The Battle Of Bhima Koregaon: सितंबर में रिलीज़ होगी अर्जुन रामपाल की फिल्म

अर्जुन रामपाल की फिल्म 'द बैटल ऑफ भीमा कोरेगांव' 17 सितंबर को रिलीज़ होगी। रमेश थेटे फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म का निर्देशन रमेश थेटे ने किया है। इस हिस्टोरिकल फिल्म में अर्जुन रामपाल के अलावा दिगांगना सूर्यवंशी, गोविंद नामदेव, सनी लियोन, अशोक समर्थ, मिलिंद गुणाजी, कृष्ण अभिषेक, अभिमन्यु सिंह अहम भूमिकाओं में नज़र आएंगे।

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हिस्टोरिकल ड्रामा फिल्म 'द बैटल ऑफ भीमा कोरेगांव' से रमेश थेटे बतौर निर्माता-निर्देशक अपने करियर की शुरुआत करने जा रहे हैं। अर्जुन रामपाल की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म 17 सितंबर 2021 को रिलीज़ हो रही है।

रमेश थेटे फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म में पहली बार अर्जुन रामपाल हिस्टोरिकल कैरेक्टर प्ले करेंगे। वहीं इस फिल्म में उनके अलावा दिगांगना सूर्यवंशी, गोविंद नामदेव, सनी लियोन, अशोक समर्थ, मिलिंद गुणाजी, कृष्ण अभिषेक, अभिमन्यु सिंह और कॉमेडियन ऋषि शर्मा की प्रमुख भूमिकाओं में नज़रआएंगे।

इस फिल्म का आर्ट डायरेक्शन नितिन देसाई ने किया है। नितिन ने दो शताब्दियों पहले महाराष्ट्र में पेशवा शासन को फिर से बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है।

फिल्म में सनी लियोनी एक जासूस यानी गुप्तचर के किरदार में होंगी, जो पेशवा के दरबार में एक दरबारी के रूप में मौजूद थीं। फिल्म 'द बैटल ऑफ भीमा कोरेगांव' में 5 गाने हैं। इन गानों से फिल्म की कहानी अपने तरीके से आगे बढ़ती दिखाई देगी।

जहां तक फिल्म की कहानी की बात है, तो अभी तक मिली जानकारी के अनुसार फिल्म की टाइमलाइन लगभग 1795 से 1818 में सेट है। उस समय के सामाजिक भेदभाव और अत्याचार को भी फिल्म में दिखाया जाएगा।

भीमा कोरेगांव के युद्ध की कहानी

भीमा कोरेगांव। महाराष्ट्र के पुणे जिले में बसा एक छोटा सा गांव। आज से तकरीबन 200 साल पहले इस गांव ने एक ऐसे युद्ध को देखा,जिसने इतिहास को बदल दिया। यह युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा मराठों के बीच हुआ। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने पेशवाओं और गायकवाड़ों के बीच पीस ट्रीटी यानी शांति समझौता साइन करवाया, जिसके तहत पेशवाओं को गायकवाड़ों के मुनाफे पर से हिस्सा छोड़ना पड़ा था। इस समझौते से पेशवा काफी नराज़ हुए। नाराजगी जाहिर करते हुए अंग्रेजों की पुणे रेज़ीडेंसी जला डाली। हालात और बिगड़ने से पहले अंग्रेजों ने अपनी फौज भेजी। इस फौज में मुट्ठीभर महार सिपाही थे, जिनका सामना पेशवाओं की भारी-भरकम फौज से हुआ। 1 जनवरी, 1818 के दिन लड़े गए इस युद्धा में अंग्रेजों द्वारा भेजे गए महार सिपाहियों की छोटी सी टुकड़ी भारी-भरकम पेशवा सेना पर भारी पड़ गई। वहीं अंग्रेजों की तरफ से जो सैनिक शहीद हुए, उन्हें श्रद्धांजलि दी गई और उनके लिए उसी गांव में ‘विजय स्तम्भ’ बनाया गया। आज भी उस स्तम्भ पर शहीद हुए सैनिकों के नाम हैं।

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