Shakuntala devi Review: विद्या बालन का 'शकुंतला' अवतार, देखने लायक
अनु मेनन के निर्देशन में बनी विद्या बालन, सान्या मल्होत्रा, अमित साथ और जीशू सेनगुप्ता स्टारर बायोग्राफिकल ड्रामा 'शकुंतला देवी' अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हो गई है। विद्या के करियर की यह दूसरी बायोपिक है। इससे पहले वो 'डर्टी पिक्चर' में सिल्क स्मिता बन कर पर्दे धूम मचा चुकी हैं। वहीं इस बार वो जीनियस मैथमेटिशियन शकुंतला देवी के अवतार में पर्दे पर उतरी। 'ह्यूमन कम्प्यूटर' कही जाने वाली शकुंतला देवी की कहानी के जरिये क्या कुछ कहती है फिल्म, चलिए करते हैं समीक्षा....
फिल्म : शकुंतला देवीनिर्माता : सोनी पिक्चर्स नेटवर्क इंडिया
निर्देशक : अनु मेनन
कलाकार : विद्या बालन, सान्या मल्होत्रा, अमित साध, जीशू सेनगुप्ता
संगीत : सचिन-जिगर
जॉनर : बायोग्राफिकल ड्रामा
रेटिंग : 4/5
विद्या बालन एक बार फिर से वुमन सेंट्रिक फिल्म के साथ हाज़िर हैं। इस बार वो जीनियस मैथमेटिशियन, एस्ट्रोलॉजर, राइटर शकुंतला देवी बन कर पर्दे पर उतरी हैं। स्वतंत्र महिला, जिसने ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जिया। ज़िंदगी और रिश्तों में भी उनका 'गणित' चलता रहा। गुणा, भाग, जोड़, घटा के जरिये जीवन के दिलचस्प फलसफे को कहते हुए एक औरत के मन को गहरे तक टटोल जाती है। चुपके से काफी कुछ कह जाती है। अनु मेनन के निर्देशन में बनी फिल्म की चलिए करते हैं समीक्षा।
कहानी
यह कहानी है 'ह्यूमन कम्प्यूटर' कही जाने वाली शकुंतला देवी की। शकुंतला देवी (विद्या बालन) का जन्म 4 नवंबर 1929 को बेंगलुरु में हुआ था। बिना किसी फॉर्मल एजूकेशन के शकुंतला देवी की कैलकुलेशन की क्षमता अद्भुत थी और उनके इस हुनर को उनके पिता विश्वामणि मित्रा (प्रकाश बेलावडी) ने पहचान लिया। मैथ जीनियस होने की वजह से बचपन से स्टेज शो करने लगती हैं। शकुंतला सुपरमैन नहीं, बल्कि सुपरवूमेन बनना चाहती हैं। समय धीरे-धीरे बीत रहा होता है, वो अपने परिवार को मैथ्स शो करके पाल रही होती हैं। तभी कुछ ऐसा होता है, जिसकी वजह से भारत छोड़ वो लदंन चली जाती हैं। लंदन में भी उनके मैथ्स शोज़ बदस्तूर जारी रहते हैं। इन्हीं शो के सिलसिले में वो दुनिया के कोने-कोने का सफर करती हैं और इसी तरह भारत आती हैं। यहां उन्हें पारितोष बनर्जी (जीशू सेनगुप्ता) मिलते हैं और दोनों शादी कर लेते हैं।कहानी में मोड़ तब आता है, जब शकुंतला खुद मां बनती हैं। इसके बाद शुरू होती शकुंतला की जिंदगी की दूसरी जंग। इंडीपेंडेट लाइफ और फैमिली के बीच शकुंतला पिसने लगती हैं। हालांकि, मैथमेटिशियन ने इस परेशानी का भी हल निकाल लिया। कई उतार-चढ़ाव से गुजरती हुई शकुंतला देवी के जीवन की गाड़ी अपने स्टॉप तक इत्मीनान और एंटरटेन करते हुई पहुंच ही जाती है।
इंटीपेंडेट वुमन बनने के लिए पति, बेटी, पिता, मां, दुनिया, समाज..सभी से समय-समय पर बगावत करती शकुंतला देवी को लेकर कई सारे सवाल हैं, जिनके जवाब फिल्म देखते वक्त आपको मिल जाएंगे।
समीक्षा
इस फिल्म को सिर्फ एक मैथ्स जीनियस की कहानी के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला की कहानी के रूप में देखना चाहिए। इस फिल्म में 'शकुंतला देवी' बनी विद्या बादलन कहती हैं, 'मैं कभी नहीं हारती Always remember that'...बस यही शकुंतला देवी का रियल कैरेक्टर है। मैथ्स को चुटकी में सॉल्व करने वाली शकुंतला देवी के सामने जिंदगी जब सवाल खड़ी करती है, तो वो हिचकिचा जाती है।अनु मेनन ने बेहद ईमानदार तरीके से शकुंतला देवी की जिंदगी को फिल्म में दर्शाया है। फिल्म में 1950 और 1960 के दशक को अच्छी तरह से फिल्माया गया है। फिल्म की कहानी लॉन लीनियर तरीके से पास्ट-प्रजेंट में आती-जाती रहती है। स्क्रीनप्ले सटीक तरीके से लिखा गया है। सारे घटनाक्रम एक-दूसरे से जुड़े नज़र आते हैं। सचिन-जिगर का म्यूज़िक अच्छा है।
सिनेमैटोग्राफी भी कमाल की है। अधिकतर सीन इनडोर के हैं, लेकिन लंदन, कोलकाता, बैंगलोर, मुंबई को भी बेहतर तरीके से दिखाया गया है। कुल-मिलाकर फिल्म विजुअली अच्छी बनी है।
आखिर में एक्टिंग की बात करें, तो विद्या बालन पूरी तरह अपने किरदार में रम गई हैं और उन्होंने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है। लंदन जाने के बाद विद्या बालन का मेकओवर जबर्दस्त तरीके से फिल्माया गया। बाकी कलाकारों में जीशू सेनगुप्ता, सान्या मल्होत्रा, अमित साध ने भी अपने-अपने किरदारों को बेहतरीन तरीके से निभाया है।
खास बात
यह एक लाइट हार्टेड फिल्म है, जिसे आप एंजॉय कर सकते हैं। बेहतरीन एक्टिंग के लिए भी इस फिल्म को देखा जा सकता है। विद्या बालन ने एक बार फिर से साबित किया कि उन्हें बेहतरीन अभिनेत्री यूं ही नहीं कहा जाता है।
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