Mughal-E-Azam: नौशाद ने पैसों से भरा ब्रीफकेस खिड़की से बाहर फेंक दिया
फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' का जिक्र हो और संगीत की चर्चा न हो। ऐसा हो ही नहीं सकता। हालांकि, के आसिफ के लिए यह भी काफी मुश्किल काम रहा। दरअसल, हुआ ये कि के आसिफ नौशाद को अपना संगीतकार तय करने पहुंचे थे, लेकिन कुछ ऐसा कर बैठे कि नौशाद मारे गुस्से के तिलमिला गए और उनके साथ काम करने से मना कर दिया। बाद में नौशाद की पत्नी आईं और मामला सुलझाया। तब जाकर बिना फीस लिए इस फिल्म में संगीत देने को नौशाद तैयार हो गए।
फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' की योजना तो साल 1945 में ही बननी शुरू हो गई थी, लेकिन फिल्म पूरी साल 1959 में जाकर पूरी हुई। इतने सालों में फिल्म की कास्ट से लेकर म्यूजिक डायरेक्टर तक में बदलाव हुए।
बता दें कि के आसिफ पहले फिल्म के लिए गोविंदराम और फिर अनिल विश्वास को संगीतकार के रूप में चुना था, लेकिन बाद में नौशाद ने फिल्म को संगीत से सजाया। दरअसल, मुगलिया वैभव की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म के लिए भव्य संगीत की जरूरत थी।
हालांकि, नौशाद को इस फिल्म में संगीत देने के लिए तैयार करना के आसिफ के लिए टेड़ी खीर साबित हुई। मामला यह है कि के आसिफ रुपयों से भरा ब्रीफकेस लेकर नौशाद के घर पहुंच गए। हेकड़ी झाड़ने के अंदाज़ में नौशाद के सामने वो ब्रीफकेस रखते हुए कहा कि फिल्म के यादगार संगीत चाहिए।
के आसिफ के इस अंदाज़ से गुस्साए नौशाद ने रुपयों से भरे ब्रीफकेस को खिड़की से बाहर फेंक दिया और कहा कि चले जाओ यहां से मैं संगीत बेचता नहीं हूं। अपनी बचकानी हरकत पर के आसिफ पछतावा करने लगे, लेकिन नौशाद उन्हें माफ करने के पक्ष में नहीं थे। हालांकि, नौशाद की पत्नी आई और मध्यस्थता की और तब जाकर के आसिफ को नौशाद ने माफ किया। इसके बाद शुरू हुई यादगार संगीत का सफर।
फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' में दरबारों को प्रचलित शास्त्रीय गायन की शैली के अनुरूप 'प्रेम जोगन' के लिए नौशाद का विचार सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक बड़े गुलाम अली खां साहब को लेने का विचार किया गया, जो काफी मशक्कत के बाद राजी हुए।
बड़े गुलाम अली खान के लिए रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो को बैठक की शक्ल दी गई। खान साहब ने गमक के साथ गायन शुरू किया, लेकिन के आसिफ को थोड़ी कोमल सुर की तलाश थी। इसके लिए खान साहब ने फरमाइश की कि उन्हें फिल्म का सीन दिखाया जाए, तभी वो अनुकूल भाव ला पाएंगे।
बहरहाल, सीन दिखाया गया, तो बड़े गुलाम अली खान सीन देखकर मधुबाला के सौंदर्य पर भी मुग्ध हो गए और फिर राग सोहनी में 'प्रेम जोगन' को उन्होंने कुछ ऐसा गाया कि इस गीत को इतिहास की एक धरोहर के रूप में स्थापित कर दिया।
इससे उत्साहित होकर आसिफ और नौशान ने फिर से 25 हज़ार रुपए देकर उनसे शास्त्रीय शैली में राग रागेश्री आधारित बधाई गीत 'शुभ दिन आयो राजदुलारा' भी गवाया। हालांकि परिवेश मुगल काल का था, लेकिन नौशाद ने फिल्म में उन्नीसवीं सदी के लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के दरबारी नर्तक बिंदादीन महाराज की प्रसिद्ध रचना 'मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे' के ठुमरी अंग को भी बहुत सुंदर रूपांतर के साथ मधुबाला पर फिल्माया।
राग गरा पर आधारित ये रचना इतनी लाजवाब बनी थी कि ना केवल फिल्म के नृत्य निर्देशक लच्छू महाराज ही भाव-विभोर हो गए, बल्कि इस गीत के फिल्मांकन के समय उस समय मुंबई में रह रहे जुल्फिकार अली भुट्टो भी मधुबाला के सौंदर्य से खिंचे हुए हर रोज सेट पर मौजूद रहने लगे थे। लच्छू महाराज ने ही ये सलाह दी थी कि इस गीत में कोरस भी होना चाहिए और उनकी सलाह पर ही नौशाद ने इस गीत तो लता से फिर से रिकॉर्ड कराया था और कोरस के लिए अन्य मंगेशकर बहनों का स्वर भी लिया था।
'मुगल-ए-आज़म' का तो पूरा संगीत ही कभी ना भूलने वाला है, चाहे वो राग केदार पर आधारित 'बेकस पे करम कीजिए सरकारे मदीना' या राग जयजयवंती पर आधारित कव्वालीनुमा 'जब रात है ऐसी मतवाली' हो या फिर राग यमन आधारित दुआ के रूप में 'खुदा निगहवान हो तुम्हारा', राग दरबारी पर आधारित पीड़ा को सीधा बयान करते 'मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए' या 'हमें काश तुमसे मुहब्बत न होती' हों।
इस फिल्म का सबसे मशहूर गीत रहा 'प्यार किया तो डरना क्या' है। ऐसा बताया जाता है कि उत्तरप्रदेश की एक पुरानी लोक-कहावत 'प्रेम किया क्या चोरी करी' को ही शकील बदायूंनी ने अपने शब्दों में पिरोया। इस गाने में न सिर्फ शीशमहल के बीच मधुबाला के सैकड़ों छवियों को दिखाकर ये अमर बना बल्कि इको एफर्ट के साथ चारों तरफ आवाज़ टकराने का असर लाने के लिए नौशाद ने लता मंगेशकर की आवाज़ को अलग-अलग टेक में रिकॉर्ड कर एक साथ मिलाया था।
मोहम्मद रफ़ी की आवाज में 'ऐ मुहब्बत ज़िंदाबाद' को भी फिल्म में लोगों ने पसंद किया। 'मुगल-ए-आज़म' के लिए मुबारक बेगम की आवाज़ में 'हुस्न की बारात चली' और 'मुझ पर ही चले क्यों तीर नज़र' गाने भी रिकॉर्ड किए गए थे लेकिन उन्हें फिल्म में शामिल नहीं किया गया।
फिल्म में इतने गाने हैं, लेकिन दिलीप कुमार के लिए एक भी गाना नहीं है। मधुबाला पर कई गाने हैं। यक़ीन न हो, तो फिर से देखिएगा फिल्म।
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