अभय देओल ने धर्मेंद्र के साथ तस्वीर शेयर करते हुए कहा, 'नेपोटिज्म हर जगह मैजूद है'
अभय देओल उन बेबाक अभिनेताओं में से हैं, जो खुलकर अपनी बात रखते हैं। हाल ही में अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने ताऊ (बड़े पापा) धर्मेंद्र की तस्वीर शेयर करते हुए 'नेपोटिज्म' के बारे में लिखा है। अपनी पोस्ट में अभय ने लिखा है कि नेपोटिज्म हमारी संस्कृति में हर जगह मौजदू है, चाहे वो राजनीति है या बिजनेस।
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फिल्म इंडस्ट्री में 'नेपोटिज्म' की बाते गाहे-बगाहे छिड़ ही जाती है। कभी कंगना रनौत ने इस मामले को गरमाया था, तो अब सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद यह मुद्दा एक बार फिर से हॉट टॉपिक बन गया है।
अब लोगों के निशाने पर वो डायरेक्टर्स और प्रोडक्शन हाउस हैं, जो नए टैलेंट को छोड़कर स्टार किड्स को फिल्मों में मौका देते हैं।
इस मुद्दे को लेकर अभय देओल ने इंस्टाग्राम पर एक लंबा पोस्ट लिखा है। अपनी पोस्ट में अपने ताऊ (बड़े पापा) की तस्वीर भी शेयर की है।
पोस्ट में अभय ने लिखा, 'मेरे बड़े पापा, जिन्हें मैं प्यार से पापा बुलाता हूं। एक बाहरी थे और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई। मुझे खुशी है कि पर्दे के पीछे के कारनामों पर अब खुलकर बहस हो रही है। नेपोटिज्म कोई छोटी चीज नहीं है। मैंने अपने परिवार के साथ अपनी केवल एक पहली फिल्म बनाई और मैं खुशनसीब हूं कि अपने बलबूते पर यहां तक पहुंच सका हूं और पापा ने हमेशा इसी को बढ़ावा दिया है। वह मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं।'
उन्होंने आगे लिखा, 'नेपोटिज्म हमारी संस्कृति में हर जगह मौजूद है चाहे वह पॉलिटिक्स हो या बिजनेस। मुझे इस बात की पूरी जानकारी थी और इसी के कारण मैंने अपने पूरे करियर में नए डायरेक्टर्स और प्रड्यूसर्स के साथ काम किया है। इसीलिए मैं ऐसी फिल्में बना सका, जो बिलकुल अलग किस्म की थीं। मुझे खुशी हैं कि ये फिल्में और इनके कलाकार काफी सफल भी हुए।'
अभय नेपोटिज्म को लेकर आगे लिखते हैं, 'यह हर देश में एक अहम भूमिका निभाता है, लेकिन यहां भारत में इसने एक नया आयाम पा लिया है। मुझे लगता है कि जातिवाद इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाता है, जो पूरी दुनिया के मुकाबले यहां ज्यादा है। जाति के कारण ही एक बेटा अपने पिता के प्रफेशन को अपनाता है, जबकि बेटी से उम्मीद की जाती है कि वह शादी करके हाउसवाइफ बन जाए। यदि हम बेहतर परिवर्तन के लिए गंभीर हैं, तो हमें केवल एक पहलू या एक इंडस्ट्री पर फोकस नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे यह कोशिश अधूरी रह जाएगी। हमें विकास की संस्कृति बनाने की जरूरत है। आखिर हमारे फिल्ममेकर्स, पॉलिटिशन और बिजनसमैन कहां से आते हैं? वे भी सभी के जैसे लोग हैं। वे इसी सिस्टम में पले-बढे़ है जैसे कि बाकी लोग। वह केवल अपनी संस्कृति की परछाई हैं। हर माध्यम में टैलेंट को आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए।'
वो आगे लिखते हैं, 'जैसे हमने पिछले कुछ हफ्तों में जाना है कि आर्टिस्ट को ऊपर उठाने या उसे असफल कराने के कई तरीके हो सकते हैं। मुझे खुशी है कि आज काफी एक्टर्स सामने आकर अपना एक्सपीरियंस बता रहे हैं। मैं भी खुद के बारे में काफी सालों तक बेबाक रहा हूं, लेकिन तब मेरी अवाज अकेली थी और अकेले स्तर में मैं केवल इतना ही कर सकता था। बोलने के लिए किसी कलाकार को बदनाम करना आसान होता है और मैंने कई बार यह सब झेला है, लेकिन एक ग्रुप के साथ ऐसा करना कठिन हो जाता है। शायद यही हमारे बचने का समय है।'
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