Chaman Bahar Review: सपाट कहानी में एक्टिंग का तड़का
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपनी धाक जमा चुके जितेंद्र कुमार उर्फ जीतू की फिल्म 'चमन बहार' रिलीज़ हुई है। इस फिल्म से अपूर्वधर बडगैयां बतौर लेखक और निर्देशक अपनी पारी की शुरुआत कर रहे हैं। अपूर्वधर फिल्ममेकर प्रकाश झा के असिस्टेंट रहे चुके हैं। आइए फिर जानते हैं कैसी बनी है 'चमन बहार'...
फिल्म :चमन बहार
प्रोडक्शन : यूडली, सारेगामा
डायरेक्टर : अपूर्वधर बडगैयां
कलाकार : जितेंद्र कुमार, भुवन अरोड़ा, रितिका बदियानी, आलम खान, धीरेंद्र तिवारी
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : 2/5
अमेज़न प्राइम पर आई वेब सीरीज़ 'पंचायत' और आयुष्मान खुराना के साथ वाली फिल्म 'शुभ मंगल ज़्यादा सावधान' के बाद जितेंद्र कुमार की चौतरफा तारीफ मिली। वैसे, तो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपना जलवा पहले ही जितेंद्र दिखा चुके हैं, लेकिन बड़े पर्दे पर अपनी धाक जमाने की कोशिश में है। हालांकि, कोरोना वायरस की महामारी के चलते एक ही फिल्म सेवेंटी एमएम पर रिलीज़ हो पाई, जो दूसरी फिल्म थी, उसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ करना पड़ा। वह फिल्म है 'चमन बहार'।
बिल्लू की दुकान ऐसी जगह है, जहां पर बड़ी मुश्किल से ग्राहक आते हैं। अब वीराने में खोली गई पान की गुमठी पर ग्राहक का इंतज़ार करता बिल्लू के जीवन में बहार तब आ जाती है, जब उसकी गुमठी के ठीक सामने इंजीनियर का परिवार रहने आ जाता है।
इस परिवार में रिंकू (रितिका बदियानी) भी हैं, जो स्कूल की छात्रा है। इंजीनियर की बेटी रिंकू को देखने के लिए फिल्मी 'रोमियो' की लाइन लग जाती है और इनमें बिल्लू भी शामिल हो जाते हैं। अब रिंकू के दीवाने उसकी एक झलक पाने के लिए 'चमन बहार' पर जमा होने लगते हैं। दुकान चलने लगती है और दूसरी तरफ बिल्लू के दिल में रिंकू के लिए सच्चा प्यार उमड़ने लगता है।
रिंकू से बिजनेसमैन से लेकर विधायक का बेटा और यहां तक कि पनवाड़ी भी प्यार करता है, लेकिन असल मुद्दा यह है कि क्या रिंकू भी किसी को प्यार करती है?...इसकी सच्चाई जानने के लिए फिल्म देखना होगा।
वहीं सबसे बड़ी शिकायत यह है कि क्या फिल्म 'स्टॉकिंग' को प्रमोट करने के लिए बनाया गया है। लड़की को घूरो, उसका पीछा करो और तुम हीरो बन जाते हो। छोटे कपड़े पहनी लड़की गलत होगी या उसके बारे में गलत सोचने का अधिकार मिल जाता है। लड़की को ऑब्जेक्ट की तरह ताड़ने वालों में कोई फर्क नहीं है, चाहें वो नज़रे बिजनेसमैन के बेटे की हों या विधायक का बेटा या फिर छोटी-मोटी पान की गुमठी लगाने वाला।
एक्टिंग की बात करें, तो जितेंद्र कुमार अपना अच्छी तरह से कर ले गए हैं। हालांकि, उनका किरदार कुछ अजीब है, लेकिन इस अजीब किरदार को भी अपनी तरह निभा ले गए हैं। वहीं फिल्म में नेता के रूप में आलम खान का काम ठीक-ठाक रहा है। अभिनेत्री रितिका के लिए फिल्म में कुछ करने को खास नहीं था। बाकी कलाकारों ने औसत काम किया है।
फिल्म का निर्देशन प्रकाश झा के असिस्टेंट रहे अपूर्वधर बडगैयां ने किया है। इस फिल्म से उन्होंने अपनी निर्देशकीय पारी की शुरुआत की है। डेब्यू फिल्म के रूप में बिना थीम, बिना लॉजिक वाली फिल्म का चुनाव, अखरता है।
फिल्म की ओपनिंग क्रेडिट्स में की गई कलाकारी सराहनीय है। दीवारों, संदूकों और टीन शेड्स पर लिखे कलाकारों और तकनीशियनों के नाम फिल्म के लिए उत्सुकता जगाते हैं। वहीं फिल्म में सोनू निगम की आवाज भी चलती रहती है, जो सुनने में बहुत अच्छी लगती है।
यूकेलिप्टस की पत्तियों के बीच से साइकिल बैठे हीरो-हीरोइन वाला सीन लुभावना है। सिनेमैटोग्राफी में अर्को देव मुखर्जी ने बढ़िया काम किया है।
प्रोडक्शन : यूडली, सारेगामा
डायरेक्टर : अपूर्वधर बडगैयां
कलाकार : जितेंद्र कुमार, भुवन अरोड़ा, रितिका बदियानी, आलम खान, धीरेंद्र तिवारी
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : 2/5
अमेज़न प्राइम पर आई वेब सीरीज़ 'पंचायत' और आयुष्मान खुराना के साथ वाली फिल्म 'शुभ मंगल ज़्यादा सावधान' के बाद जितेंद्र कुमार की चौतरफा तारीफ मिली। वैसे, तो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपना जलवा पहले ही जितेंद्र दिखा चुके हैं, लेकिन बड़े पर्दे पर अपनी धाक जमाने की कोशिश में है। हालांकि, कोरोना वायरस की महामारी के चलते एक ही फिल्म सेवेंटी एमएम पर रिलीज़ हो पाई, जो दूसरी फिल्म थी, उसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ करना पड़ा। वह फिल्म है 'चमन बहार'।
कहानी
फिल्म का बैकड्रॉप छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा कस्बा लोरमी है। यह कहानी है बिल्लू (जितेंद्र कुमार) की, जो अपने पिता की तरप वन विभाग में चौकीदारी नहीं करना चाहता, बल्कि उसे तो अपनी पहचान बनानी है। अपनी पहचान बनाने के लिए वो एक पान की दुकान खोल लेता है और उस दुकान का नाम रखता है 'चमन बहार'।बिल्लू की दुकान ऐसी जगह है, जहां पर बड़ी मुश्किल से ग्राहक आते हैं। अब वीराने में खोली गई पान की गुमठी पर ग्राहक का इंतज़ार करता बिल्लू के जीवन में बहार तब आ जाती है, जब उसकी गुमठी के ठीक सामने इंजीनियर का परिवार रहने आ जाता है।
इस परिवार में रिंकू (रितिका बदियानी) भी हैं, जो स्कूल की छात्रा है। इंजीनियर की बेटी रिंकू को देखने के लिए फिल्मी 'रोमियो' की लाइन लग जाती है और इनमें बिल्लू भी शामिल हो जाते हैं। अब रिंकू के दीवाने उसकी एक झलक पाने के लिए 'चमन बहार' पर जमा होने लगते हैं। दुकान चलने लगती है और दूसरी तरफ बिल्लू के दिल में रिंकू के लिए सच्चा प्यार उमड़ने लगता है।
रिंकू से बिजनेसमैन से लेकर विधायक का बेटा और यहां तक कि पनवाड़ी भी प्यार करता है, लेकिन असल मुद्दा यह है कि क्या रिंकू भी किसी को प्यार करती है?...इसकी सच्चाई जानने के लिए फिल्म देखना होगा।
समीक्षा
फिल्म में महिला पात्र को 'आय कैंडी' की तरह इस्तेमाल किया गया है। पूरी फिल्म में एक भी डायलॉग नहीं है। बिना क्लाइमैक्स की फिल्म है। एकदम सपाट। फिल्म शुरू होती है, चलती है और फिर खत्म हो जाती है। न कोई ट्विस्ट-टर्न्स, न ड्रामा, न मैसेज....। आखिर में आप सोचेंगे कि फिल्म क्यों बनाई गई थी।वहीं सबसे बड़ी शिकायत यह है कि क्या फिल्म 'स्टॉकिंग' को प्रमोट करने के लिए बनाया गया है। लड़की को घूरो, उसका पीछा करो और तुम हीरो बन जाते हो। छोटे कपड़े पहनी लड़की गलत होगी या उसके बारे में गलत सोचने का अधिकार मिल जाता है। लड़की को ऑब्जेक्ट की तरह ताड़ने वालों में कोई फर्क नहीं है, चाहें वो नज़रे बिजनेसमैन के बेटे की हों या विधायक का बेटा या फिर छोटी-मोटी पान की गुमठी लगाने वाला।
एक्टिंग की बात करें, तो जितेंद्र कुमार अपना अच्छी तरह से कर ले गए हैं। हालांकि, उनका किरदार कुछ अजीब है, लेकिन इस अजीब किरदार को भी अपनी तरह निभा ले गए हैं। वहीं फिल्म में नेता के रूप में आलम खान का काम ठीक-ठाक रहा है। अभिनेत्री रितिका के लिए फिल्म में कुछ करने को खास नहीं था। बाकी कलाकारों ने औसत काम किया है।
फिल्म का निर्देशन प्रकाश झा के असिस्टेंट रहे अपूर्वधर बडगैयां ने किया है। इस फिल्म से उन्होंने अपनी निर्देशकीय पारी की शुरुआत की है। डेब्यू फिल्म के रूप में बिना थीम, बिना लॉजिक वाली फिल्म का चुनाव, अखरता है।
फिल्म की ओपनिंग क्रेडिट्स में की गई कलाकारी सराहनीय है। दीवारों, संदूकों और टीन शेड्स पर लिखे कलाकारों और तकनीशियनों के नाम फिल्म के लिए उत्सुकता जगाते हैं। वहीं फिल्म में सोनू निगम की आवाज भी चलती रहती है, जो सुनने में बहुत अच्छी लगती है।
यूकेलिप्टस की पत्तियों के बीच से साइकिल बैठे हीरो-हीरोइन वाला सीन लुभावना है। सिनेमैटोग्राफी में अर्को देव मुखर्जी ने बढ़िया काम किया है।
ख़ास बात
यदि आपके पास नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन पहले से ही है, तो फिल्म देखी जा सकती है। बस इसमें 'पंचायत' जैसा मनोरंजन न तलाशें। फिल्म में छत्तीसगढ़ी संवाद रियलिस्टिक किरदारों को और रीयलिस्टिक बनाता है। कुलमिलाकर कलाकारों के अभिनय और फिल्म के रियलिस्टिक ट्रीटमेंट की वजह से यह वन टाइम वॉच बन जाती है।संबंधित ख़बरें
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