने का डांस सीखा और इसी दौरान उन्होंने नृत्य नाटिका देखा, जो उनके लिए लाइफ चेंजिंग रहा। इस नृत्य नाटिका का नाम 'शिव पार्वती' था, जिसका मंचन भारत के मशहूर नर्तक उदय शंकर ने किया। इस नृत्य नाटिका को वो वर्ल्डटूर पर लेकर निकले ते। अब ज़ोहरा बैक स्टेज उदय शंकर से मिलने जा पहुंची। भारतीय नृत्य में इस तरह की दिलचस्पी देख उदय शंकर बहुत खुश हुए और बोले कि भारत पहुंच कर उनके लिए काम देखेंगे।
उदय शंकर का ज़ोहरा को बुलावा
ज़ोहरा से किया वादा उदय शंकर ने भारत वापसी के तुरंत बाद पूरा किया। ज़ोहरा तब यूरोप में ही थीं, तभी उन्हें एक दिन टेलीग्राम मिला। इसके बाद अगस्त 1935 को जोहरा सहगल ने उदय शंकर के ग्रुप को जॉइन कर लिया। इस डांस ट्रूप के साथ ज़ोहरा ने जापान, मिस्र, यूरोप और अमेरिका होते हुए दुनिया घूम ली। भारत वापसी के बाद ज़ोहरा ने उदय शंकर के स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया और इसी स्कूल में उनकी मुलाकात कमलेश्वर सहगल से हुई। इन्ही कमलेश्वर से बाद में ज़ोहरा ने शादी की।
कमलेश्वर, इंदौर के रहने वाले थे, वो वैज्ञानिक थे, पेंटिंग का शौक था और इंडियन डांसिंग के मुरीद थे। हालांकि, ज़ोहरा से कमलेश्वर आठ साल छोटे थे, लेकिन इश्क़ होना, तो और हो गया।
शादी में हुआ हंगामा
उम्र में फासला, मज़हब भी जुदा-जुदा, तो बवाल तो होना ही था। इस शादी का घर वालों ने काफी विरोध किया। यहां तक कि मामला दंगे तक पहुंच गया। हालांकि मामला फिर शांत हो गया। कमलेश्वर और ज़ोहरा की ज़िंदगी में फिर से भूचाल आया। अबकी बार हिंदुस्तान के बंटवारे की आग इनकी चौखट पर हिंदू-मुसलमान करते हुए पहुंच चुकी थी। दोनों लाहौर में डांस इंस्टीट्यूट खोल लिया था, लेकिन हालात इतने बिगड़ गये कि इंस्टीट्यूट चलाना तो दूर, लाहौर में जिंदा बचना मुश्किल हो जाएगा। साल भर की बच्ची किरण को लेकर दोनों बंबई भाग आए, जहां ज़ोहरा की बहन उजरा पृथ्वी थिएटर की नामी हीरोइन थी।
थिएटर की शुरुआत
ज़ोहरा ने साल 1945 में 400 रुपये के मासिक वेतन पर पृथ्वी थिएटर जॉइन किया। इस थिएटर के साथ पूरे देश के अगले 14 सालों तक घूमीं। पृथ्वी थिएटर के अलावा ज़ोहरा इप्टा की भी सक्रिय सदस्य रहीं। इप्टा की वजह से ही जोहरा को चेतन आनंद की 'नीचा नगर' में भी काम मिला। कान्स फिल्म फेस्टिवल का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार पाल्मे डी ओर जीतने वाली ये पहली भारतीय फिल्म है। पृथ्वीराज कपूर से साथ काम करने वाली ज़ोहरा ने कपूर खानदान की चौथी पीढ़ी रणबीर कपूर के साथ भी स्क्रीन शेयर किया।
चेतन आनंद ने दिया सहारा
लाहौर से आने के बाद ज़ोहरा सहगल को चेतन आनंद ने सहारा दिया। उनके पूरे परिवार को अपने घर में ठहराया। इसी दौरान ज़ोहरा की मुलाकात देव आनंद से हुई और फिर बाद में ज़ोहरा ने फिल्म 'बाजी' की कॉरियोग्राफी की। राज कपूर की फिल्म 'आवारा' का ड्रीम सीक्वेंस की कॉरियोग्राफी भी ज़ोहरा ने ही की थी।
साल 1959 में ज़ोहरा पर वज्रपात हुआ। उनके पति कमलेश्वर का अचानक निधन हो गया, जिसके बाद वो बंबई से दिल्ली चली गईं। यहां कुछ महीने नाट्य अकादमी में काम करने के बाद उन्हें स्कॉलरशिप मिली और फिर वो लंदन चली गईं। लंदन में मशहूर भरतनाट्यम नर्तक रामगोपाल के स्कूल में उन्होंने कुछ दिनों तक पढ़ाया भी। लंदन में ही बीबीसी की सीरीज में पहली बार उन्हें अभिनय का मौका मिला। एक सीरीज़ में एंकर भी बनी और साल 1982 में जेम्स आइवरी की फिल्म में उनको मौका मिला।
ज़ोहरा का शो 'एन इवनिंग विद जोहर'
साल 1983 में जोहरा वापस भारत लौटीं। वह भी उदय शंकर के छोटे भाई रवि शंकर के बुलावे पर। दरअसल, उदय शंकर की याद में हुए इस कार्यक्रम में जोहरा सहगल ने कुछ कविताएं पढ़ीं। इसके बाद तो ऐसे कविता पाठ का एक सिलसिला शुरू हो गया। पाकिस्तान में 'एन इवनिंग विद ज़ोहरा' शो सुपरहिट हो गया। लाहौर में हुए शो 'एक थी नानी ने' तो पॉपुलैरिटी के रिकॉर्ड ही तोड़ दिये। ऐसे स्टेज शोज़ में उनसे हफीज जालंधरी की नज्म, 'अभी तो मैं जवान हूं' को सुनाने की खूब फरमाइश होती थी। ज़ोहरा पूरे जोश से अपनी खास अदा के साथ इस कविता को सुनाया करती थीं।
संयुक्त राष्ट्र के आबादी फंड (यूएनपीएफ) के शुरू किये 'लाडली' अवार्ड्स में उन्हें सदी की 'लाडली' का अवार्ड मिला। वैसे यह उन पर फबता भी है। इनके अलावा उन्हें साल 1998 में पद्मश्री, साल 2001 में कालीदास सम्मान, साल 2004 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें लाइफ टाइव अचीवमेंट अवार्ड के तौर पर अपनी फेलोशिप भी दी। देश का सबसे बड़ा दूसरा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण जोहरा सहगल को साल 2010 में मिला।
साल 2014 की 10 जुलाई को ज़ोहरा का निधन 102 साल की उम्र में हो गया। ज़ोहरा क्रिकेट देखने की शौकीन थीं, तो उनको खाने में पकौड़े, कड़ी और मटन कोरमा आदि काफी पसंद थे। अपने दिलचस्प बयानों से भी खलबली मचाया करती थीं।
97 साल की उम्र में जब उनसे पूछा गया कि इस उम्र में भी उनकी जिंदादिली का राज क्या है? उन्होंने बिंदास अंदाज में जवाब दिया, 'ह्यूमर और सेक्स।' अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस उम्र में भी उनके लिए सेक्स बहुत जरूरी है।
वहीं उन्होंने कहा था कि मरने के बाद मुझे जला दिया जाये और मेरी राख को फ्लश कर दिया जाए।
ऐसी थीं ज़ोहरा...खुशमिज़ाज, बिंदास....लिखते वक्त भी उनके बारे में सोच कर चेहरे पर मुस्कान तैर जाए।संबंधित ख़बरें
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