जावेद जाफरी ने पिता जगदीप के लिए इमोशनल नोट लिखते हुए कहा, 'आपका नाम सूरमा भोपाली ऐसैई नईई था'
जावेद जाफरी ने अपने पिता दिग्गज अभिनेता जगदीप को याद करते हुए भावुक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने जगदीप के चाइल्ड आर्टिस्ट बनने से लेकर आइकॉन हो जाने तक के सफर को अपने शब्दों में बयां किया। साथ ही उन लोगों का शुक्रिया अदा किया, जो इस मुश्किल घड़ी में उनके और उनके परिवार के साथ खड़े रहे। जावेद ने शुक्रिया कहते हुए लिखा, 'इतना प्यार... इतनी इज्जत...इतनी दुआएं..यही तो है 70 सालों की असली कमाई।'
जावेद जाफरी ने अपने जगदीप को याद करते हुए एक लंबा पोस्ट लिखा है। जगदीप का 8 जुलाई को निधन हो गया था, जिसके बाद फिल्म इंडस्ट्री समेत पूरे देश ने लीजेंडरी एक्टर के जाने पर शोक जताया। 81 साल के जगदीप का निधन बढ़ती उम्र की दिक्कतों के चलते हुआ। मुंबई के अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली।
अब अपने दिवंगत पिता को याद करते हुए जावेद जाफरी ने एक भावुक कर देने वाला लेख सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने जगदीप के संघर्ष से कामयाबी तक की कहानी है। बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपने करियर को शुरू कर किस तरह जगदीप आइकॉन बन गए।
जावेद लिखते हैं, 'मेरे पिता के जाने पर हमारा दुख बांटने वालों को मेरा तह-ए-दिल से शुक्रिया। इतना प्यार... इतनी इज्जत...इतनी दुआएं..यही तो हैं 70 सालों की असली कमाई।'
जगदीप के सफर के बारे में जावेद लिखते हैं, '10 साल की उम्र से 81 तक, उन्होंने जो जिया और जिसके लिए सांस ली वो फिल्में थीं। 7 साल की उम्र में अपने पिता को खोने और बंटवारे के बाद, उनका सीधा मुकाबला गरीबी से हुआ था। उन्हें मुंबई के फुटपाथ पर अपनी जिंदगी को बिताया है। महज 8 साल की उम्र में उन्हें और उनकी मां को मुंबई नाम के एक निर्दयी समंदर में फेंक दिया गया था। उनके पास दो ही ऑप्शन थे, 'या तो तैरो या फिर डूब जाओ।' उन्होंने तैरने को चुना।'
जावेद आगे लिखते हैं, 'छोटी-छोटी फैक्ट्रियों से लेकर, पतंगें बनाने, साबुन बेचने, मालिशवालों के पीछे कनस्तर लेकर चलने और चिल्लाने 'मालिश, तेल मालिश' तक उन्होंने बहुत कुछ किया। 10 साल की उम्र में उनकी किस्मत ने उनके लिए जो चुना, वो था सिनेमा। उनके सफर की शुरुआत बी.आर चोपड़ा साहब की पहली फिल्म अफसाना से हुई थी। इसे साल 1949 में शूट किया गया और साल 1951 में रिलीज हुई और जैसा कि बोला जाता है 'हजारों किलोमीटर का सफर एक कदम से ही शुरू होता है', उसके बाद उन्होंने कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। उनके लिए बिमल रॉय, गुरु दत्त, के आसिफ, महबूब खान पिता समान थे और उनके वे उन्हें अपना गाइड मानते थे।'
जावेद ने लिखा, ' हिंदी सिनेमा के सबसे नैचुरल चाइल्ड एक्टर होने से लेकर मैंने देखा है एक सेंसिटिव लीडिंग मैन और एक बेहतरीन कॉमेडियन, जिसकी टाइमिंग का जवाब नहीं था, उन्होंने कभी भी लोगों का मनोरंजन करने और लोगों को चौंकाने में कभी भी कमी नहीं की।'
जावेद इस लेख में बताते हैं कि कैसे बॉलीवुड के कई फेमस लोग और सितारे जगदीप को सराहते हैं और उनसे प्यार करते हैं। उन्होंने लिखा, 'आज के समय में लीजेंड यूं ही किसी को भी बोल दिया जाता है, लेकिन उनके केस में ये शब्द बिल्कुल सही था।'
अपने पिता जगदीप से जावेद जाफरी ने काफी कुछ सीखा है और इस बारे में वो लिखते हैं, 'एक पिता जिसने मुझे जिंदगी की कीमत बताई, गरीबी के बारे में पाठ पढ़ाए, बताया कि निष्ठा कितनी अहम है और अपने क्राफ्ट को सिखाया। उन्होंने मुझे सकारात्मकता और प्रेरणा की अनगिनत कहानियां सुनाईं। वो हमेशा मुस्कुराते रहते थे। हमेशा प्रोत्साहित करने वाली बातें करते थे, और हमेशा मुझे याद दिलाते थे कि इंसान की सफलता इस बात से होती है कि वो क्या है, ना कि उसके पास क्या है और एक इंसान क्या जनता है ना कि वो किसको जनता है। क्या इंसान थे वो! क्या कमाल सफर था उनका!'
जावेद ने पिता जगदीप की मां की एक बात का जिक्र किया, जो अक्सर उनसे कहती थीं। जावेद लिखते हैं, 'वो मंजिल क्या, जो आसानी से तय हो, वो राही क्या, जो थक कर बैठ जाए।'
वो आगे लिखते हैं, 'मगर जिंदगी कभी-कभी थक कर बैठने पर मजबूर कर देती है। हौसला बुलंद होता है, पर जिस्म साथ नहीं देता।'
अंत में उन्होंने पिता को अलविदा कहते हुए लिखा, 'उस आदमी के नाम जिसे मैं पापा कहता था और जिसे दुनिया कई नामों से जानती है, सलाम!!! आपका नाम सूरमा भोपाली ऐसै नईई था!!'
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