Choked Movie Review: न्यूडिटी और गाली के बिना बनी है अनुराग कश्यप की 'चोक्ड'
अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी फिल्म 'चोक्ड: पैसा बोलता है' नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हो गई है। सोशल मीडिया पर अकसर अपने मुखर बयानों के लिए सुर्खियां बटोरने वाले अनुराग कश्यप ने नोटबंदी के मुद्दे पर फिल्म बना डाली है। भले ही फिल्म का बैकग्राउंड नोटबंदी हो, लेकिन फिल्म का फोकस रिश्तों के उतार-चढ़ाव पर है। यह फिल्म सैयामी खेर, रोशन मैथ्यू, अमृता सुभाष सरीखे कलकारों से सजी है।
निर्माता : नेटफ्लिक्स, अनुराग कश्यप, अक्षय ठक्कर, ध्रुव जगासिया
निर्देशक : अनुराग कश्यप
कलाकार : सैयामी खेर, रोशन मैथ्यू, अमृता सुभाष, राजश्री देशपांडे
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : 3/5
अनुराग कश्यप की नोटबंदी की मुद्दे पर बनी फिल्म 'चोक्ड: पैसा बोलता है' आज नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हो गई है। इन दिनों अनुराग को सेवेंटी एमएम के बजाय ओटीटी प्लेटफॉर्म पर काम करने में कुछ ज्यादा ही मज़ा आ रहा है। ख़ैर, एक घंटे 54 मिनट की फिल्म में बैकग्राउंड नोटबंदी का चुना है, लेकिन दिखाई रिश्तों के उतार-चढ़ाव की कहानी है। चलिए शुरू करते हुए रिव्यू।
कहानी
यह कहानी सरकारी बैंक में काम करने वाली सरिता सहस्त्रबुद्धे (सैयामी खेर) और हर छह महीने में नौकरी बदलने वाले या लगभग बेरोजगार सुशांत पिल्लई (रोशन मैथ्यू) की है। मराठी महिला है और पति है साउथ इंडियन। इस जोड़े का एक बेटा भी है, नाम है समीर। इस मध्यमवर्गीय परिवार की दिनचर्या कुछ इतनी बंधी हुई है कि रोज आलू की सब्जी बनना तय है। सरिता हर रोज़ घर का काम करके, टिफिन बनाकर, लोकल ट्रेन पकड़ कर बैंक जाती है। शाम को लौटते में भाजी तरकारी लेते हुए आती है। थकी-हारी सरिता फिर से घर के काम में जुट जाती है। ज़िंदगी इतनी नीरस है कि कोई कह नहीं सकता कि इस कपल ने लव-मैरिज की थी।
बोरियत से भरी नीरज ज़िंदगी एक समान चली जा रही थी कि अचानक एक रात इनकी ज़िंदकी में भूचाल आ जाता है। दरअसल, सरिता के किचन की नाली चोक्ड को जाती है। ठीक करने के लिए जब हाथ डालते हैं, तो उसमें से हज़ार-हज़ार के नोट निकलते हैं। इन नोटों को देखकर वो चौंक जाती है और काफी खुश हो जाती है, लेकिन तभी देश में नोटबंदी की घोषणा कर दी जाती है। हज़ार और पांच सौ के पुराने नोट बंद। उसे धक्का लगता है, लेकिन फिर रसोई के पाइप से 2000 के नए नोट निकलने लगते हैं। पूरा माजरा क्या है, ये जानने के लिए फिल्म देखना पड़ेगा।
समीक्षा
फिल्म की स्क्रिप्टिंग काफी अच्छी है। स्क्रिप्ट के साथ इसके डायलॉग भी कमाल के हैं। निहित भावे की लिखी इस फिल्म में बीजेपी सरकार की नीतियों की आलोचना भी की गई है, लेकिन वो इतनी बारीकी से की गई है कि लोगों का फिल्म देखते वक्त ध्यान भी नहीं जाता है। हालांकि, पकड़ने वाला पकड़ ही लेता है।
वहीं नोटबंदी के बाद के घटनाक्रम को काफी असरदार तरीके से दिखाया गया है। बहुत बारीक चीजों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे, नए नोट आने पर उसमें 'चिप' की अफवाह और ढूढने की कोशिश, या नए नोटों के साथ सेल्फी का चलन। इन चीजों को भी फिल्म में इस्तेमाल किया गया है। वहीं फिल्म का क्लाइमैक्स कुछ कमजोर है। वहीं फिल्म खत्म करने की जल्दबाजी भी दिखती है।
इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी की जिम्मा सिलवेस्टर फॉन्सेका का था, जो इससे पहले 'सेक्रेड गेम्स', 'लस्ट स्टोरीज़', 'घोस्ट स्टोरीज' जैसे प्रोजेक्ट से जुड़े थे। वहीं एडिटिंग कोणार्क सक्सेना की है, जिन्होंने 'राज़ी', 'सुपर 30', 'इत्तेफाक' सरीखी फिल्मों का एडिटिंग डिपार्टमेंट संभाला था।
इस फिल्म ने जिस बात पर सबसे ज्यादा चौंकाया वह यह कि फिल्म में अनुराग कश्यप का ट्रैड मार्क गायब रहा। इस फिल्म को अनुराग की सबसे साफ-सुधरी फिल्म कहा जा सकता है, क्योंकि न्यूडिटी और गालियां नहीं है। अनुराग की गैर-महत्वाकांक्षी फिल्म भी कह सकते हैं।
फिल्म में सरिता के किरदार को सैयामी खेर ने बखूबी निभाया है। रोश मैथ्यू ने भी बढ़िया काम किया है। उनके किरदार को देखकर कई बार गुस्सा आया, जो यह साबित करता है कि उन्होंने अपने किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। बाकी कलाकारों में अमृता सुभाष और राजश्री देशपांडे ने अच्छा काम किया है।
ख़ास बात
यदि फिल्म में नोटबंदी के मुद्दे को लेकर राजनीतिक कॉमेंट की इंतज़ार होगा, तो आप नाउम्मीद होंगे। अनुराग इस फिल्म में बिना पॉलिटिकल कॉमेंट किए एक साफ-सुधरी फिल्म बनाने में कामयाब रहे। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है। कुलमिलाकर यह एक एंगेजिंग फिल्म है।
वहीं एक ज़रूरी बात यह कि यदि आप सोच रहे हैं कि नोटबंदी पर ‘चोक्ड’ पहली फिल्म है, तो बता दें कि आप ग़लत हैं। साल 2017 में नोटबंदी पर तमिल फिल्म 'मर्सल' रिलीज़ हो चुकी है। इस फिल्म को लेकर काफी विवाद हुआ था। इस फिल्म में नोटबंदी और जीएसटी की आलोचना की गई थी। वहीं जूनियर एनटीआर की ‘जय लव कुश’ में भी नोटबंदी का एक फनी रेफरेंस था। हालांकि साल 2017 में ही आई बंगाली फिल्म ‘शून्यता’ इन विषय की संवेदना को कवर करने में ज्यादा सफल रही।
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