Yash Chopra: पढ़िए अनसुने और दिलचस्प क़िस्से

यश चोपड़ा के सभी भाई फिल्म लाइन से जुड़े हुए थे, तो पिता विलायती राज चोपड़ा चाहते थे कि यश चोपड़ा इंजीनियर बनें। इसलिए जालंधर से बॉम्बे (मुंबई) भेजा। इंजीनियर बनने के लिए मुंबई आए यश चोपड़ा आखिर कैसे फिल्ममेकर बनें और फिर किस तरह से उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्म्स की स्थापना की। सब कुछ यहां पढ़िए। यश चोपड़ा के जन्मदिन पर उनसे जुड़े अनसुने और दिलचस्प क़िस्से।

Yash Chopra Intresting Facts

आज यानी 27 सितंबर को यश चोपड़ा का जन्मदिन होता है। यश चोपड़ा, वो फिल्ममेकर जिसने पर्दे पर प्यार के रंग बिखेरे, तभी तो उन्हें किंग ऑफ रोमांस कहा जाता है। यश चोपड़ा का जादू कुछ ऐसा रहा है कि उनकी फिल्म में काम करने की ख्वाहिश हर एक्टर-एक्ट्रेस के मन के भीतर होता ही था। यश चोपड़ा द्वारा बनाई गई प्रोडक्शन कंपनी की भी वही साख है, जिसके बैनर तले कलाकार काम करने का सपना देखते हैं।

हालांकि, इस मुकाम को पाना यश चोपड़ा के लिए बहुत आसान नहीं रहा। एक लंबे संघर्ष, कई तरह के रिस्क और उतने ही एक्सपेरिमेंट्स की बदौलत आज वो नाम वो प्रतिष्ठा उन्होंने हासिल की है। फिर आइए, उनके बर्थडे पर जानते हैं, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्से...

इंजीनियर बनते-बनते बनें फिल्ममेकर

19 साल के यश चोपड़ा के बड़े भाई बीआर चोपड़ा डायरेक्टर थे, एक भाई कैमरामैन और एक भाई डिस्ट्रीब्यूटर था। यह देखते हुए उनके पिता विलायती राज चोपड़ा चाहते थे कि उनके घर में कोई तो ऐसा हो, जो फिल्म लाइन से अलग कुछ करें। यह सोचने के बाद बेटे यश चोपड़ा को अपने पास बुलाया और कहा कि तुम यहां यानी जालंधर से बॉम्बे (मुंबई) जाओ और वहां से अपना पासपोर्ट बनवा लो। इसके बाद इंग्लैंड जाओ और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करो। साल 1951 का वो साल था, पिता की बात सुनकर यश बॉम्बे आ गए। पासपोर्ट बनाने की सारी कवायद शुरू हुई। पिता चाहते थे बेटा इंजीनियर बने, लेकिन बेटे को इंजीनियरिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं, दिलचस्पी तो दूर की बात।

इस बारे में एक इंटरव्यू में यश चोपड़ा ने कहा, 'मैं तो एक खीला (कील) भी दीवार में नहीं लगा सकता था। आज भी नहीं लगा सकता हूं।'

फिर भी पिता की इच्छा को बेदिली से करने का मन बना लिया, लेकिन लाख समझाने पर भी उनका दिल साथ नहीं दे रहा था और फिर एक दिन तय किया कि इंजीनियर नहीं बल्कि फिल्ममेकर ही बनेंगे। उनके इस फैसले के पीछे दो कारण थे। पहला कारण फिल्में देखना और उस कल्पनालोक में रहना पसंद था और दूसरा बड़े भाई बीआर चोपड़ा का उन पर जबरदस्त असर था। बीआर चोपड़ा अंग्रेज़ी में एम थे। अनुशासित व्यक्ति थे और लाहौर की फिल्म मैगज़ीन के एडिटर। फिल्म लाइन में आए, तो भी उनका व्यक्तित्व वैसा ही रहा। बस फिर क्या, 'बड़े भैया' की तरह बनना था।

बीआर चोपड़ा को यूं किया राज़ी

फैसला तो कर लिया, लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि अपने बड़े भाई को पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर कैसे मनाया जाए। फिर भी अपने मन को मजबूत और इरादों को पक्का कर भाई के पास पहुंच और कहा, 'भाईसाब, मैं इंजीनियर तो नहीं बनूंगा। मैं डायरेक्टर बनना चाहता हूं आपकी तरह।' बीआर चोपड़ा ने कहा, 'तुम्हे इसका इल्म क्या है, कैसे बनोगे?' यश चोपड़ा ने जवाब देते हुए कहा, 'इसके लिए कोई सबजेक्ट नहीं पढ़ना पड़ता, लाइफ पढ़नी पड़ती है। मैं आपको असिस्ट कर लूंगा।' बीआर चोपड़ा ने कहा, 'तुम मेरे असिस्टेंट मत बनो। मैं राजकपूर या अन्य दोस्तों से बात कर लेता हूं। तुम मेरे भाई हो, मुझसे नहीं सीख पाओगे।' यश चोपड़ा ने कहा, 'मुझे आपका स्टाइल सीखना है।'

कई बार कहने के बाद बीआर चोपड़ा ने यश चोपड़ा से कहा कि आईएस जौहर एक फिल्म बना रहे हैं। पहले उन्हें असिस्ट कर लो। तब आईएस जौहर ‘नास्तिक’ निर्देशित कर रहे थे। फिल्मिस्तान में शूटिंग चल रही थी। यश चोपड़ा अगले दिन चले गए, क्योंकि वे दोस्त के भाई थे, तो आईएस जौहर ने अच्छे से रखा, खाना-वाना खिलाया। यश चोपड़ा पूरे दिन शूटिंग देखते रहे।

उसी दिन शाम को फिल्म के निर्माता शशधर मुखर्जी आए और आईएस जौहर से पूछा शूट कब खत्म हो रहा है? उन्होंने कहा, 'कल तक', तब शशधर मुखर्जी ने कहा, 'कल नहीं आज ही।' फिर आई जौहर ने कहा, 'ओके जी कर दूंगा।' शाम को निर्माता के कहे अनुसार पैकअप हो गया। यश चोपड़ा को अजीब लगा।
अब यश चोपड़ा अपने भाई के दो करीबी दोस्त मनमोहन कृष्ण और जीवन के घर गए और कहा, 'यह काफी मुश्किल है, जो डायरेक्टर कल पूरी होने वाली फिल्म आज खत्म कर देगा, तो उससे मैं क्या सीखूंगा। आप लोग भाईसाहब से सिफारिश करो कि मुझे अपने साथ अपरेंटिस बना लें, असिस्टेंट भी ना बनाएं।' दोनों दोस्तों ने बीआर चोपड़ा से बात की और फिर बीआर चोपड़ा ने यश चोपड़ा को अपना असिस्टेंट रख लिया।

यश चोपड़ा को 2 रुपये के नोट में मिला 'मां' का आशीर्वाद

पिता के कहे अनुसार जब यश चोपड़ा जालंधर से बॉम्बे के लिए चले थे, तो मां ने 200 रुपये दिए और सभी 2-2 रुपये के नए नोट थे। इन पैसों को देते हुए बोलीं, 'तुम भाई के साथ तो रहोगे, लेकिन जरूरत पड़ेगी। ये रुपये हैं और मेरा आशीर्वाद है। मेरा दिल कहता है, जो भी तुम करोगे ठीक ही करोगे। मेरा भी है और तुम्हारे पिता का भी आशीर्वाद है।'

हीरो बनते-बने रह गए थे यश चोपड़ा

बात साल 1954 की बात है, तब फिल्म 'चांदनी चौक' बन रही थी, जिसमें मीना कुमारी हीरोइन थीं। इस फिल्म में यश चोपड़ा असिस्टेंट थे। दोनों को कविता का बड़ा शौक था। दोनों बहुत करीबी दोस्त बन गए। मीना कुमारी ने बीआर से कहा कि वो यश को हीरो क्यों नहीं बना देते? इसी तरह बीआर एक और फिल्म बना रहे थे, जिसमें नरगिस मुख्य भूमिका थीं और उनके पति की भूमिका में मोतीलाल थे। एक बार गाड़ी में जाते हुए मोतीलाल ने बीआर से कहा कि इसे (यश) हीरो क्यों नहीं ले लेते? बाद में बीआर ने छोटे भाई से कहा, 'तुम सबसे जाकर बोलते हो कि तुम्हें हीरो बनना है? तुम हीरो का काम करने आए हो?' तब यश चोपड़ा ने कहा कि नहीं उन्हें सिर्फ डायरेक्टर ही बनना है।

'वक्त' में इसलिए नहीं लिया था 'कपूर' भाइयों को

साल 1965 में रिलीज़ हुई फिल्म‘वक्त’ में पहले बीआर चोपड़ा और यश चोपड़ा शशि कपूर, राज कपूर और शम्मी कपूर को लेना चाहते थे। दरअसल, दोनों का मानना था कि दर्शकों पर इसका काफी असर होगा। अपने इस खयाल के बारे में जब निर्देशक बिमल रॉय को बताया, तो उन्होंने कहा, 'बाकी कुछ भी करो, ये कास्टिंग मत करना। ये फिल्म नहीं चलेगी। तीन सगे भाइयों को मत लो और चाहे किसी को भी ले लो। तुम्हारी कहानी में ये तीन बिछड़ गए, फिर अलग-अलग घूम रहे हैं। एक-दूसरे को पहचान नहीं रहे हैं, लेकिन कपूर भाई, तो अंधेरे में खड़े एक-दूसरे को पहचान लें।' बीआर चोपड़ा ने भी मान लिया। यश चोपड़ा ने अपने दोस्त शशि को इसमें रखा, जिनके साथ उन्होंने ‘धर्मपुत्र’ बनाई थी। बाकी दो भाइयों के रोल में सुनील दत्त और राज कुमार को लिया गया।

इस तरह बनी स्टार्ट-टू-फिनिश फिल्म‘इत्तेफाक’

साल 1969 में यश चोपड़ा ने ‘इत्तेफाक’ नाम की फिल्म बनाई, जो किसी संयोग से कम नहीं थी। अब हुआ यह था कि तब वो ‘आदमी और इंसान’फिल्म की शूटिंग लगभग पूरी कर चुके थे, जिसमें धर्मेंद्र, सायरा बानो मुख्य भूमिका में थे। जब यश चोपड़ा ने फिल्म का करीब फाइनल प्रिंट देखा, तो उन्हें लगा फिल्म में कुछ गड़बड़ी है। उन्हें लगा कि इसकी कुछ शूटिंग और करनी चाहिए। ऐसे तो रिलीज नहीं कर करते, लेकिन तब हीरोइन सायरा बानो की तबीयत ख़राब थी और वे इलाज के लिए लंदन गई हुई थीं। इलाज के बाद तीन-चार महीनों बाद वापस लौटना था।

अब जब तक सायरा लौंटती और फिल्म का पूरा काम न होता, तब तक फिल्म रिलीज़ नहीं हो सकती थी। ऐसे में चोपड़ा बंधू परेशान बैठे थे, तभी एक दिन दोनों ने एक गुजराती प्ले ‘धूमस’ देखने गए जो एक इंग्लिश प्ले ‘साइनपोस्ट टु मर्डर’ से प्रेरित था और वो प्ले एक फ्रेंच प्ले का रूपांतरण था। उन्हें प्ले बहुत अच्छा लगा. अगले दिन वे राइटर्स को साथ ले गए और प्ले दिखाया। उन्होंने कहा कि इसी पर फिल्म बनाते हैं। उन्होंने प्ले के मेकर्स से भी बात की। उसी दौरान फिल्मफेयर का कॉन्टेस्ट जीते थे, राजेश खन्ना और उन्हें एक फिल्म दी जानी थी, तो उन्हें ले लिया गया।

अब हीरोइन ऐसी चाहिए थी, जो कहानी में मर्डरर होती है, लेकिन दर्शकों को किसी भी रूप से नहीं लग पाए कि वो खून भी कर सकती है, तो नंदा को लिया गया, क्योंकि उनका मासूम चेहरा ऐसा है कि किसी को संदेह नहीं हो सकता। इसके बाद ‘इत्तेफाक’ की शूटिंग शुरू की गई और सिर्फ 20 दिन में पूरी फिल्म खत्म कर ली गई। इतने कम समय में बनी फिल्म का रिस्पॉन्स बहुत अच्छा रहा।

फिल्म ‘इत्तेफाक’ इंडिया की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे उन्होंने बिना इंटरवल के रिलीज किया। इंटरवल से पहले क्या किया जाए इसे सोचते हुए उन्होंने एक 20 मिनट की डॉक्यूमेंट्री ख़रीदी जो एक डॉक्टर की कहानी थी। पहले वो डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई और उसके बाद स्टार्ट-टू-फिनिश के अंदाज में ये फिल्म दिखाई गई। बिना इंटरवल की, 20 दिनों में बनाई ये फिल्म हिट साबित हुई। वहीं रीशूट के बाद भी ‘आदमी और इंसान’ ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।

बीआर फिल्म्स छोड़ बनाई यशराज फिल्म्स

यश चोपड़ा ने बीआर चोपड़ा से शादी कर ली थी और धीरे-धीरे परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने लगी। उनके पास न तो कोई बैंक बैलेंस था और ना ही उतनी आमदनी। क्रिएटिव तौर पर भी वे फिल्मों के मालिक नहीं हैं। तब उन्होंने अपनी कंपनी यशराज फिल्म्स बनाने का सोचा. उनकी पत्नी प्रेग्नेंट हो गई थीं। चोपड़ा ने उन्हें दिल्ली की फ्लाइट में बैठाया और कहा कि वे वहीं डिलीवरी की व्यवस्था करें।

उसके बाद दो दिन वे सोचते रहे। अभी वे बीआर फिल्म्स जैसे बड़े बरगद की छाया में बैठे थे। अब वे अलग होना चाहते थे, लेकिन उनके पास कोई संसाधन न थे। कार, फ्लैट, पैसा कुछ भी नहीं। ये भी डर था कि अगर उनका अपना वेंचर असफल रहा तो वे क्या कर पाएंगे? लेकिन उन्हें भीतर से लग रहा था कि या तो अभी ही कुछ नया करना होगा या फिर कभी नहीं किया जा सकेगा, उनके पास गुलशन नंदा की लिखी एक कहानी थी, ‘दाग़। इस कहानी पर बहुत रोमांटिक और बोल्ड फिल्म बनाने का फैसला लिया।

अब अपने इस फैसले को लेकर भाई बीआर चोपड़ा से मिले। मुलाकात में यश चोपड़ा ने बीआर चोपड़ा से कहा, 'भाईसाब मुझे लगता है कि मुझे यशराज फिल्म्स नाम से अपनी खुद की फिल्में बनानी चाहिए। हम एक रहें ऐसा बनाए रखना है, तो ये कर सकते हैं कि आप मेरी कंपनी की एक फिल्म डायरेक्ट करें और मैं आपकी कंपनी की एक फिल्म डायरेक्ट करूंगा, लेकिन मैं यशराज फिल्म्स स्थापित करना चाहता हूं।' बीआर चोपड़ा ने कहा, 'ऐसा करने से क्या होगा? तुम फोकस एक ही चीज पर रखो। तुम अपनी फिल्में बनाओ, लेकिन एक बात ध्यान में रखो कि अब तुम अपने भरोसे ही हो।'

बीआर चोपड़ा ने कहा, 'अब तुम्हे एक्टर्स से ख़ुद बात करनी होगी। तुम निर्माता रहोगे। तुम उन्हें क्या फीस दोगे ये तुम्हे ही देखना होगा। तुम्हे ही तमाम टेक्नीशियंस से बात करनी होगी। पैसा भी तुम्हे खुद जुटाना होगा।' यश चोपड़ा समझ गए। फिर भाई ने उन्हें अपनी कार से जाते हुए ड्रॉप किया और यहां से दोनों के रास्ते अलग हो गए। इसके बाद वी शांताराम ने अपने ऑफिस का एक कमरा दिया, जहां पर यशराज फिल्म्स का ऑफिस यश चोपड़ा ने खोल लिया।

यशराज फिल्म्स की पहली फिल्म 'दाग़' के बनने की कहानी

साल 1971 में यश चोपड़ा ने भाई से अलग होकर अपनी प्रोडक्शन कंपनी खोलने का मन बनाया। इसके लिए वो अपनी जिस पहली ही फिल्म के प्रोडयूसर बने। उसका नाम था 'दाग'। इस फिल्म के लिए उन्होंने राखी, शर्मिला टैगोर और राजेश खन्ना को साइन किया। राजेश खन्ना इससे पहले उनके साथ 'इत्तेफाक' में काम कर चुके थे। इस मूवी की कहानी काफी दिलचस्प थी। इस फिल्म में राजेश खन्ना अपनी बीवी शर्मिला टैगोर का रेप करने की कोशिश कर रहे अपनी कंपनी के मालिक के बेटे को मार देते हैं। बाद में जेल की वैन का एक्सीडेंट होने पर उसमें बैठे सारे लोग मर जाते हैं। उसी में राजेश खन्ना भी थे। राजेश खन्ना का बेटा पाल रहीं शर्मिला टैगोर को जब एक रोज पता चलता है कि उसका पति ना सिर्फ जिंदा है बल्कि एक अमीर औरत से दूसरी शादी कर चुका है, तो हैरान रह जाती है। दरअसल एक्सीडेंट से बचने के बाद राजेश खन्ना, राखी से मिलते हैं, जिसको उसके बॉयफ्रेंड ने प्रेग्नेंट करने के बाद अपनाने से इनकार कर दिया था। राजेश खन्ना उसको अपना नाम देकर शादी कर लेते हैं। क्लाइमेक्स में पता चलता है कि राजेश खन्ना कत्ल और दो बीवियों के इलजाम से कैसे निपटते हैं। इसके लिए फिल्म देखनी होगी।

इस फिल्म को बनाने और बीआर चोपड़ा से अलग होने की बात, जब यश चोपड़ा अपनी मां को बताने गए, तो वो बोलीं, 'बेटे, जो तेरा दिल करे वो करो, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। मैं तुम्हारी आंखों में देख रही हूं। तुम कर लोगे।'

दिलचस्प बात, तो यह है कि जब वो शर्मिला टैगोर, राखी, राजेश खन्ना के पास गए। उन्होंने कहा, 'मैं अपने बूते फिल्म बना रहा हूं क्या आप मेरा साथ देंगे?' तीनों ने कहा कि वे उनके साथ हैं, उनकी कंपनी का जो भी बजट होगा वे उतनी फीस में संतोष कर लेंगे। राखी तो उन्हें देने के लिए रुपये ले आईं। बोलीं,'तुम फिल्म बनाने जा रहे हो, जरूरत पड़ेगी। ये बिजनेस की बात नहीं है। तुम्हारे पास जब हों दे देना।'

यशराज फिल्म्स में 'राज' कौन है?

यश चोपड़ा के प्रोडक्शन हाउस का नाम यशराज फिल्म्स है। वहीं सभी ने कभी न कभी यह जरूर सोचते हैं कि आखिर यशराज फिल्म्स के 'राज' कौन हैं। बताया जाता है कि इसका क्रेडिट राजेश खन्ना को दिया जाता है कि 'राज' उनके नाम में से लिया गया था। इसके पीछे लोग उस वक्त राजेश खन्ना की यश चोपड़ा को मदद बताते रहे हैं। दरअसल, जब यश चोपड़ा ने अपनी पहली फिल्म बनाई 'दाग़' तो इस दो हीरोइनों वाली फिल्म को कोई डिस्ट्रीब्यूटर खरीदने को तैयार नहीं था। तब राजेश खन्ना ने यश चोपड़ा से कहा कि मैं इस फिल्म में फ्री में काम करूंगा, तब तक कोई पैसा नहीं लूंगा, जब तक कि आपकी लागत नहीं निकल आएगी, बाद में ऐसा ही राखी और साहिर लुधियानवी ने भी किया। पहली फिल्म के प्रोडयूसर यश चोपड़ा के लिए उस वक्त ये बड़ी राहत थी। ऐसे में उनके फाइनेंसर गुलशन राय ने कहा भी फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर ठंडा रेस्पोंस मिलेगा और वो चाहते थे कि फिल्म का ज्यादा प्रमोशन ना किया जाए। 'दाग़' साल 1973 में रिलीज हुई। फिल्म पहले दिन बमुश्किल 9 थिएटर्स में रिलीज हुई। शाम होते होते 9 थिएटर और जुड़ गए. कुछ ही दिनों में फिल्म हिट हो चुकी थी। 6 दिन के अंदर फिल्म के प्रिंट तिगुने किए जा चुके थे। इस वजह से लंबे अरसे तक यश चोपड़ा मुश्किल वक्त में काका की ये मदद भूले नहीं। उस वक्त के पत्रकारों ने लिखा है कि यशराज फिल्म्स में से 'राज' राजेश खन्ना का है क्योंकि यश चोपड़ा अपने नाम में राज नहीं लगाते थे, लेकिन यशराज कैंप ने कभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया। हालांकि उनके खानदान में राज नाम पहले से है, चाहे उनके पिता का नाम विलायती राज चोपड़ा ले लीजिए या फिर उनके भाई बीआर चोपड़ा यानी बलदेव राज चोपड़ा। यूं भी राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था और उन्हें 'काका' के नाम से जाना जाता था।

फिल्म 'दीवार' के बेटों और मां का किरदार बदला

यश चोपड़ा की 'दीवार' के दोनों किरदार अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और निरूपा रॉय, लोगों के दिमाग़ में छप से गए हैं, लेकिन सोचिए इन तीनों की जगह शत्रुघ्न सिन्हा, नवीन निश्चल और बैजयंती माला होते तो? फिर नवीन निश्चल के मुंह से कैसा लगता ये बोलना कि, 'मेरे पास मां है'? लेकिन ये होने जा रहा था। दरअसल, शत्रुघ्न सिन्हा को यश चोपड़ा ने अमिताभ बच्चन वाला रोल ऑफर किया था। बिलकुल इसी तरह 'शोले' के जय का रोल भी शत्रु को ऑफर किया गया था, आज भी शत्रुघ्न सिन्हा को इसका अफसोस है। तभी तो ये दोनों ही फिल्में उन्होंने आज तक नहीं देखीं। सलीम जावेद ने 'दीवार' शत्रुघ्न सिन्हा को ध्यान में रखकर लिखी थी और उसके भाई के तौर पर नवीन निश्चल के बारे में सोचा था, लेकिन शत्रु के मना करने पर वो रोल अमिताभ बच्चन को चला गया, तो यश चोपड़ा ने नवीन निश्चल को भी हटा दिया और अमिताभ के छोटे भाई के रोल के लिए उनकी जगह शशि कपूर को साइन कर लिया। इतना ही नहीं ओरिजनल कास्ट में मां के रोल में थीं वैजयंती माला। उनको जब खबर लगी कि दोनों हीरोज को बदल दिया गया तो वो भी नाराज हो गईं। उन्होंने भी फिल्म को बाय-बाय कहने में देर नहीं की। ऐसे में वैजयंती माला के मां के रोल के बारे में यश चोपड़ा ने निरूपा रॉय से पूछा, निरूपा ने खुशी-खुशी हां कर दी और फिर तो वो मां के रोल के लिए बॉलीवुड की पहली जरूरत बन गईं।

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