Ashok Kumar: 'दादमुनि' से जुड़ी दिलचस्प बातें

हिन्दी सिनेमा जगत के पहले सुपरस्टार अशोक कुमार उर्फ 'दादमुनि' सिर्फ एक्टर नहीं बल्कि पेंटर और सिंगर भी थे। उन्होंने शुरुआत एक खास शख्स की न्यूड पेंटिंग बनाने से की और फिर तकरीबन 300 से अधिक पेंटिग्स बनाई, जिनकी प्रदर्शनी उनकी बेटी भारती जाफरी ने लगाई थी। अशोक कुमार एक्टर नहीं, बल्कि डायरेक्टर बनना चाहते थे। यहां तक कि एक्टर बनते ही उनकी शादी भी टूट गई थी। अशोक कुमा से जुड़े और भी कई किस्से हैं, उनकी सालगिरह पर पढ़िए....

Intresting Facts About 'Dadamuni' Ashok Kumar

आज 'दादमुनि' यानी अशोक कुमार का बर्थ-डे है। बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार अशोक कुमार फिल्मों में नहीं आना चाहते थे। यहां तक कि उनकी पहली फिल्म रिलीज़ होते ही उनकी तय शादी भी टूट गई थी।

ख़ैर, नियति इसे ही तो कहते हैं। फिर चलिए शुरू करते हैं 'दादामुनि' का क़िस्सा। शुरुआत इसी नाम यानी 'दादामुनि' से करते हैं। दरअसल, 'दादामुनि', 'दादामणि' से आया। अशोक कुमार की बहन सति उन्हें 'दादामणि' कहती थीं, यानी भाईयों में रत्न। अब बंगाली एक्सेंट की वजह से 'मणि' बदलते हुए 'मुनि' हो गया।

भागलपुर से खंडवा का सफर

अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर 1911 को तत्कालीन बंगाल में आने वाले भागलपुर में हुआ था। पिता कुंजीलाल गांगुली वकील थे और मां गौरा देवी हाउस वाइफ। कलकत्ता से वकालत पढ़े अशोक को फिल्में देखना बहुत पसंद था। क्लास के बाद वे अक्सर अपने दोस्तों के साथ थियेटर चले जाते थे। उस दौरान के एल सहगल की फिल्मों का खूब शोर था और उनकी दो फिल्मों से अशोक कुमार भी प्रभावित हुए, जिनमें ‘पूरण भगत’और ‘चंडीदास’ थी।

एक दिन कुंजीलाल गांगुली को मध्य प्रदेश में खंडवा के बेहद धनी गोखले परिवार ने बतौर अपना निजी वकील बना कर बुलाया, तो सपरिवार खंडवा पहुंच गए। इस तरह से भागलपुर का यह परिवार खंडवावासी हो गया।

'भड़वे बनते थे हीरो'

शुरू-शुरू में अशोक कुमार एक्टर नहीं बनना चाहते थे, बल्कि वो निर्देशन में अपना हाथ आजमाना चाहते थे। हीरो बनने को वो गंदा मानते थे। उनका कहना था, 'उन दिनों कॉल गर्ल हीरोइनें बनती थीं और भड़ुवे (दलाल) हीरो बनते थे।'

अब किस्मत का क्या कहिए। वो न सिर्फ हीरो बने, बल्कि बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार का ताज भी उन्होंने पहना। यह सफर भी कम दिलचस्प नहीं है। दरअसल, उनकी छोटी बहन के पति शशधर मुखर्जी, हिमांशु राय की कंपनी बॉम्बे टॉकीज में साउंड इंजीनियर थे और प्रोडक्शन के अन्य विभागों से जुड़े थे। वे अशोक कुमार को हिमांशु राय के पास लेकर गए।

हिमांशु राय ने उन्हें एक्टर बनने के लिए कहा, लेकिन अशोक ने मना कर दिया। उन्हें टेक्नीकल डिपार्टमेंट में काम करना था। हिमांशु ने उन्हें अपनी कंपनी में रख लिया। अशोक बाद में डायरेक्शन में भी असिस्ट करने लगे। सब एक्टर्स को उनके सीन समझाते थे।

अशोक कुमार की पहली फिल्म

बतौर एक्टर उनकी पहली फिल्म साल 1936 में आई ‘जीवन नैया’ रही, जिसके लिए उन्होंने एक गाना भी गाया था। गाने के बोल थे, 'कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा।' बाद में इसी गाने को उनके भाई किशोर कुमार ने साल 1961 में आई फिल्म ‘झुमरू’ रिवाइव किया।

फिल्म ‘जीवन नैया’ में अशोक कुमार की कास्टिंग की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। हुआ यूं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान हिमांशु राय की पत्नी यानी फिल्म की हीरोइन देविका रानी फिल्म के हीरो नजमुल हसन के साथ भाग गईं। फिर उन्हें शशधर मुखर्जी समझा-बुझा कर ले आए। बाद में हिमांशु राय ने अशोक कुमार से हीरो बनने के लिए कहा, लेकिन वे राज़ी नहीं हो रहे थे।

हिमांशु राय ने कहा कि वो काफी मुसीबत में हैं और अशोक ही उन्हें इस स्थिति से उबार सकते हैं। फिर उन्हें भरोसा दिलाया कि उनके यहां अच्छे परिवारों वाले, शिक्षित लोग ही एक्टर होते हैं, तब अशोक माने और ये उनकी डेब्यू फिल्म साबित हुई।

हीरो बनते ही टूट गई शादी

हिमांशु राय को बचाने के लिए अशोक कुमार हीरो तो बन गए, लेकिन इसका असर उनके निजी जीवन पर पड़ा। दरअसल, जैसे ही खंडवा में लोगों को जानकारी मिली कि अशोक कुमार हीरो बन गए हैं, तो उनकी तय शादी टूट गई। मां का रो-रो कर बुरा हाल हो गया।

फिर पिता कुंजीलाल गांगुली नागपुर पहुंचे और अपने कॉलेज के दोस्त रविशंकर शुक्ल से मिले, जो तब मुख्य मंत्री थे। उन्होंने स्थिति बताई और अपने बेटे को कोई नौकरी देने की बात कही। तत्काल ही रविशंकर शुक्ल ने दो नौकरियों के ऑफर लेटर दिए। इनमें से एक आय कर विभाग के अध्यक्ष का पद, जिसकी महीने की तनख्वाह 250 रुपये थी।

इसके बाद पिता अशोक से मिले और एक्टिंग छोड़ने को कहा। अशोक, हिमांशु राय के पास गए और उन्हें नौकरी के कागज़ दिखाए और कहा कि उनके पिता बाहर खड़े हैं और उनसे बात करना चाहते हैं। हिमांशु राय ने अकेले में उनके पिता से बात की। थोड़ी देर बाद उनके पिता उनके पास आए और नौकरी के कागज़ फाड़ दिए। उन्होंने अशोक से कहा, 'वो (हिमांशु राय) कहते हैं कि यदि तुम यही काम करोगे, तो बहुत ऊंचे मुकाम तक पहुंचोगे, तो मुझे लगता है तुम्हें यहीं रुकना चाहिए।'

नेचुरल एक्टर थे अशोक कुमार

अशोक कुमार की खासियत उनकी नेचुरल एक्टिंग रही। इसकी खास वजह यह रही कि न तो उन्होंने थियेटर किया था, न एक्टिंग का कोई अनुभव था। ऐसे में उनके अभिनय में पारसी थियेटर का लाउड प्रभाव नहीं था।

वो हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे और उनकी एक्टिंग एकदम नेचुरल थी, जो आज तक एक्टर्स हासिल करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा हिमांशु राय और देविका रानी ने भी उन्हें सबकुछ सिखाया। वे उन्हें अंग्रेजी फिल्में देखने के लिए भेजते थे। हम्प्री बोगार्ट जैसे विदेशी एक्टर्स को देखकर और उनकी स्टाइल व अपने विश्लेषण से अशोक ने अभिनय सीखा।

एक करोड़ कमाई वाली पहली फिल्म

साल 1943 में आई फिल्म 'किस्मत' में वो एंटी हीरो की भूमिका में नज़र आए और यह पहली हिन्दी फिल्म थी, जिसने 1 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई की थी। यह एक साल तक सिनेमाघरों में लगी रही। उनका समृद्ध करियर 60 साल लंबा चला। उन्होंने 270 से 300 के बीच फिल्में कीं। 10 दिसंबर 2001 को उनका हार्ट फेल होने से निधन हुआ। उनकी आखिरी फिल्में थीं ‘रिटर्न ऑफ द ज्वेलथीफ’ और ‘आंखों में तुम हो’।

नहीं निकलते थे घर से

अपने जमाने में यानी 40 के दशक में उनका ऐसा क्रेज़ था कि वे घर से कम ही निकलते थे और जब कभी बाहर निकलते थे तो भारी भीड़ जमा हो जाती और ट्रैफिक रुक जाता था। कई बार तो पुलिस को लाठी चार्ज करके भीड़ को हटाना पड़ता था।

अशोक कुमार के अफेयर

अशोक कुमार ने अपनी पत्नी शोभा से बेवफाई की थी, लेकिन उन्हें कभी शक नहीं किया। एक इंटरव्यू में खुद अशोक कुमार ने कहा, 'शुरू के 13 साल में बहुत-बहुत वफादार था। उसके बाद भटक गया। मैं एक फिल्म कर रहा था, 'नाज़'। तभी मैंने शराब पीनी शुरू की। लड़कियों से मिलना शुरू किया। अफेयर किए। मेरा हीरोइन नलिनी जयवंत के साथ भी अफेयर था। ढाई साल तक हम साथ थे। चारों तरफ इसकी बातें हो रही थी, लेकिन मेरी पत्नी ने कभी यकीन नहीं किया कि उसका पति ऐसा करेगा।'

साल 1986 में अशोक-शोभा ने शादी के 50 बरस पूरे किए। शोभा बहुत उत्साहित थीं और बड़ी होटल में पार्टी देना चाहती थीं। इसके चार दिन पहले वे बीमार पड़ीं और उनकी मृत्यु हो गई।

पत्नी की 'न्यूड पेंटिंग' बना चुके हैं अशोक कुमार

अशोक कुमार ने अपनी पत्नी की न्यूड पेंटिंग बनाई थी। इसके अलावा भी कई न्यूड्स और अन्य प्रकार की पेंटिंग वे बनाया करते थे। इनकी संख्या 300 के करीब मानी जाती है। उनकी बेटी भारती जाफरी इन पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगा चुकी हैं।

डॉक्टर को मारने दौड़ पड़े

साल 1996 में वे बीमार पड़े। डॉक्टर ने कहा कि वे जिंदा नहीं बचेंगे। अशोक ने कहा, 'वो कौन होते हैं कहने वाले कि मैं जिंदा नहीं बचूंगा।' वे इस बात से इतने नाराज़ हुए कि उस डॉक्टर के पीछे दौड़े और उसे घूंसा जड़ दिया। बाद में उन्हें इंजेक्शन देकर शांत करना पड़ा। दो दिन के बाद से तंदुरुस्त हो गए और अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

इस फिल्म के चलते हुआ था अस्थमा

अशोक कुमार करियर के आखिरी 30 बरसों में अस्थमा से पीड़ित रहे। इससे पहले वे कभी बीमार नहीं हुए। यह बीमारी भी उन्हें साल 1962 में रिलीज हुई फिल्म ‘राखी’ की शूटिंग के दौरान मिली। यह फिल्म भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित थी और वहीदा रहमान ने उनकी बहन का रोल किया था। आखिरी सीन में वे मर जाते हैं। तमिल फिल्मों के भीम सिंह इसे डायरेक्ट कर रहे थे, उन्होंने ब्रीफ किया कि क्लाइमैक्स में मरने के सीन में उन्हें कर्कश और खुरदरी आवाज में डायलॉग बोलने हैं। इसके लिए ये आइडिया निकाला गया कि अशोक कुमार बर्फ का पानी पिएं और उसके तुरंत बाद संवाद बोलें, लेकिन 25 गिलास बर्फ का पानी पीने के बाद भी उनकी आवाज वैसी ही बनी रही। उन्होंने दो दिन तक ऐसा किया, तीसरे दिन बुखार हो गया। चेन्नई में शूट जल्दी पूरा किया गया। इसके बाद वे बेहोश हो गए। अस्पताल ले जाया गया। उसके बाद से अशोक कुमार को सांस की दिक्कत होने लगी। तब से ही उन्हें अस्थमा हो गया।

अशोक कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसमें साल 1962 में फिल्म 'राखी' के लिए पहली बार और फिर साल 1963 की फिल्म 'आशीर्वाद' शामिल हैं। साल 1966 में फिल्म 'अफसाना' के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता के पुरस्कार से नवाजा गया। वे साल 1988 में हिंदी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी सम्मानित किए गए। साल 1998 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।

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