Sadak 2 Review: उखड़ी 'सड़क', भटका रास्ता

साल 1999 में आई फिल्म 'कारतूस' के बाद महेश भट्ट ने तकरीबन 21 साल बाद एक बार फिर निर्देशन में हाथ आजमाया है। अपनी दोनों बेटियों पूजा और आलिया के साथ पसंदीदा अभिनेता संजय दत्त और भट्ट कैंप के चहेते आदित्य रॉय कपूर को लेकर 'सड़क 2' बना दी है। महेश भट्ट ने फेस वेल्यू को भुनाने के लिहाज से जो फिल्म बनाई है, चलिए करते हैं उसका रिव्यू।

Film 'Sadak 2'Review starrer by Sanjay Dutt, Aditya Roy Kapur, Aalia Bhatt

फिल्म : सड़क 2
निर्माता : मुकेश भट्ट
निर्देशक : महेश भट्ट
कलाकार : संजय दत्त, आलिया भट्ट, आदित्य रॉय कपूर, जीशू सेन गुप्ता, मकरंद देशपांडे, गुलशन ग्रोवर, अक्षय आनंद
ओटीटी : डिजनी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग: 1/5

'अर्थ', 'सारांश', 'नाम', 'डैडी', 'आशिकी' और 'जख्म' सरीखे फिल्मों का निर्देशन कर चुके महेश भट्ट ने इक्कीस साल बाद फिल्म 'सड़क 2' से वापसी की है, जिसमें आलिया भट्ट, संजय दत्त और आदित्य रॉय कपूर सरीखे सितारे हैं। इस फिल्म से लोगों को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन....ख़ैर...

कहानी

फिल्म की कहानी है आर्या देसाई (आलिया भट्ट) की। आर्या की मां का देहांत हो चुका है, लेकिन मरने से पहले उसकी मां ने अपनी सारी जायदाद का वारिस अपनी बेटी को बना दिया है। ऐसे में वह देसाई ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की इकलौती वारिस है। हालांकि, आर्या को यह दौलत 21 साल की होने के बाद ही मिलेगा। सात दिन बाद आर्या 21 की होने वाली है, लेकिन पिता और सौतेली मां बन चुकी मौसी उसे मानसिक रूप से बीमार बताने या फिर उसकी हत्या करने की चाल चल रहे हैं। इस योजना के पीछे एक बाबा (मकरंद देशपांडे) का दिमाग़ है। आर्या घर से भाग जाती है।

उधर, अपनी पत्नी की मौत के बाद आत्महत्या की कोशिश में नाकाम रवि किशन (संजय दत्त) अब आर्या का टैक्सी ड्राइवर है। आर्या को रानीखेत और वहां से कैलाश पर्वत जाना है, क्योंकि वह अपना 21वां जन्मदिन वहीं मनाना चाहती है। आर्या के इस सफर का हमसफर बॉयफ्रेंड विशाल ठाकुर (आदित्य रॉय कपूर) बन जाता है। अब आर्या के जान के दुश्मन उसके पीछे हैं, वहीं सारथी बना रवि किशन किस तरह की भूमिका निभाता है। इसके अलावा आर्या का बॉयफ्रेंड असल में 'हीरो' रहता है या फिर उसकी भूमिका कुछ और है....जानने के लिए झेल सकते हैं 'सड़क 2'।

समीक्षा

महेश भट ने राइटर सुहृता सेनगुप्ता के साथ एक ऐसी कहानी गढ़ी है, जो न तो फैंटेसी है और ना ही सच की ज़मीन पर खड़ी है। इसे आप मसाला मूवी की कैटेगरी में भी नहीं रख पाएंगे। रोमांस से लेकर एक्शन तक सब कुछ कमजोर है।

फिल्म का निर्देशन लगा मानो, महेश भट्ट नहीं बल्कि उनकी बेटी पूजा भट्ट कर रही हों। पूजा भट्ट के निर्देशन में बनी हिमेश रेशमिया और पाकिस्तानी एक्ट्रेस सारा लॉरेन अभिनीत साल 2010 में आई फिल्म 'कजरारे' की तरह ही अटपटी है। हर किरदार खुद को छोड़ देता है। समझ नहीं आता है कि कैमरे के पीछे बैठा शख्स के दिमाग़ में खलल है या फिर कहानी में ही कुछ गड़बड़ है या एक्टर्स परफॉर्म नहीं कर पा रहे हैं। कुल मिलाकर दर्शकों के 'दिमाग़ की दही' कर दिया गया है।

कुछ सीन इतने अजीब हैं कि कॉमेडी की जगह गुस्सा आने लगता है। ड्रग एडिक्ट मुन्ना चौधरी यानी विशाल जेल से पिंजरे में बंद उल्लू को लेकर निकलता है, जो बेहद हास्यास्पद है। इसके बाद यह उल्लू विशाल-आर्या के दुश्मनों से लड़ते दिखाई देता है।

2020 के दौर में 1980 के टाइप के किरदार इंट्रोड्यूज़ कर दिया गया है। गुलशन ग्रोवर जब गैंगस्टर दिलीप हथकटा बन कर सामने आते हैं, तो राइटर से लेकर निर्देशक तक की बुद्धि पर तरस आता है।

जे आई पटेल की सिनेमैटोग्राफी अच्‍छी है। हालांकि, पहाड़ों पर फिल्माई गई फिल्में यूं भी खूबसूरत होती हैं, क्योंकि कैमरा रख देने भर से भी अच्छे सीन कैप्चर हो जाते हैं।

एक्टिंग की बात करें, तो जीशू सेनगुप्ता के अलावा कोई भी कलाकार प्रभावित नहीं कर पाता है। वहीं आलिया भट्ट फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है।

कुल मिलाकर महेश भट्ट अपनी बेटियों पूजा और आलिया के साथ संजय दत्त और आदित्य रॉय कपूर के साथ जिस 'सड़क 2' पर चलने की गुज़ारिश दर्शकों से कर रहे हैं, वो उखड़ी हुई है और वो रास्ता भटका हुआ है।

ख़ास बात

कोई भी इतना खलिहर नहीं है, जो इस फिल्म को बैठकर देखना चाहे। फिर भी आपकी इच्छा, इंटरनेट डेटा और समय आपका।

संबंधित ख़बरें
Lootcase Review: कॉमेडी, क्राइम, ड्रामा से भरपूर , फुल एंटरटेनमेंट

टिप्पणियाँ