'विक्रम और बेताल' का 'बेताल' था मधुबाला और नूतन का हीरो

सज्जन लाल पुरोहित ने अपने करियर में तकरीबन 150 फिल्मों में काम किया, जिनमें मधुबाला, नूतन, नलिनी जयवंत सरीखी अभिनेत्रियों के हीरो बनें, लेकिन उनको लोकप्रियता मिली छोटे पर्दे के धारावाहिक 'विक्रम और बेताल' के 'बेताल' के रूप में। इनके दो पुत्र हैं, दोनों ने अभिनय में हाथ आजमाया। एक बेटा सूरज, जो 'बावर्ची' में जया भादुड़ी के अपोजिट नज़र आ चुके हैं। सज्जन की आज पुण्यतिथि है, तो फिर चलिए करते हैं आज उनको याद। 

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साल 1985 में रामानंद सागर ने 'विक्रम और बेताल' नाम से एक धारावाहिक बनाया था, जिसमें 'विक्रम' बने थे अरुण गोविल और 'बेताल' की भूमिका निभाई थी अभिनेता सज्जन लाल पुरोहित ने। वैसे, फिल्म इंडस्ट्री में यह 'सज्जन' के नाम से ही मशहूर थे। राजस्थान के जयपुर में साल 1921 की 15 जनवरी को जन्में सज्जन का मुंबई में 17 मई 2000 को निधन हो गया।

छोटे पर्दे के धारावाहिक 'विक्रम और बेताल' को करने से पहले सज्जन कई फिल्मों में काम कर चुके थे। हालांकि, उम्मीद के मुताबिक सफलता हाथ न लगी। साल 1964 के दौरान दिए इंटरव्यू में उन्होंने खुद के बारे में कहा था, 'अपने पिछले प्रोजेक्ट्स को याद करूं, तो मुझे ऐसा रोल चुनने में मुश्किल होती है, जिसे मैं 'उत्कृष्ट' कहूं। ईमानदारी से कहूं, तो मैंने कभी भी ऐसा कलात्मक प्रदर्शन नहीं किया है, जिसे ‘सर्वोत्कृष्ट’ की श्रेणी में रखा जा सके।' 

वक्त के साथ कुछ कलाकारों को याद रखा जाता है और कुछ भूला दिए जाते हैं, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि वो कलाकार 'उम्दा' न रहे हों, या उन्होंने अच्छा काम न किया हो। अब आप बात सज्जन लाल पुरोहित की ही लें, तो वो नूतन, मधुबाला, श्यामा, नलिनी जयवंत सरीखी अभिनेत्रियों के लीडिंग मैन के रूप में स्क्रीन पर आ चुके हैं। 

यही नहीं उन्हें अलग-अलग समय में अलग-अलग प्रोजेक्ट्स से बहुत लोकप्रियता मिली। सिनेप्रेमी उनके उन किरदारों को आज भी याद करते हैं। अब साल 1958 में आई फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ उन्होंने प्रकाशचंद नाम का किरदार निभाया, जबकि साल 1962 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘बीस साल बाद’ में उनके द्वारा निभाए गए डिटेक्टिव मोहन त्रिपाठी के किरदार को आप कैसे भूल सकते हैं। वहीं साल 1964 में आई फिल्म ‘अप्रैल फूल’ में सज्जन ने मोंटो नाम का किरदार निभाया था। रामानंद सागर की फिल्म 'आंखें' का भी सज्जन हिस्सा रहे। 

'ईस्ट इंडिया कंपनी' की नौकरी 

राजस्थान के जयपुर में जन्में सज्जन को वकील बनना था। आज़ादी से पहले भारत में 'बैरिस्टर' बनने का एक अलग ही चार्म था। लिहाजा, सज्जन ने भी बैरिस्टर बनने की ठान ली। ग्रेजुशन कर पहुंच गए कलकत्ता। तब के दौर का कलकत्ता बड़ा शहर था। खै़र, यहां पहुंचे, तो 'ईस्ट इंडिय कंपनी' में नौकरी भी मिल गई। 

इधर नौकरी लगी, तो उधर उनको पहली बार कैमरा फेस करने का मौका मिल गया। हालांकि, फिल्म में वो बतौर एक्स्ट्रा ही जुड़े थे। यह फिल्म थी 'मासूम'। साल 1941 में आई यह एस एफ हसनैन की थी, जिन्हें हसनैन फाजिल भी कहते हैं। 

फिल्म 'मासूम' में सज्जन की उम्र 20 साल की थी। इसके तुरंत बाद 'चौरंगी' नाम की फिल्म में भी छोटी-मोटी भूमिका मिल गई। कैमरे का आकर्षण इनको अपनी तरफ खींचने लगा था। यह वो दौर था, जब विश्व युद्ध शुरू हो चुका था। 

कोलकाता से मुंबई 

सज्जन ने भी कोलकाता से मुंबई आने का फैसला कर लिया था। इनके फैसले को हसनैन फाजिल की फिल्म 'फैशन' ने सहारा दे दिया था। हालांकि, फिल्म में छोटी सी भूमिका थी, लेकिन शुरुआती खर्चे के लिए बहुत थे। 

सज्जन के करियर की वह फिल्म, जिसमें उनका रोल बड़ा था, वह थी 'गर्ल्स स्कूल'। अमिय चक्रवर्ती के निर्देशन में बनी इस फिल्म में सज्जन के अपोजिट शशिकला थीं। साल 1949 में रिलीज़ हुई इस फिल्म के गाने कवि प्रदीप ने लिखे थे। इस फिल्म के बारे में सज्जन ने कहा था, 'काश इस तरह के दमदार किरदार वाली फिल्में मुझे और मिली होतीं।'

हालांकि, मुंबई आने के बाद उनको मशहूर निर्देशक किदार शर्मा के सहायक का काम मिल गया था। तब राज कपूर भी किदार शर्मा के असिस्टेंट हुआ करते थे। गजानन जागीरदार और वकील साहिब के असिस्टेंट का काम भी सज्जन ने पकड़ लिया। इस तरह से वो महीने के 35 रूपये कमा लिया करते थे। पचास के दशक में 35 रुपये कम न थे। 

ज़िंदगी चली जा रही थी, तभी उनको मिली फिल्म 'धन्यवाद', जिसमें बतौर लीड वो नज़र आए। इस फिल्म में वो हंसा वाडकर के अपोजिट नज़र आए। 

एक्टिंग के अलावा सज्जन लिखते भी अच्छा थे। साल 1944 में आई फिल्म 'मीना' के डायलॉग्स लिखे, तो वहीं फिल्म 'धन्यवाद' और 'दूर चले' के लिए लिरिक्स लिखे। 

नलिनी जयवंत के 'पिता' और 'प्रेमी' सज्जन

एक बार सज्जन, नलिनी जयवंत के साथ दो फिल्में कर रहे थे। उनके नाम थे 'संग्राम' और 'मुकद्दर'। जहां फिल्म ‘संग्राम’ में वो नलिनी जयवंत के पिता की भूमिका में थे। वहीं ‘मुकद्दर’ उनके पति बने थे।

इसके बारे में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मुझे एक दिन नलिनी के पिता का किरदार निभाना होता था, दूसरे दिन नलिनी के पति का। कभी-कभी तो एक ही दिन दोनों रोल करने पड़ते थे।'

नूतन के साथ सज्जन की 'निर्मोही'

एक इंटरव्यू में सज्जन ने कहा था, 'नूतन के साथ पहली बार रंजीत की फिल्म 'हमलोग' में काम किया, जिसे ज़िया सरहदी ने लिखा और निर्देशित किया था। फिल्म काफी लोकप्रिय हुई और फिल्म की टीम लगातार कई दिनों तक सेलीब्रेशन भी चला।' 

साल 1952 में सज्जन और नूतन की जोड़ी वाली फिल्म 'निर्मोही' रिलीज़ हुई। मदन मोहन का संगीत और इंदीवर के लिखे बोल को लता मंगेशकर ने गाया। हालांकि, फिल्म ने कुछ खास कमाल नहीं किया, लेकिन इसके संगीत ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं।

मधुबाला के साथ सज्जन 

यूं तो मधुबाला के साथ दो-तीन फिल्मों में सज्जन रहे हैं, लेकिन एक फिल्म ऐसी भी है, जिसमें वो मधुबाला के प्रेमी बने हैं। दरअसल, साल 1951 में आई फिल्म 'सैंया' में मधुबाला के साथ सज्जन को कास्ट किया गया था। यह लव-ट्राएंगल मूवी थी, जिसमें मधुबाला एक अनाथ लड़की की भूमिका में हैं, जिनसे दो भाईयों को प्रेम हो जाता है। इनमें से एक भाई बने हैं सज्जन, तो दूसरे भाई की भूमिका अजीत ने निभाई है। 

दरअसल, फिल्म 'डुअल इन द सन' की हिन्दी रीमेक थी, जिसमें सज्जन नेगेटिव भूमिका में थे। फिल्म की शूटिंग महाबलेश्वर में हुई थी। इस फिल्म के बारे में उन्होंने कहा था, 'मुझे फिल्म में कास्ट करके निर्माता-निर्देशक सादिक बाबू ने बड़ा रिस्क लिया था, लेकिन फिल्म कामयाब हो गई। मुझे इस तरह के किरदार दोबारा नहीं मिले। मैं किसी खास किरदार को लेकर टाइपकास्ट नहीं हुआ। हालांकि, फिल्म की सफलता के बाद मैंने अपने घर का नाम बदल कर 'सैंया' ही रख लिया।'

नर्गिस की फिल्म में घायल हुए सज्जन

नर्गिस के साथ सज्जन ने फिल्म 'शीशा' की थी। इस फिल्म को यादगार फिल्म बताया था, लेकिन इसलिए नहीं क्योंकि फिल्म की लीडिंग लेडी नर्गिस थीं, बल्कि कारण कुछ और था। सज्जन ने कहा था, 'इस फिल्म की वजह से न मिटने वाले निशान मेरे हाथों पर पड़ गए थे। दरअसल, नर्गिस के साथ एक इमोशनल सीन को इनएक्ट करना था, जिसमें मुझे कांच का दरवाजा तोड़ना था। इस सीन को करने में दो रीटेक हुए और इस दौरान मेरे हाथों में कई कट्स आ गए थे। कांच से कटने की वजह से मेरे हाथों में न मिटने वाले निशान पड़ गए थे।'

'दो दूल्हे' ने लगाया करियर पर ग्रहण

सज्जन ने इस इंटरव्यू में खुलासा किया था कि आखिर क्यों उनको लीड रोल्स मिलना बंद हुए। उन्होंने कहा था, 'जेमिनी की फिल्म 'दो दूल्हा' के लिए मुंबई से मद्रास गया। यह फिल्म दो महीने में पूरी की गई और मैं दिन-दिन भर काम कर रहा था। फिल्म के कई सारे विभागों के काम की जिम्मेदारी भी मुझे मिली थी। मुझे लगा कि यह फिल्म सफल हो गई, तो मेरा करियर संवर जाएगा, लेकिन जैसा सोचा, वैसा बिलकुल नहीं हुआ। फिल्म टिकट खिड़की पर फेल हो गई। इसका असल मेरे करियर पर भी पड़ा।'

आगे बताया था, 'इसके बाद गजानन जागीरदार की फिल्म 'घर घर में दिवाली' में मुझे साइन किया गया। फिल्म में मेरे साथ श्यामा थीं और यह फिल्म भी असफल रही।' इसके बाद मेरे करियर पर ब्रेक लग गया। लीड रोल मिलने ही बंद हो गए। मैंने एक्टिंग को लेकर उम्मीद ही छोड़ दी थी और अब इस फिल्म लाइन को छोड़ने का मन बना लिया। मैंने फिर से लॉ कॉलेज जॉइन किया, जिससे फिल्म से जुड़े लोगों को भूल जाऊं।'

सज्जन ने अपने उस इंटरव्यू में कहा था, 'इसके बाद मैंने फिर से अपनी करियर एक्टिंग के फील्ड में स्टार्ट किया और इस बार फिल्म 'तलाक' में छोटी सी भूमिका निभाई और इस तरह कैरेक्टर एक्टर बन गए। मुझे इस बात का कोई पछतावा नहीं है।'

विमल रॉय की 'परिवार'

अपनी यादगार फिल्मों और किरदारों के बारे में बातें करते हुए सज्जन ने कहा था, 'असित सेन के निर्देशन में बनी फिल्म 'परिवार' की शूटिंग में काफी मज़ा आया था। फिल्म की पूरी कास्ट हॉलीडे मूड में रहती थी। दूर्गा कोटे, कुमुद, कमल, उषा किरण, जयराज, बिपिन गुप्ता, अनवर, आशिम और मैं। आगा, फिल्म में नौकर की भूमिका में थे। आगा हमेशा इस तरह से दिखाते थे, जैसे उनको हमारी कोई बात बुरी लग गई, इससे वो माहौल को और भी खुशनुमा कर देते थे।'

फिल्म 'मालकिन' की शूटिंग के बारे में कहा था, 'फिल्म 'मालकिन' के सेट का माहौल भी काफी हल्का-फुलका बना रहता था। याकूब और गोपी की कॉमेडी से सब हंसते खिलखिलाते रहते थे।'

'तलाक', 'काबुलीवाला' और 'बीस साल बाद' दैसी फिल्मों का हिस्सा होने पर खुशी भी जाहिर की थी। उनका कहना था कि इन फिल्मों में काम करने की वजह से मेरा नाम स्क्रीन पर हमेशा के लिए दर्ज हो गया, वरना मैं तो भूला दिया जाता और सिर्फ थिएटर के मंच तक ही सिमटा रह जाता। 

रामानंद सागर की 'आंखें'

साल 1968 में आई मल्टीस्टारर मूवी ‘आंखें’में सज्जन ने एक छोटा सा रोल किया था। वहीं से वो रामानंद सागर के करीब आ गए। बाद में रामानंद सागर ने ‘विक्रम और बेताल’ में उन्हें विलेन ‘बेताल’ की भूमिका में कास्ट किया। इलेक्ट्रॉनिक ऐरा में ‘विक्रम और बेताल’ पहला धारावाहिक था, जिसमें स्पेशल इफेक्ट्स देखने को मिले। 'बेताल' का डायलॉग तब बच्चे-बच्चे की ज़बान पर चढ़ गया था और वो था, 'तू बोला, तो ले मैं जा रहा हूं. मैं तो चला!'

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