Mughal-E-Azam: 'अनारकली' के लिए मधुबाला नहीं बल्कि यह एक्ट्रेस थी पहली पसंद
के आसिफ की 'मुग़ल-ए-आज़म' में 'अनारकली' की भूमिका मधुबाला से पहले नर्गिस निभाने वाली थीं। फिल्म की शूटिंग भी शुरू हो चुकी थी, लेकिन पार्टिशन के चलते फिल्म को कुछ वक्त के लिए बंद कर दिया गया और जब दोबारा फिल्म शुरू हुई, तो कास्ट के साथ प्रोडक्शन तक बदल चुका था। अब 'अनारकली' की कहानी तो जान गए, लेकिन फिल्म में पहले 'अकबर' और 'सलीम' का किरदार किन्हें मिला था, जानने के लिए पढ़िए रिपोर्ट।
के आसिफ ने अपनी फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' की शूटिंग साल 1945 में शुरू कर दी थी। तब फिल्म में वीना, नरगिस, डीके सप्रू और चंद्रमोहन मुख्य भूमिका में लिए गए थे, बाद मुंबई के बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में फिल्म की शूटिंग होनी थी।
सलीम का किरदार निभाने के लिए एक्टर सप्रू और दुर्गा खोटे को अकबर की राजपूत पत्नी और सलीम की मां जोधा के रूप में साइन किया गया। एक्टर हिमाल्यवाला, जिन्होंने महबूब की हुमायूं में एक अहम भूमिका निभाई थी, को सलीम के राजपूत दोस्त दुर्जन सिंह की भूमिका के लिए चुना गया।
इन सबके अलावा फिल्म में अनिल विश्वास को संगीत देना था, जबकि कमाल अमरोही, अमन, वजाहत मिर्ज़ा और अहसान रिज़वी को बतौर राइटर साइन किया गया था।
फिर पार्टीशन हुआ तो शिराज़ हकीम और एक्टर हिमाल्यवाला को पाकिस्तान जाना पड़ा। एक ही झटके में, आसिफ ने अपने फाइनेंसर और एक एक्टर को खो दिया। फिल्म के सेट के लिए मंगाया गया कच्चा माल भी बेकार हो गया।
बताया जाता है कि उस वक्त कच्चे स्टॉक के लगभग 10 ट्रक बेकार हो गए और उन्हें फेंक दिया गया था. इसके बाद के आसिफ ने फिल्म के प्रोड्क्शन की कमान खुद संभाली। मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुईं। फिर एक्टर चंद्रमोहन, जिन्हें अकबर की भूमिका निभानी थी, का निधन 2 अप्रैल, 1949 को हो गया। इस तरह से फिल्म जिन कलाकारों के साथ अनाउंस की गई, उनके साथ बन नहीं पाई।
इसके बाद साल 1950 में दिलीप कुमार और नरगिस ने फिल्म 'हलचल' में साथ काम किया था। ये फिल्म दर्शकों को खूब पसंद भी आई थी। ऐसा बताया जाता है कि इस फिल्म की शूटिंग के दौरान अक्सर दिलीप, नरगिस को सलाह देते थे कि अपने डायलॉग्स किस तरह बोलें, ये बात नरगिस को पसंद नहीं थी। उस फिल्म के बाद से ही नरगिस ने दिलीप के साथ काम नहीं करने की कसम खाई।
अब दिलीप कुमार को सलीम बनाना था, लेकिन अनारकली के रूप में नरगिस को नहीं लिया जा सकता था। ऐसे में मधुबाला विकल्प के रूप में उभरी और फिर बन गईं 'अनारकली'।
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